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Monday 6 November 2017

बड़े ख़ुलासों की श्रृंखला में ताज़ा कड़ी है पैराडाइज पेपर्स लीक

पैराडाइज पेपर्स के तौर पर एक बार फिर बड़े पैमाने पर गुप्त फ़ाइलें सामने आई हैं. उनमें से सबसे अहम फ़ाइल एक ऑफ़शोर लॉ फ़र्म से जुड़ी हुई है, जो अमीर और चर्चित लोगों की टैक्स से जुड़ी गतिविधियों का ब्योरा देती है.
इस तरह के बड़े ख़ुलासों की श्रृंखला में यह ताज़ा कड़ी है. हो सकता है आपको पैराडाइज पेपर्स से जुड़ी जानकारियों को समझने में दिक्कत हो रही हो.
समस्या यह है कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. यह मानते हुए कि इस तरह से लीक्स ज़्यादा ही सामने आ चुके हैं, यह आकलन करना मुश्किल है कि गुप्त जानकारियों पर आधारित ऐसी पड़ताल का दुनिया द्वारा अपने टैक्स से जुड़े मामलों के नियमन पर क्या प्रभाव पड़ता है.
इस पर्दाफ़ाश का निरीक्षण करने वाले इंटरनेशनल कंसोर्शियम ऑफ़ इंवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स (आईसीआईजे) के जेरार्ड राइल के मुताबिक, “बाहरी देशों में इस तरह के लीक का गहरा असर पड़ता है क्योंकि उन्हें पता नहीं होता कि अगला लीक कहां से होगा और किसकी जानकारी सामने आ जाएगी.”
तो नज़र डालते हैं पिछले चार सालों में हुए कुछ बड़े लीक की. शुरुआत सबसे बड़े पर्दाफ़ाश से:
पनामा पेपर्स 2016
डेटा के आधार पर देखें तो यह सभी खुलासों का बाप है. अगर 2010 में विकीलीक्स द्वारा संवेदनशील डिप्लोमैटिक केबल्स को जारी करना आपको बहुत बड़ा मामला लगा था तो समझ लें कि पनामा पेपर्स में उससे 1500 गुना ज़्यादा जानकारी थी.
विकीलीक्स का ख़ुलासा तो कई दिशाओं में बंटा हुआ था मगर पनामा पेपर्स सिर्फ़ वित्तीय मामलों पर आधारित थे. यह तब हुआ जब 2015 में एक गुमनाम स्रोत ने जर्मन अख़बार ज़्यूड डॉयचे त्साइटुंग से संपर्क किया और पानामा की लॉ फ़र्म मोसाका फोंसेका के एनक्रिप्टेड डॉक्युमेंट्स दिए.
यह लॉ फ़र्म गुमनाम विदेशी कंपनियों को बेचती है, जिससे मालिकों को अपने कारोबारी लेन-देन अलग रखने में मदद मिलती है.
यह डेटा इतना विशाल (2.6 टेराबाइट्स) था कि जर्मन अख़बार ने इंटरेशनल कंसोर्शियम ऑफ़ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स (ICIJ) से मदद मांगी. इसने 100 अन्य सहयोगी समाचार संगठनों, जिनमें बीबीसी पैनोरमा भी है, को शामिल किया.
एक साल की स्क्रूटनी के बाद ICIJ और इसके सहयोगियों ने संयुक्त रूप से 3 अप्रैल 2016 को पनामा पेपर छापे. एक महीने बाद दस्तावेज़ों के डेटाबेस भी ऑनलाइन डाल दिया.
किस-किस का नाम आया?
कुछ न्यूज़ पार्टनर्स ने इस बात पर फ़ोकस रखा कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन के सहयोगियों ने कैसे पूरी दुनिया में कैश की हेरा-फेरी की. रूस में तो इसपर बहुत कुछ नहीं हुआ. मगर आइसलैंड और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मुश्किल में फंस गए.
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पद छोड़ना पड़ा. कुल मिलाकर दर्जन भर मौजूदा और पूर्व विश्व नेताओं, 120 से ज़्यादा राजनेताओं, अधिकारियों और असंख्य अरबपतियों, हस्तियों और खिलाड़ियों का पर्दाफ़ाश हुआ.
डेटा किसने लीक किया?
जॉन डो ने. यह असली नाम नहीं है. अमरीका में एक क्राइम सिरीज़ में गुमनाम विक्टिमों को यही नाम दिया जाता है. मगर मिस्टर या मिस डो की असल पहचान अब भी पता नहीं है.
पनामा पेपर के सामने आने के पांच महीनों बाद ICIJ ने बहामस कॉर्पोरेट रजिस्ट्री से कुछ ख़ुलासे किए. 38जीबी डेटा से प्रधानमंत्रियों, मंत्रियों, राजकुमारों और दोषी क़रार दिए गए अपराधियों की विदेश में गतिविधियों का पर्दाफ़ाश किया गया.
ईयू के पूर्व कंपिटीशन कमिश्नर नीली क्रोन्स ने माना कि एक विदेशी कंपनी में उनकी हिस्सेदारी को सार्वजनिक करने में उनसे ‘चूक’ हुई है.
स्विस लीक्स 2015
आईसीआईजे की इस पड़ताल में 45 देशों के सैकड़ों पत्रकार शामिल थे. फरवरी 2015 में इस रिपोर्ट को ज़ाहिर किया गया. इसमें एचएसबीसी प्राइवेट बैंक (स्विस), जो कि बैंकिंग जाएंट की सहायक कंपनी है, पर फ़ोकस था.
लीक हुई फ़ाइलों में 2007 तक के ख़ातों की जानकारी थी, जो 200 से ज़्यादा देशों के एक लाख लोगों और क़ानूनी संस्थाओं से संबंधित थे.
आईसीआईजे ने कहा कि सब्सिडियरी ने उन्हें फ़ायदा पहुंचाया, जो ”बदनाम हुकूमतों के करीबी थे या फिर जिन्हें संयुक्त राष्ट्र ने नकारात्मक माना था.”
एचएसबीसी ने माना था कि उस दौरान सब्सिडियरी में “संस्थागत मूल्यों और सजगता का स्तर आज के मुक़ाबले कम था.’
किनका नाम आया था?
ICIJ ने कहा कि HSBC ने “हथियार कारोबारियों, तीसरी दुनिया के तानाशाहों के लिए काम करने वाले लोगों, ब्लड डायमंड्स की तस्करी करने वालों और अंतराराष्ट्रीय अपराधियों से फ़ायदा उठाया था.”
इसमें मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति हुस्नी मुबारक, ट्यूनिशिया के पूर्व राष्ट्रपति बेन अली और सीरिया के नेता बशर अल-असद की हुकूमतों के क़रीबियों का भी ज़िक्र किया गया था.
डेटा किसने लीक किया था?
आईसीआईजे की जांच फ्रेंच-इटैलियन सॉफ़्टवेयर इंजीनियर और विसलब्लोअर एर्वी फैल्सियानी द्वारा लीक किए गए डेटा पर आधारित थी. मगर आईसीआईजी को यह डेटा अन्य सूत्र से मिला था.
2008 के बाद फैल्सियानी ने एचएसबीसी प्राइवेट बैंक (स्विस) की जानकारी फ्रेंच प्रशासन को दी. इस जानकारी को उन्होंने अन्य संबंधित सरकारों के साथ साझा कर दिया. फैल्सियानी पर स्विटज़रलैंड में मुकदमा चला. उन्हें स्पेन में हिरासत में भी रखा गया मगर बाद में रिहा कर दिया गया, वह अभी फ़्रांस में रहते हैं.
लक्समबर्ग लीक्स 2014
इसे संक्षेप में लक्सलीक्स भी कहा जाता है. ICIJ ने गहन जांच के बाद 2014 नवंबर में इसे सार्वजनिक किया था. यह रिपोर्ट प्रोफ़ेशनल सर्विसेज़ कंपनी प्राइसवॉटरहाउसकूपर्स द्वारा लक्समबर्ग में 2002 और 2018 के बीच बहुराष्ट्रीय कंपनियों की अनुकूल टैक्स नियम पाने में मदद करने पर आधारित थी.
आईसीआईजी ने कहा कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने लक्समबर्ग ज़रिये पैसा चैनलाइज़ करके अरबों बचाए. कई बार तो टैक्स की दर एक फ़ीसदी से भी कम रही. इसके मुताबिक लक्समबर्ग में एक पते पर तो 1600 से ज़्यादा कंपनियां चल रही थीं.
किसका नाम आया?
पेप्सी, आइकिया, एआईडी और डॉयचे बैंक प्रमुख नाम थे. लीक हुए दस्तावेजों की दूसरी सिरीज़ में कहा गया कि वॉल्ट डिज़्नी कंपनी और स्काइप ने खरबों डॉलर लक्समबर्ग की सब्सिडियरियों के ज़रिये निकाले. इन्होंने और अन्य कंपनियों ने इस बात से इनकार किया उन्होंने कुछ ग़लत किया है.
जिस समय लक्समबर्ग में कर टालने वाले कई नियम लागू हुए थे, ज्यां-क्लाउदे यंकर वहां के प्रधानमंत्री थे. उन्हें इस लीक के सामने आने के कुछ ही दिन पहले यूरोपियन कमिशन का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था. उनका कहना था कि उन्होंने कर टालने को बढ़ावा नहीं दिया.
यूरोपियन यूनियन के आलोचकों ने उनके और उनके आयोग के खिलाफ़ निंदा प्रस्ताव पेश किया मगर वह ख़ारिज हो गया. मगर ईयू ने जांच की और 2016 में यूरोपियन यूनियन के लिए एकीकृत कर योजना प्रस्तावित की, जिसे अभी भी अमली जामा पहनाया जाना बाक़ी है.
डेटा किसने लीक किया?
फ्रेंचमैन एंटोनी टेल्टॉर, जो कि प्राइसवॉटर हाउसकूपर्स के पूर्व कर्मचारी थे, इस डेटा को लीक करने वाले मुख्य शख़्स थे. उनका कहना था कि जनहित में उन्होंने ऐसा किया है. इसी कंपनी के एक अन्य कर्मचारी रफ़ाएल हालेट ने उनकी मदद की थी.
इन दोनों पर पत्रकार एडुअर्ड पेरिन के साथ लक्समबर्ग में PwC की शिकायत के आधार पर मुकदमा चला था. शुरू में डेल्टॉर को छह महीने की सज़ा सुनाई गई थी कि मगर बाद में फ़ैसले को बदल दिया गया. उन्हें और हालेट पर थोड़ा सा जुर्माना लगा और पेरिन को बरी कर दिया गया.
ऑफ़शोर लीक 2013
यह लीक पनामा पेपर्स लीक के दसवें हिस्से के बराबर था, मगर अंतरराष्ट्रीय कर धोखाधड़ी के सबसे बड़े पर्दाफ़ाश के तौर पर इसे देखा जाता है. आईसीआईजे और इसके न्यूज़ पार्टनर्स ने अप्रैल 2013 में रिपोर्ट को 15 महीनों की पड़ताल के बाद सार्वजनिक किया था.
करीब 25 लाख फ़ाइलों ने वर्जिन आइलैंड्स और कुक आइलैंड्स जैसी जगहों पर एक लाख 20 हज़ार से ज़्यादा कंपनियों और ट्रस्टों के नाम उजागर किए थे.
किसका नाम आया था?
हमेशा की तरह राजनेताओं, सरकारी अधिकारियों और उनके परिजनों के नाम इसमें आए. इनमें रूस के कुछ जाने-माने नाम भी थे. साथ ही चीन, अज़रबाइजान, कनाडा, थाइलैंड, मंगोलिया और पाकिस्तान से भी कुछ नाम थे.
फ़िलीपीन्स के पूर्व दबंग शासक फ़र्डिनैंड मार्कोस के परिवार का नाम भी इसमें आया. वैसे आईसीआईजी ने कहा था कि इन लीक्स से क़ानूनी कार्रवाई के लिए पर्याप्त सबूत नहीं मिलते.
डेटा किसने लीक किया?
आईसीआईजे ने ‘दो फ़ाइनेंशियल सर्विस प्रोवाइडर्स, जर्सी के एक निजी बैंक और बहामस कॉर्पोरेट रजिस्ट्री’ का हवाला सूत्र के तौर पर दिया था. मगर डेटा कहां से मिला, इसकी जानकारी नहीं दी गई थी.
एडवर्ड स्नोडन
एडवर्ड स्नोडन के बारे में अधिक जानकारी आप यहां पा सकते हैं.
पैराडाइज पेपर्स- ये बड़ी संख्या में लीक दस्तावेज़ हैं, जिनमें ज़्यादातर दस्तावेज़ आफ़शोर क़ानूनी फर्म ऐपलबी से संबंधित हैं. इनमें 19 तरह के टैक्स क्षेत्र के कारपोरेट पंजीयन के पेपर भी शामिल हैं. इन दस्तावेज़ों से राजनेताओं, सेलिब्रेटी, कारपोरेट जाइंट्स और कारोबारियों के वित्तीय लेनदेन का पता चलता है.
1.34 करोड़ दस्तावेज़ों को जर्मन अख़बार ने हासिल किया है और इसे इंटरनेशनल कंसोर्शियम ऑफ़ इंवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स (आईसीआईजे) से शेयर किया है. 67 देशों के क़रीब 100 मीडिया संस्था से इसमें शामिल हैं, जिसमें गार्डियन भी शामिल है. बीबीसी की ओर से पैनोरमा की टीम इस अभियान से जुड़ी है. बीबीसी के इन दस्तावेज़ों को मुहैया कराने वाले स्रोत के बारे में नहीं जानती.
-BBC

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