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Friday 10 November 2017

Movie Review: इरफान-पार्वती के जोरदार अभिनय वाली फिल्‍म है करीब करीब सिंगल

नई दिल्‍ली। आज ‘करीब करीब सिंगल रिलीज हो गई, Movie Review अच्‍छे हैं। नए कॉन्सेप्ट, जोरदार इरफान और कमजोर क्लाइमेक्स का कॉकटेल लगती है ‘करीब करीब सिंगल’।

फिल्म में इरफान खान ने योगी का किरदार इतने धमाकेदार अंदाज में निभाया है कि पहला हाफ तूफान की तरह गुजर जाता है और ऐसा लगता है कि फिल्म जबरदस्त है. लेकिन सेकंड हाफ थोड़ा निराश कर देता है. यहां आकर कहानी बैक सीट पर पहुंच जाती है.

फिल्म की कहानी इरफान और पार्वती की है. पार्वती के पति का निधन हो चुका है और वह अकेले जिंदगी जी रही है. लोग अपने काम निकालने के लिए उसका इस्तेमाल करते हैं.

इरफान-पार्वती की नई फिल्म करीब-करीब सिंगल हरिद्वार से राजस्थान होते हुए गंगटोक जाती है। यह सफर कभी आपके चेहरे पर मुसकान लाता है तो कभी आपकी उम्मीदों को अधूरा छोड़ देता है। अभिनय के लिहाज से इरफान-पार्वती प्रभावित करते हैं।

हालिया रिलीज फिल्म करीब-करीब सिंगल की हीरोइन जया शशिधरन (पार्वती) का किरदार भी ऐसा ही है बिल्‍कुल नई हीरोइन की तरह, उसका वजन हममें से ज्यादातर लड़कियों की तरह या तो बहुत ज्यादा है या बहुत कम है और इस बात से वह कोई परेशान-वरेशान नहीं है।

पिछले दिनों आई दम लगा के हैशा और टॉयलेट एक प्रेमकथा की भूमि पेडनेकर और न्यूटन की अंजलि पाटिल इसी किस्म के किरदारों में दिखी हैं। इन किरदारों में एक अलग ही सुकून है, आम लड़कियों को ये हिम्मत देते हैं कि वे भी अपनी जिंदगी की हीरोइन बन सकती हैं।

फिल्‍म की कहानी

चर्चित निर्देशक तनूजा चंद्रा आठ साल के लंबे अंतराल के बाद लौटी हैं इस रोमांटिक कॉमेडी फिल्म करीब-करीब सिंगल के साथ। फिल्म में ताजगी तो है, पर स्क्रीनप्ले और एडिटिंग के मामले में यह कई जगह लड़खड़ाती भी है। एक इंश्योरेंस कंपनी में काम करने वाली 35 वर्षीया जया शशिधरन की जिंदगी में सब कुछ है सिवाए एक लाइफ पार्टनर के। उसके पति की मृत्यु हो चुकी है। उसके दोस्त उसे डेटिंग के लिए उकसाते रहते हैं और वह खुद को। अपनी जिंदगी को लेकर वह काफी दुविधा में रहती है। फिर एक दिन वह खुद को मना ही लेती है ‘अब तक सिंगल’ नाम की डेटिंग वेबसाइट में अपना खाता खोलने के लिए। इस वेबसाइट के जरिये वह मिलती है योगेंद्रकुमार धीरेंद्रनाथ प्रजापति उर्फ योगी (इरफान खान) से, जो कि खुद को कवि बताते हैं। योगी की छह किताबें छप चुकी हैं पर बिकी उनमें से एक भी नहीं। योगी वह सब कुछ है जो जया नहीं है। भड़कीले कपड़े पहनने वाला, खिलंदड़, गलत ट्रेन में भी ताश की महफिल जमा लेने वाला। मुलाकात के दौरान योगी बार-बार अपनी तीन गर्लफ्रेंड्स का जिक्र करता है और दावा करता है कि अगर वह उनके सामने गया तो वे जरूर फूट-फूट कर रोएंगी। बार-बार उनका जिक्र सुनकर जया जरा पक जाती है और सुझाव देती है कि ‘जाकर उनसे मिल आइए’। आइडिया योगी को पसंद आ जाता है और वह तुरंत जया से भी साथ चलने की फरमाहिश कर देते हैं। कुछ दिनों की जद्दोजहद के बाद जया तैयार हो जाती हैं और दोनों निकल पड़ते हैं हरिद्वार से राजस्थान होते हुए गंगटोक तक की यात्रा पर।

सफर पर आधारित हर फिल्म की तरह यह फिल्‍म भी कुछ न कुछ कहना चाहती है। सफर का हर पड़ाव किरदारों की जिंदगी में कोई न कोई घुमावदार मोड़ बनकर आता है। या कम से कम ऐसा होने की उम्मीद दर्शक के मन में होती है। पर करीब-करीब सिंगल में कई बार ऐसा होते-होते रह जाता है।

-एजेंसी

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