नई दिल्ली। अनचाहे गर्भ से निजात पाने के लिए महिलाएं और कम उम्र की लड़कियां भी गर्भनिरोधक गोलियों का सहारा ले रही हैं। इसके फायदे और नुकसान के बारे में आप जानते ही होंगे। लेकिन आज जिस चीज के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं उसके बारे में न तो शायद आपने कभी सुना होगा और न ही सोचा होगा।
एक रिसर्च के मुताबिक गर्भनिरोधक गोलियों के सेवन से महिलाओ में मर्दों जैसे लक्षण आने लगते हैं। गर्भ निरोधक गोली में नौ विभिन्न प्रकार के हार्मोन होते हैं, जिनकी वजह से महिलाओं पर मर्दाना प्रभाव पड़ता है। वैज्ञानिकों ने रिसर्च में पाया कि जो महिलाएं गर्भनिरोधक गोलियों का सहारा लेती हैं, उनका दिमाग एक पुरुष की तरह काम करता है और इस तरह की महिलाओं में व्यवहारिक परिवर्तन पाए गए। साथ ही महिलाओं के चेहरे में भी बदलाव देखे गए।
गर्भनिरोधक गोलियों का इतिहास
9 अप्रैल 1903 को न्यूजर्सी में एक ऐसे वैज्ञानिक का जन्म हुआ, जिसने महिलाओं की दुनिया ही बदल दी। वो थे ग्रेगोरी गुडविन पिंकस। बचपन से ही खोजी स्वभाव के पिंकस ने एक ऐसी कॉट्रासेप्टिव पिल बनाई, जिसकी मदद से महिलाएं गर्भवती होने से बच सकती हैं। ग्रेगोरी की उत्सुकता हार्मोनल चेंज और रिप्रोडक्शन प्रोसेस में होने वाले बदलाव में थी। रिप्रोडक्शन प्रक्रिया को क्या बीच में रोका जा सकता है, गर्भधारण को रोका जा सकता है आदि जैसे सवालों के जवाब ढूंढने के लिए ग्रेगोरी हर दिन शोध करते रहे। अपने रिसर्च के दौरान साल 1934 में उन्हें पहली बार इस क्षेत्र में बड़ी कामयाबी मिली, जब खरगोश में विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) प्रोड्यूस करने में वो कामयाब हुए।
गर्भनिरोधक गोलियां कैसे करती हैं काम
हमें अक्सर बताया जाता है कि गोली में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन होता है। लेकिन किसी भी गोली में इस तरह का कोई हार्मोन नहीं पाया जाता है। इसका कारण यह है कि मौखिक रूप से लिए जाने पर, एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरोन व्यावहारिक होने के लिए बहुत जल्दी टूट जाते हैं। इसकी जगह, गर्भनिरोधक गोलियों में कृत्रिम स्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन होते हैं, जो अधिक स्थिर हार्मोन से बने होते हैं और जो असली हार्मोन की तरह ही होते हैं। बाजार में संयुक्त गोली के प्रत्येक ब्रांड में सिंथेटिक एस्ट्रोजेन, एथिनिल एस्ट्रैडियोल और आठ सिंथेटिक प्रोजेस्टेरोनों में से एक होता है, जिसे प्रोजेस्टिन कहा जाता है।
एथिनिल एस्ट्रैडियोल गर्भाशय में मौजूद अंडों को निषेचित होने से रोक देता है, जबकि प्रोजेस्टिन गर्भाशय के प्रवेश द्वार पर गर्भाशय को मोटा करते हैं और गर्भ को ठहरने नहीं देते। हालांकि, गर्भावस्था को रोकने में हार्मोन प्रभावी होते हैं, लेकिन वे हमारे प्राकृतिक हार्मोन के साथ सही से मिल नहीं पाते हैं। जिसके कारण इन सिंथेटिक हार्मोन का हमारे शरीर पर बुरा प्रभाव पड़ता है। ये भी हो सकता है कि इसकी वजह से आपके शरीर में कभी प्राकृतिक प्रोजेस्टेरोन न बन पाए।
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