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Saturday 4 November 2017

पलानी मुरुगन मंदिर | Palani Murugan Temple

Palani Murugan Temple – पलानी अरुल्मिगु श्री धन्दयुथापनी मंदिर मुरुगन के छः निवासस्थानो में से एक है। यह भारत के तमिलनाडु राज्य के मदुराई के उत्तर-पश्चिम में पायी जाने वाली पलानी पहाडियों और कोइम्बतुर के दक्षिण-पूर्व से 100 किलोमीटर की दुरी पर डिंडीगुल के पलानी गाव मे स्थित है। पलानी मंदिर को पंचमित्रम का पर्यायी भी माना जाता है, जो पांच घटकों से बना हुआ एक मिश्रण है।
Palani Murugan temple

पलानी मुरुगन मंदिर – Palani Murugan Temple

हिन्दू किंवदंतियों के अनुसार, एक बार नादर मुनि भगवान शिव को ज्ञान का फल चढाने के लिए कैलाश पर्वत चले गये। उन्होंने उस फल को भगवान शिव के उस पुत्र को देने का निर्णय लिया जो जल्द से जल्द पूरी दुनिया के एक चक्कर लगाकर वापिस आएगा। इस चुनौती को स्वीकार कर कार्तिकेय ने अपने वाहन मोर को लेकर इस सृष्टि का चक्कर लगाना शुरू कर दिया।

जबकि गणेशा ने अनुमान लगाया की उनके माता-पिता से बढ़कर और कोई दुनिया नही है और इसीलिए उन्होंने अपने माता-पिता का ही चक्कर लगाया और चुनौती जीतकार ज्ञान का फल भी प्राप्त कर लिया। यह सब जानकार कार्तिकेय अति क्रोधित हो चुके थे और उन्हें इस बात का एहसास हुआ की उन्हें लड़कपन से परिपक्व बनने की जरुरत है और इसीलिए उन्हें पलानी में ही एकांत में रहने की ठानी।

पलानी मुरुगन मंदिर का इतिहास – Palani Murugan Temple History

पलानी में भगवान मुरुगन की प्रतिमा का निर्माण बोगर मुनि ने किया था और साथ ही यह प्राचीन तमिल संस्कृति के 18 महानतम सिद्धो में से एक है। मंदिर के दक्षिण-पश्चिम गलियारे में हमें मुख्य देवता की मूर्ति भी देखने मिलती है। यह मंदिर भूमिगत सुरंग से होकर पहाड़ी के बीच की एक गुफा से जुड़ता है, जहाँ भोगर मुनि ध्यान लगाते थे।

शताब्दियों तक पूजे जाने के बाद देवता की उपेक्षा की गयी और मंदिर पूरी तरह से जंगलो से घिर चूका था। चौथी और पांचवी शताब्दी के बीच यह स्थान चेरा साम्राज्य के राजा पेरूमल के नियंत्रण में था। तभी एक रात राजा अपनी शिकार पार्टी से भटक गये और परिणामस्वरूप उन्हें पहाड़ी के निचे ही शरण लेनी पड़ी।

माना जाता है की उस रात सुब्रह्मण्यम स्वामी उनके सपने में आए थे और उन्होंने राजा को प्रतिमा के पुनर्निर्माण का आदेश भी दिया था। आदेश पाते ही राजा मूर्ति की तलाश में लग गये और ढूंडने के बाद उन्होंने मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया और मंदिर में पुनः पूजा करवाई।

पलानी मुरुगन मंदिर के उत्सव – Palani Murugan Temple Festivals

दैनिक गतिविधियों के अलावा भगवान सुब्रह्मण्यम के विशेष दिनों को भी बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। दक्षिण भारत से तक़रीबन हजारो भक्त हर साल इस मंदिर में देवता के दर्शन के लिए आते है। मंदिर में मनाए जाने वाले मुख्य उत्सवो में थाई-पूसम, पंकुनी-उठ्थिरम, वैखाशी-विशाखम और सूरा-संहारम शामिल है। इनमे से थाई-पूसम मंदिर का सबसे महत्वपूर्ण उत्सव है और यह उत्सव तमिल माह थाई (15 जनवरी-15 फरवरी) में पूर्ण चाँद के दिन मनाया जाता है।

तीर्थयात्री यहाँ संयम की सख्त प्रतिज्ञा लेते है और मुख्य देवता के दर्शन करते है। साथ ही बहुत से तीर्थयात्री अपने कंधो पर कूड़े की लकड़ी (कवडी) भी लाते है। कवडी को असुर हिदुम्बा की याद में लाया जाता है। कुछ तीर्थयात्री तीर्थ-कवडी के नाम से प्रसिद्ध पवित्र पानी लाते है, जिसका उपयोग वे भगवान का अभिषेक करने के लिए करते है। पारंपरिक रूप से यहाँ करैकुदी के लोग अपने साथ करैकुदी के मंदिर के भगवान का हीरे जडित भाला लाते है।

यह मंदिर सुबह 6 से रात 8 बजे तक खुला रहता है, जबकि उत्सव के दिनों में यह मंदिर सुबह 4.30 बजे ही खुल जाता है। मंदिर में रोज छः पूजाए की जाती है।

जो इस प्रकार है –

  • विला पूजा – सुबह 6.30
  • सिरु काल पूजा – सुबह 8 बजे
  • काला संथी – सुबह 9 बजे
  • उत्चिक्कला पूजा – दोपहर 12 बजे
  • राजा अलंकारम – शाम 5.30 बजे
  • इराक्काला पूजा – रात 8 बजे

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