नई दिल्ली। नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल (NGT) ने दिल्ली सरकार की ऑड-ईवन स्कीम को हरी झंडी दे दी है, लेकिन ट्राइब्यूनल ने इसे लागू करने में कुछ शर्तें भी लगाई हैं।
जैसे इस स्कीम में टू-व्हीलर्स, महिलाओं और सरकारी कर्मचारियों को छूट नहीं दी जाएगी। इसमें ऐंबुलेंस और इमरजेंसी सर्विसेज के लिए छूट रहेगी। ट्राइब्यूनल ने अपने फैसले में इस बार किसी को भी इस योजना के तहत छूट नहीं दी है। ट्राइब्यूनल ने फैसले में कहा कि भविष्य में भी 48 घंटे के ऑब्जर्वेशन के दौरान पीएम-10 500 और पीएम-2.5 300 से ऊपर जाएगा तो यह स्कीम खुद-ब-खुद लागू होगी। साथ ही कोर्ट ने कहा कि अनुमान के अनुसार 48 घंटे तक बारिश नहीं होती है तो किसी माध्यम से पानी का छिड़काव भी कराना होगा।
इससे पहले NGT ने दिल्ली सरकार के इस फैसले पर कई सवाल दागे थे। ट्राइब्यूनल ने पूछा था कि आखिर यह फैसला इतनी जल्दबाजी में क्यों लिया गया। सेंट्रल पलूशन कंट्रोल बोर्ड और दिल्ली पलूशन कंट्रोल कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि चार पहिया वाहनों के मुकाबले टू-व्हीलर्स से ज्यादा प्रदूषण होता है। कुल प्रदूषण में 20 प्रतिशत योगदान टू-व्हीलर्स से ही होता है। एनजीटी का मानना है कि पानी का छिड़काव प्रदूषण को नियंत्रित करने का बेहतर आइडिया है। ट्राइब्यूनल ने यूपी सरकार से भी पूछा कि नोएडा और ग्रेटर नोएडा में पर्यावरण के नियमों का उल्लंघन करने वाले कितने लोगों के चालान काटे गए।
अथॉरिटीज में नहीं है तालमेल
एनजीटी ने कहा कि शहर के सभी बड़े ट्रैफिक सिग्नल पर ट्रैफिक पुलिस के लगाया जाए और वे यह देखें कि उन जगहों पर कितने डीजल वाहन ऐसे हैं जो 10 साल से पुराने हैं और कितने पेट्रोल वाहन ऐसे हैं जो 15 साल पुराने हैं। ट्राइब्यूनल ने कहा कि यह काफी तकलीफ पहुंचाने वाला है कि अथॉरिटीज और स्टेकहोल्डर के बीच इसे लेकर कोई तालमेल नहीं है, और दूसरी बात सरकार लोगों को पर्यावरण और प्रदूषण के प्रति लोगों को जागरूक करने की कोशिश नहीं कर रही है।
10 दिन पहले क्यों नहीं लिया फैसला?
शनिवार को सुनवाई के दौरान एनजीटी ने दिल्ली सरकार से पूछा कि आखिर ऑड ईवन योजना को तब शुरू क्यों नहीं किया गया, जब प्रदूषण अपने पीक पर था। ट्राइब्यूनल ने पूछा कि यह फैसला 10 दिन पहले क्यों नहीं लिया गया। सुनवाई में सेंट्रल पलूशन कंट्रोल बोर्ड ने ट्राइब्यूनल को बताया कि उन्होंने मौखिक तौर पर दिल्ली सरकार को चेताया था, हालांकि दिल्ली सरकार ने इस बात को नकार दिया। एनजीटी ने केंद्र और दिल्ली सरकार से पूछा है कि किसी एक बड़े शहर का नाम बताइए जहां पीएम-10 का स्तर 100 से नीचे हो। NGT ने दिल्ली सरकार से उस लेटर को दिखाने को कहा जिसके आधार पर ऑड-ईवन का फैसला लिया गया। ट्राइब्यूनल ने पूछा कि क्या एलजी की सहमति इस पर ली गई थी?
लोगों के सब्र की परीक्षा न लें
एनजीटी ने कहा कि लोगों के सब्र की परीक्षा न लें। ट्राइब्यूनल ने दिल्ली सरकार से कहा कि जब आंकड़े दिखा रहे हैं कि बारिश न होने की वजह से प्रदूषण का स्तर बढ़ा है तो इस दिशा में अब तक कोई कदम क्यों नहीं उठाया गया। अब ट्राइब्यूनल की सख्ती के बाद यह कदम उठाया जा रहा है। एनजीटी ने दिल्ली सरकार से पूछा कि क्या हमें मान लेना चाहिए कि सरकार ऑड-ईवन के फायदे को लेकर आश्वस्त है और इसके बाद लोगों को भी कोई परेशनी नहीं होगी। ट्राइब्यूनल ने पूछा इस स्कीम को लागू करने के पीछे आपका उद्देश्य क्या है? इसके अलावा पूछा कि ऑड-ईवन का आइडिया किसी अधिकारी की तरफ से आया था या दिल्ली सरकार ने यह फैसला लिया था। यह भी बताएं कि किस स्टडी के आधार पर इस स्कीम को लागू करने का फैसला लिया?
किस आधार पर टू-वीलर्स को छूट?
गौरतलब है कि एनजीटी ने ऑड-ईवन सिस्टम को लेकर शुक्रवार को दिल्ली सरकार से कई सवाल किए थे। ट्राईब्यूनल ने पूछा था, क्या आप पीएम-2.5 के 300 और पीएम-10 के 500 mgcm के ऊपर जाने पर हर बार ऑड-ईवन लाएंगे? टू-वीलर्स, महिला ड्राइवर्स को छूट क्यों दी गई? IIT की स्टडी बताती हैं कि 46 पर्सेंट प्रदूषण टू-वीइलर्स से होता है? जिन 500 अतिरिकत बसों को लाया जा रहा है, उनमें कितनी डीजल की हैं? पिछले आदेशों का पालन क्यों नहीं हुआ?
एनजीटी ने दिल्ली सरकार के इस फैसले पर कई सवाल उठाए थे। केंद्र और दिल्ली पलूशन बोर्ड के आंकड़ों को देखने के बाद ट्राइब्यूनल ने कहा था कि पिछली बार ऑड-ईवन सिस्टम लागू होने के बाद भी पीएम-10 और पीएम-2.5 पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा था। दिल्ली सरकार के वकील ने बताया कि वह सुप्रीम कोर्ट से गठित एनवायरनमेंट प्रॉटेक्शन ऐंड कंट्रोल अथॉरिटी (EPCA) के निर्देशों का पालन करते हुए ही ऑड-ईवन लागू कर रहे हैं। एनजीटी ने फटकार लगाते हुए कहा कि ईपीसीए ने तमाम निर्देश दिए हैं लेकिन आपने 99 निर्देशों का पालन नहीं किया, सिर्फ ऑड-ईवन लागू कर दिया, जैसे कोई पिकनिक हो।
-एजेंसी
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