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Monday, 30 April 2018

मनकामेश्वर मठ-मंदिर ने धूम धाम से मनाई बुद्ध पूर्णिमा

लखनऊ। मनकामेश्वर मठ-मंदिर परिवार, देव्या चैरिटेबल ट्रस्ट एवं नमोस्तुते माँ गोमती की ओर आज लखनऊ के शाहमीना रोड स्थित गौतम बुद्धा पार्क में बुद्ध पूर्णिमा पर दीपदान कर के भगवान बुद्ध का जन्मोत्सव बड़ी हर्षो-उल्लास के साथ मनाया गया, इस अवसर पर डालीगंज स्थित मनकामेश्वर मठ-मंदिर की महन्त देव्या गिरि, देव्या चैरिटेबल ट्रस्ट के सदस्यों एवं मनकामेश्वर मठ-मंदिर के सेवादारों के साथ वहा पहुंची। 
 
कार्यक्रम का आरम्भ पार्क में स्थित महात्मा बुद्ध की प्रतिमा की साफ़-सफाई से हुआ, तत्पश्चात बड़े ही नियम एवं विधि-विधान पूर्वक पूजा व प्रार्थना का भाव-विभोर कर देने वाला कार्यक्रम आयोजित किया गया। समस्त स्थल को 1001 दीपो एवं फूलों की रंगोली से सुसज्जित किया गया। इस अवसर पर देव्या गिरि ने कहा की महात्मा बुद्ध का सम्पूर्ण जीवन ही आज के लोगो के लिए जीवन जीने का पूर्ण, सफल एवं विस्तृत कोड है, यहाँ पर उनके जीवनी पर प्रकाश डालते हुए कहा की, सच्चा आत्मबोध प्राप्त कर लेने पर इनका नाम ‘बुद्ध’ पड़ गया और उन्होंने संसार में उसका प्रचार करके लोगों को कल्याणकारी धर्म की प्रेरणा देने की इच्छा की। 
 
इसलिए गया से चलकर वे काशीपुरी में चलें आए, जो उस समय भी विद्या और धर्म चर्चा का एक प्रमुख स्थान थी। यहाँ सारनाथ नामक स्थान में ठहरकर उन्होंने तपस्या करने वाले व्यक्तियों और अन्य जिज्ञासु लोगों को जो उपदेश दिया उसका वर्णन बोद्ध धर्म ग्रंथों में इस प्रकार मिलता है। जन्म दुःखदायी होता है। बुढा़पा दुःखदायी होता है। बीमारी दुःखदायी होती है। मृत्यु दुःखदायी होती है। वेदना, रोना, चित्त की उदासीनता तथा निराशा ये सब दुःखदायी हैं। बुरी चीजों का संबंध भी दुःख देता है। आदमी जो चाहता है उसका न मिलना भी दुःख देता है। 
 
संक्षेप में ‘लग्न के पाँचों खंड’ जन्म, बुढा़पा, रोग, मृत्यु और अभिलाषा की अपूर्णता दुःखदायक है।  हे साधुओं ! पीडा़ का कारण इसी ‘उदार सत्य’ में निहित है। कामना- जिससे दुनिया में फिर जन्म होता है, जिसमें इधर- उधर थोडा़ आनंद मिल जाता है- जैसे भोग की कामना, दुनिया में रहने की कामना आदि भी अंत में दुःखदायी होती है। हे साधुओं ! दुःख को दूर करने का उपाय यही है कि कामना को निरंतर संयमित और कम किया जाए। वास्तविक सुख तब तक नहीं मिल सकता, जब तक कि व्यक्ति कामना से स्वतंत्र न हो जाए अर्थात् अनासक्त भावना से संसार के सब कार्य न करने लगे। 
 
पीडा़ को दूर करने के आठ उदार सत्य ये हैं- सम्यक् विचार, सम्यक् उद्देश्य, सम्यक् भाषण, सम्यक् कार्य, सम्यक् जीविका, सम्यक् प्रयत्न, सम्यक् चित्त तथा सम्यक् एकाग्रता। सम्यक् का आशय यही है कि- वह बात देश, काल, पात्र के अनुकूल और कल्याणकारी हो। इस अवसर पर मनकामेश्वर परिवार की ओर से आदित्य मिश्रा, विक्की कश्यप, राजकुमार, हिमांशु गुप्ता, मोहित बाबादीन, दीपू ठाकुर, तरुण, कमल जोशी, आदित्य कश्यप आदि उपस्थित रहे।

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