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Friday 15 December 2017

समाज को बदलने की बजाय स्वयं को बदलें- राधाकांत दास

संस्कृति विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने सीखे व्यक्तित्व विकास के गुर

मथुरा। आज लगभग हर इंसान अवसाद से ग्रस्त है। हमारा ज्यादातर तनाव अवांछित होता है। हर इंसान के अंदर दैवीय गुण और आसुरी प्रवृत्ति होती है यदि हम अपने अंतः से आसुरी प्रवृत्ति को दूर कर दें तो सारी समस्या का समाधान अपने आप हो जाएगा। प्रायः देखा जाता है कि हम समाज को बदलने की फिक्र तो करते हैं लेकिन अपने अवगुणों को दूर नहीं करना चाहते, यही हमारी सबसे बड़ी कमी है। बच्चों हम अपने आपको बदल कर ही समाज और देश का भला कर सकते हैं उक्त सारगर्भित उद्गार शुक्रवार को भक्ति वेदांता गुरुकुल एवं अंतरराष्ट्रीय विद्यालय के प्राचार्य राधाकांत दास ने संस्कृति विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए।

प्राचार्य राधाकांत दास ने विद्यार्थियों से कहा कि शिक्षा महज परीक्षा पास करने या नौकरी, रोजगार पाने का साधन नहीं है। शिक्षा विद्यार्थियों के व्यक्तित्व विकास, अन्तर्निहित क्षमताओं के विकास के साथ ही स्वथ्य जीवन निर्माण के लिए भी जरूरी है। शिक्षा प्रत्येक युवा को श्रेष्ठ इंसान बनने की ओर प्रवृत्त करे तभी सार्थक सिद्ध हो सकती है। हम नालेज और स्किल्स पर तो ध्यान देते हैं लेकिन शिक्षा की वैल्यू से अनजान रहते हैं। आप देश के भावी शिक्षक हैं, आपके कंधों पर समाज और देश के समुन्नत विकास की जवाबदेही है। आपका हर क्रिया-कलाप समाज के लिए महत्वपूर्ण है लिहाजा ऐसा करें जो लोगों के लिए नजीर बने। श्री दास ने भगवद् गीता का उदाहरण देते हुए कहा कि यह सिर्फ कागजी दस्तावेज नहीं बल्कि समाज को सही दिशा दिखाने वाला एक महाग्रंथ है।

हम अपने जीवन में कई सारे संकल्प लेते हैं। पढ़ाई के क्षेत्र में उच्चतम अंक लाने के लिए हम दिन-रात एक करते हैं। हमें पढ़ने के साथ ही अपने व्यक्तित्व विकास और सांस्कृतिक मूल्यों को सर्वोपरि मानना चाहिए। आज हमारा समाज कई तरह की समस्याओं से जूझ रहा है, हम शिक्षा के महत्व को स्वीकारते हुए समाज का भला कर सकते हैं। हर किसी की अलग-अलग परिस्थितियां होती हैं लिहाजा दूसरों को नियंत्रित करने से पहले स्वयं को काबू में रखने का काम करें। इस अवसर पर साक्षी पुरुष दास ने विद्यार्थियों का आह्वान किया कि दूसरों के अवगुणों का बखान करने की बजाय उनकी हरसम्भव मदद करें। आप अपनी सहजता और सद्भावना से स्वयं के साथ ही दूसरों का भी जीवन बेहतर कर सकते हैं। इस अवसर पर छात्र-छात्राओं ने कई तरह के प्रश्न भी पूछे जिनका विद्वतजनों ने समाधान किया।

संस्कृति विश्वविद्यालय के शिक्षा संकाय की प्राचार्य जया द्विवेदी ने वक्ताओं का आभार माना।

राधाकांत दास व साक्षी पुरुष दास ने विद्यार्थियों का आह्वान किया कि दूसरों के अवगुणों का बखान करने की बजाय उनकी हरसम्भव मदद करें।

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