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Thursday 12 October 2017

इंतकाल से पहले मुल्‍ला नसरुद्दीन और उसकी बेगम का वार्तालाप

क्‍या आपकी पत्‍नी भी ऐसी ही है। विचार कीजिए और बताइए कि हर व्‍यक्‍ति की पत्‍नी मौलिक रूप से एक जैसी नहीं होती।
मुल्‍ला नसरुद्दीन बहुत बीमार था। उसे लग रहा था कि अब उसका अंत समय निकट है।
उसने अपनी पत्‍नी को बुलाया और धीरे-धीरे समझाने लगा- फातिमा, मेरे इंतकाल के बाद अपनी दवाओं की दुकान नौकर महमूद के सुपुर्द कर देना।
महमूद…उससे तो अच्‍छी तरह मेरा भाई रहीम दुकान चला लगा। मुल्‍ला की बेगम ने कहा।
मुल्‍ला बोला- अच्‍छा-अच्‍छा, नाराज क्‍यों होती हो। दवा की दुकान रहीम को दे देना और नौकर महमूद को आम का बगीचा सौंप देना।
बेगम ने इस बार कहा- मियां, आम का बगीचा अपनी बड़ी बेटी को देना ठीक रहेगा क्‍योंकि उसके आदमी को बाग-बगीचों का बड़ा शौक है।
मुल्‍ला को बेगम की बातें बहुत अखर रही थीं किंतु फिर भी उसने धैर्य रखकर कहा- तुम जो ठीक समझो, कोई बात नहीं। नौकर को नदी के किनारे वाला मकान दे देना। उसने जिंदगीभर मेरी सेवा की है।
वह मकान तो छोटी बेटी-दामाद को हमेशा से बहुत पसंद है। उसे नौकर को कैसे दिया जा सकता है। इस बार बेगम ने कहा।
मौत के मुहाने पर बैठा मुल्‍ला हारकर जोर से चीखा- नूरी की मां, एक बात तो बता कि मर मैं रहा हूं या तू।

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