अपने सशक्त अभिनय से पहचान बनाने वाली स्मिता पाटिल का जन्म 17 अक्टूबर 1956 में हुआ था.
उनका नाम स्मिता रखने जाने के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है.
असल में जन्म के समय उनके चेहरे पर मुस्कराहट देख कर उनकी माँ विद्या ताई पाटिल ने उनका नाम स्मिता रख दिया.
यह मुस्कान आगे चलकर भी उनके व्यक्तित्व का सबसे आकर्षक पहलू बना.
स्मिता पाटिल अपने गंभीर अभिनय के लिए जानी जाती हैं लेकिन बहुत काम लोग जानते हैं कि फ़िल्मी परदे पर सहज और गंभीर दिखने वाली स्मिता पाटिल असल ज़िंदगी में बहुत शरारती थीं.
स्मिता पाटिल की जीवनी लिखने वाली मैथिलि राव बताती हैं, “वो निजी ज़िन्दगी में बहुत साधारण थीं. उनके अंदर ऐसी कोई चाहत नही थीं कि वो कोई बहुत बड़ी स्टार बनें. ज़िन्दगी के प्रति गंभीर होने के साथ-साथ वो बहुत शरारती थीं, बहुत मस्ती करती थीं, उन्हें गाड़ी चलाने का बहुत शौक था. यही कारण है कि 14 -15 साल की उम्र में ही उन्होंने चुपके से ड्राइविंग सीख ली.”
स्मिता पाटिल ने अपने छोटे फ़िल्मी सफ़र में ऐसी फ़िल्में की जो भारतीय फ़िल्मों के इतिहास में मील का पत्थर बन गईं. उनकी छाप छोड़ने वाली फ़िल्मों में जहां भूमिका, मंथन, मिर्च मसाला, अर्थ, मंडी और निशांत जैसी कलात्मक फ़िल्में शामिल हैं, तो दूसरी तरफ़ नमक हलाल और शक्ति जैसी व्यावसायिक फ़िल्में भी क़तार में हैं.
फ़िल्मों में आने से पहले स्मिता पाटिल बॉम्बे दूरदर्शन में मराठी में समाचार पढ़ा करती थीं. समाचार पढ़ने से पहले उनके लिए साड़ी पहनना ज़रूरी होता था और स्मिता को जीन्स पहनना अच्छा लगता था तो स्मिता अक्सर न्यूज़ पढ़ने से पहले जीन्स के ऊपर ही साड़ी लपेट लिया करती थीं.
स्मिता के फ़िल्मी करियर की शुरुआत अरुण खोपकर की डिप्लोमा फ़िल्म से हुई, लेकिन मुख्यधारा के सिनेमा में स्मिता ने ‘चरणदास चोर’ से अपनी मौजूदगी दर्ज की.
इसके निर्देशक थे श्याम बेनेगल.
वो बताते हैं, “मैं अपनी फ़िल्म निशांत के लिए एक नए चेहरे की तलाश में था. मेरे एक साउंड रिकार्डिस्ट हुआ करते थे हितेन्दर घोष वो स्मिता पाटिल के दोस्त थे. हितेन्दर घोष ने मुझे बताया कि मेरी एक दोस्त है स्मिता पाटिल. मैं उसके परिवार को जानता हूँ.”
“वो पुणे से हैं लेकिन फिलहाल बॉम्बे में हैं और अपने पिता के साथ आयीं हैं. उनके पिता उस समय महाराष्ट्र कैबिनेट में मंत्री थे. जब मैं स्मिता से मिला तो मैंने तय किया कि फ़िल्म निशांत में स्मिता को कास्ट करने से पहले मैं स्मिता का एक छोटा सा ऑडिशन लेना चाहता हूँ और मैंने स्मिता को अपनी बाल फ़िल्म ‘चरणदास चोर’ में प्रिंसेस के रोल के लिए चुना.
जब हम छत्तीसगढ़ में शूटिंग कर रहे थे तब मैंने पाया कि ये लड़की तो बहुत टैलेंटेड और इसमें भरपूर आत्मविश्वास है. तभी मैंने तय किया कि स्मिता ही मेरी फ़िल्म निशांत में काम करेंगी.”
साल 1977 स्मिता पाटिल के लिए एक अहम पड़ाव साबित हुआ इसी साल उनकी फ़िल्म भूमिका आई इस फ़िल्म के लिए स्मिता पाटिल को राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
भूमिका से स्मिता पाटिल का जो सफ़र शुरू हुआ वो चक्र, निशांत, आक्रोश, गिद्ध, मिर्च मसाला जैसी फ़िल्मों तक जारी रहा. 1981 में आई फ़िल्म चक्र के लिए उन्हें एक बार फिर से नेशनल आवर्ड मिला.
फ़िल्म मिर्च मसाला उनके निधन के बाद रिलीज़ हुई लेकिन इस फ़िल्म में निभाये गए सोन बाई के क़िरदार को उनके बेहतरीन काम में से एक माना जाता है.
इसी फ़िल्म ने निर्देशक केतन मेहता को अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति दिलवाई.
केतन मेहता बताते हैं, “मिर्च मसाला मेरी तीसरी फ़िल्म थी और जब मुझे पता चला की मेरी स्क्रिप्ट नेशनल फ़िल्म डेवलपमेंट कारपोरेशन से एप्रूव्ड हो गई है तो मैं लोकेशन देखने गुजरात गया. उस फ़िल्म में मिर्च का एक अहम रोल है.
जब मैंने वहां जाकर देखा की मिर्च का सीजन शुरू हो चुका है और ये सीज़न दो महीने बाद ख़त्म हो जाएगा तो मैं भाग कर बॉम्बे आया और स्मिता से मिला और ये सारी बातें उन्हें बताईं और कहा कि अगर हम चूके तो अगले साल तक के लिए करना होगा. स्मिता ने किसी भी तरह और फ़िल्मों की डेट आगे बढ़ा दी और इस फ़िल्म की शूटिंग शुरू की.”
“सीन कुछ ऐसे थे कि एक मिर्च फैक्ट्री के अंदर कुछ औरतें काम करती हैं, गर्मी का मौसम था. धूप और गर्मी के बावजूद स्मिता ने बहुत ही स्पिरिट के साथ काम किया और यूनिट के दूसरे लोगों को भी प्रोत्साहित किया.”
स्मिता पाटिल को जहां उनके किरदारों के लिए सराहा गया वहीं दूसरी तरफ़ एक्टर और पॉलिटिशियन राज बब्बर से जुड़े उनके सम्बन्ध को लेकर उनकी आलोचना भी की गई.
उनके बारे में लोगों ने कहा कि उन्होंने राज बब्बर और नादिरा बब्बर की शादी तुड़वा दी.
मैथिलि राव इस पर कहती हैं, “स्मिता पाटिल की माँ स्मिता और राज बब्बर के रिश्ते के ख़िलाफ़ थीं. वो कहती थीं कि महिलाओं के अधिकार के लिए लड़ने वाली स्मिता किसी और का घर कैसे तोड़ सकती है. स्मिता के लिए उनकी माँ रोल मॉडल थीं. उनकी ज़िन्दगी में माँ फैसला बहुत मायने रखता था लेकिन राज बब्बर से अपने रिश्ते को लेकर स्मिता ने माँ की भी नहीं सुनी. उनकी माँ इस बात का दुःख था कि आखिरी समय में उनका रिश्ता अपनी बेटी से ख़राब हो गया.”
प्रतीक के जन्म के कुछ दिनों बाद 13 दिसंबर 1986 को स्मिता का निधन हो गया.
मैथिलि राव कहती हैं, “स्मिता को वायरल इन्फेक्शन की वजह से ब्रेन इन्फेक्शन हुआ था. प्रतीक के पैदा होने के बाद वो घर आ गई थीं. वो बहुत जल्द हॉस्पिटल जाने के लिए तैयार नहीं होती थीं, कहती थीं कि मैं अपने बेटे को छोड़कर हॉस्पिटल नही जाऊंगी लेकिन जब ये इन्फेक्शन बहुत बढ़ गया तो उन्हें जसलोक हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया. स्मिता के अंग एक के बाद एक फ़ेल होते चले गए.”
हालांकि राजबब्बर के साथ रिश्ता भी कुछ बहुत सहज नहीं रह गया था. स्मिता अपने आखिरी दिनों में बहुत अकेला महसूस करती थीं.
राज बब्बर जब हॉस्पिटल में पहुंचे, उस वक़्त तक स्मिता ने ये फैसला कर लिया था की वो राज बब्बर से रिश्ता तोड़ लेंगी.
अपनी किताब लिखते हुए मैथिलि राव को पता लगा की राज बब्बर और स्मिता लिव इन रिलेशनशिप में हैं और राज बब्बर कहते थे कि वो अपनी पत्नी को तलाक़ देकर स्मिता से शादी कर लेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ और स्मिता को वो धीरे धीरे अपने फ्रेंड सर्किल से भी दूर रखने लगे थे.
स्मिता पाटिल की एक आखिरी इच्छा थी. उनके मेक अप आर्टिस्ट दीपक सावंत बताते हैं, “स्मिता कहा करती थीं कि दीपक जब मैं मर जाऊंगी तो मुझे सुहागन की तरह तैयार करना.”
“एक बार उन्होंने राज कुमार को एक फ़िल्म में लेटकर मेकअप कराते हुए देखा और मुझे कहने लगीं कि दीपक मेरा इसी तरह से मेक अप करो और मैंने कहा कि मैडम मुझसे ये नहीं होगा. ऐसा लगेगा जैसे किसी मुर्दे का मेकअप कर रहे हैं.”
“ये बहुत दुखद है कि एक दिन मैंने उनका ऐसे ही मेकअप किया. शायद ही दुनिया में ऐसा कोई मेकअप आर्टिस्ट होगा जिसने इस तरह से मेकअप किया हो.”
मरने के बाद उनकी अंतिम इच्छा के मुताबिक़, स्मिता के शव का सुहागन की तरह मेकअप किया गया.
भले ही स्मिता पाटिल का फ़िल्मी सफ़र सिर्फ 10 साल का रहा है लेकिन काम ऐसा कि आज भी वो चर्चा में रहता है लेकिन वो ना सिर्फ़ फ़िल्मों बल्कि राज बब्बर से अपने सम्बन्धों की वजह से भी चर्चा में रही.
सिर्फ 31 साल की उम्र में उनकी अचानक मौत आज भी रहस्यमयी है.
“मुझे याद है जब हम फ़िल्म मंथन की शूटिंग राजकोट से कहीं बाहर कर रहे थे. शूटिंग के दौरान स्मिता पाटिल गाँव की औरतों के साथ उन्हीं के कपड़े पहनकर बैठी हुई थीं, वहां पर शूटिंग देखने के लिए कॉलेज के कुछ बच्चे आए और उन्होंने पूछा की इस फ़िल्म की हीरोइन कहाँ है? किसी ने स्मिता की तरफ़ इशारा किया कि वो है, फ़िल्म की हीरोइन, तो उस स्टूडेंट ने कहा कि क्या तुम मज़ाक कर रहे हो, ये गाँव की औरत किसी बॉम्बे फ़िल्म की हीरोइन कैसे हो सकती है. यही ख़ासियत थी स्मिता की. वो जो भी करती थीं उस रोल में ढल जाती थीं. वो जो भी कैमरे के सामने करतीं वो उसका हिस्सा बन जाता था.”
कुछ ऐसे ही किस्सों से फ़िल्म निर्देशक और स्क्रीन राइटर श्याम बेनेगल स्मिता पाटिल को याद करते हैं.
-BBC
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