अमरीका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने ईरान को ‘धर्मांध हुकूमत’ करार देते हुए उसकी निंदा की है और साथ ही न्यूक्लियर डील से हटने की धमकी दी है.
डोनल्ड ट्रंप ने कहा कि वह इस सौदे को कांग्रेस के पास भेज रहे हैं और इसमें बदलाव के लिए सहयोगियों से विमर्श भी करेंगे.
दरअसल, ‘ईरान न्यूक्लियर एग्रीमेंट रिव्यू एक्ट’ के तहत अमरीकी राष्ट्रपति को हर 90 दिन में कांग्रेस को यह प्रमाणित करना होता है कि ईरान परमाणु समझौते का पालन कर रहा है.
ट्रंप दो बार तो इसे प्रमाणित कर चुके हैं मगर इस बार उन्होंने ऐसा नहीं किया. ऐसे में यूएस कांग्रेस के पास अब यह तय करने के लिए 60 दिन का समय है कि परमाणु समझौते से अलग होकर फिर से प्रतिबंध लगाए जाएं या नहीं.
ट्रंप ने ईरान पर लगाए कई आरोप
अमरीकी राष्ट्रपति ने ईरान पर आतंकवाद को प्रायोजित करने का आरोप लगाया और कहा कि वह ईरान के परमाणु हथियार हासिल करने के सभी रास्ते रोक देंगे.
उन्होंने कहा कि ईरान को उत्तर कोरिया की तरह एक परमाणु ख़तरा नहीं बनने दिया जाएगा.
अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षकों का कहना है कि 2015 में जिस समझौते के तहत ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर रोक लगाई थी, वह उसका ठीक से पालन कर रहा है.
मगर ट्रंप कहते हैं कि समझौता बहुत उदार था और इससे ईरान को नियत सीमा से अधिक हेवी वॉटर (परमाणु बम बनाने के लिए उपयुक्त प्लूटोनियम का स्रोत) प्राप्त करने और अंतर्राष्ट्रीय जांचकर्ताओं को धमकाने की छूट दे दी गई है.
अमरीकी राष्ट्रपति ने कहा कि ईरान ‘मौत, तबाही और अराजकता’ फैला रहा है.
उनका कहना है कि ईरान इस समझौते के मूल-भाव का पालन नहीं कर रहा है और असल में प्रतिबंधों का फ़ायदा उठा रहा है.
ट्रंप ने कहा कि उनकी नई रणनीति से इस पर लगाम लगेगी. ट्रंप ने कहा कि अमरीका के पास इस समझौते को कभी भी छोड़ने का अधिकार है.
परमाणु गतिविधियों के अलावा ट्रंप ने ईरान पर कुछ अन्य बातों को लेकर भी हमले किए. उन्होंने रीवॉल्यूशनरी गार्ड्स को ‘ईरान के नेता की भ्रष्ट और निजी आतंकवादी फ़ोर्स’ करार दिया.
ट्रंप ने कहा कि वह इस डील के इतर ईऱान पर प्रतिबंध लगाएंगे, जिनका मकसद गार्ड्स और ‘वैश्विक व्यापार के लिए संकट खड़ा करने वाले मिसाइलों के विस्तार’ पर रोक लगाना होगा.
ईरान से हुई डील की ट्रंप इसलिए आलोचना करते हैं क्योंकि इसमें ईरान का बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम शामिल नहीं है.
ट्रंप के इस बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने सवाल किया है कि ट्रंप उस समझौते से अकेले कैसे हट सकते हैं, जिस पर कई देशों ने हस्ताक्षर किए थे.
ईरान के सरकारी टीवी पर बात करते हुए रूहानी ने कहा, “ट्रंप चाहते हैं कि अमरीकी कांग्रेस इस समझौते में नई शर्त शामिल कर दे मगर उन्हें मालूम नहीं है कि इसमें और कोई संशोधन नहीं किया जा सकता.”
उन्होंने कहा, “ट्रंप ने अंतर्राष्ट्रीय कानून ढंग से नहीं पढ़ा है. बहुत से देशों के बीच हुए समझौते को एक राष्ट्रपति कैसे रद्द कर सकता है? ट्रंप को शायद पता नहीं है कि यह ईरान और अमरीका के बीच हुआ द्विपक्षीय समझौता नहीं है कि वह जो चाहें वो कर लें.”
अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया
उनके बयान के कुछ मिनटों बाद ही यूरोपीय संघ की विदेश नीति प्रमुख फेडरिका मोगरीनी ने कहा कि समझौता काफी ‘मज़बूत’ था और ‘समझौते में जो प्रतिबद्धाएं जताई गई थीं, उनका उल्लंघन नहीं हुआ है.’
उन्होंने कहा कि ‘दुनिया में किसी राष्ट्रपति के पास’ इस समझौते को ख़त्म करने का अधिकार नहीं है ,क्योंकि यह समझौता संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के तहत किया गया है.
सात देशों के साथ हुए इस समझौते को ख़त्म करने को लेकर ट्रंप पर अपने देश के भीतर और बाहर से दबाव बना हुआ है.
एक साझा बयान में ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस ने कहा है कि ट्रंप के कदम पर उन्हें चिंता है लेकिन वो परमाणु समझौते का सम्मान करते हैं. हालांकि इस देशों का ये भी कहना है कि “ईरान के बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम और इस इलाके की गतिविधियों की उन्हें चिंता है.”
रूस के विदेश मंत्रालय का कहना है कि उन्हें राष्ट्रपति ट्रंप के फैसले पर खेद है लेकिन उन्हें नहीं लगता कि इसका कोई सीधा असर पड़ेगा.
इसराइल के प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू ने ईरान के ख़िलाफ़ कदम उठाने के ट्रंप के फ़ैसले के लिए उन्हें बधाई दी है और कहा है कि इसे एक ‘साहसिक’ फ़ैसला बताया है.
-BBC
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