Ashvin Sankashti Chaturthi Vrat Katha In Hindi| Ashvin Month Sankashti Chaturthi Story | Vrat Vidhi | संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाता है । आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाने वाला व्रत, आश्विन इसे संकठा चतुर्थी भी कहते हैं । इस दिन सिर्फ फलाहार करें । हल्दी और दूब का हवन करे । यह सब संकटों को दूर करने वाला और मनोकामना सिद्ध करने वाला है। इस दिन क्रोध, घमण्ड, पाखण्ड न करें। सन्यम से रहें।संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कहलाता है। भविष्य पुराण में कहा गया है कि जब मन संकटों से घिरा महसूस करे, तो गणेश चतुर्थी का व्रत करें । इससे कष्ट दूर होते हैं और धर्म, अर्थ, मोक्ष, विद्या, धन व आरोग्य की प्राप्ति होती है ।
आश्विन मास संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा | Ashvin Sankashti Ganesh Chaturthi Vrat Katha
श्रीकृष्ण तथा बाणासुर की कथा | युधिष्ठिर ने पूछा कि हे कृष्ण जी! मैंने सुना है कि आश्विन कृष्ण चतुर्थी को संकटा चतुर्थी कहते हैं। उस दिन किस भाँती गणेश जी की पूजा करनी चाहिए? हे जगदीश्वर! आप कृपा करके मुझसे विस्तार पूर्वक कहिए।
श्री कृष्ण जी ने उत्तर में कहा कि प्राचीन काल में यही प्रश्न पार्वती जी ने गणेश जी से किया था की हे देव! आश्विन मास में किस प्रकार गणेश जी की पूजा की जाती हैं? उसके करने का क्या फल होता हैं? मेरी जानने की इच्छा है।
यह सुनकर गणेशजी ने कहा हे माता! सिद्धि की कामना रखने वाले व्यक्ति को चाहिए कि आश्विन मास में कृष्ण नामक गणेश की पूजा पूर्वोक्त विधि से करें। इस दिन भोजन न करें तथा क्रोध, पाखण्ड, लोभ आदि का परित्याग कर गणेश जी के स्वरुप का ध्यान करते हुए भोजन करें। आश्विन कृष्ण चतुर्थी का व्रत संकटनाशक है। इस दिन हल्दी और डूब का हवन करने से सप्तद्वीप वाली पृथ्वी का राज प्राप्त होता हैं।
एक समय की बात है कि बाणासुर की कन्या उषा ने सुषुप्तावस्था में अनिरुद्ध का स्वपन देखा, अनिरुद्ध के विरह से वह इतनी कामासक्त हो गई कि उसके चित को किसी भी प्रकार से शान्ति नहीं मिल रही थी। उसने अपनी सहेली चित्रलेखा से त्रिभुवन के सम्पूर्ण प्राणियों के चित्र बनवाए। जब चित्र में अनिरुद्ध को देखा तो कहा- मैंने इसी व्यक्ति को स्वपन में देखा था। इसी के साथ मेरा पाणिग्रहण भी हुआ था। हे सखी! यह व्यक्ति जहाँ कही भी मिल सके, ढूंढ लाओ। अन्यथा इसके वियोग में मैंने अपने प्राण छोड़ दूंगी।
अपनी सखी की बात सुनकर चित्रलेखा अनेक स्थानों में खोज करती हुई द्वारकापुरी में आ पहुंची। वहां अनिरुद्ध को पहचानकर उसने उसका अपरहण कर लिया, वह राक्षसी माया जानने वाली थी। रात्रि में पलंग सहित अनिरुद्ध को उठाकर वह गोधूलि वेला में बाणासुर की नगरी में प्रविष्ट हुई। इधर प्रधुम्न को पुत्र शोक के कारण असाध्य रोग से ग्रसित होना पड़ा। अपने पुत्र प्रधुम्न एवं पौत्र अनिरुद्ध की घटना से कृष्ण जी भी विकल हो उठे। रुक्मिणी भी पौत्र के दुःख से दुखी होकर बिलखने लगी पतिव्रता रुक्मणि खिन्न मन से कृष्ण जी से कहने लगी कि हे नाथ! हमारे प्रिय पौत्र का किसने हरण कर लिया? अथवा वह अपनी इच्छा से ही कहीं गया है। मैं आपके सामने शोकाकुल हो अपने प्राण छोड़ दूंगी। रुक्मिणी की ऐसी बात सुनकर श्रीकृष्ण जी यादवों की सभा में उपस्थित हुए। वहाँ उन्होंने परम तेजस्वी लोमश ऋषि के दर्शन किए। उन्हें प्रणाम कर श्रीकृष्ण ने सारी घटना कह सुनाई।
श्रीकृष्ण ने लोमश ऋषि से पूछा कि मुनिवर! हमारे पौत्र को कौन ले गया? वह कहीं स्वयं तो नहीं चला गया है? हमारे बुद्धिमान पौत्र का किसने अपरहण कर लिया, यह बात मैं नहीं जानता हूँ। उसकी माता पुत्र वियोग के कारण बहुत दुखी हैं। कृष्ण जी की बात सुनकर लोमश मुनि ने कहा कि हे कृष्ण! बाणासुर की कन्या उषा की सहेली चित्रलेखा ने आपके पौत्र का अपरहण किया हैं और उसे बाणासुर के महल में छिपा के रखा हैं। यह बात नारद जी ने बताई हैं। आप आश्विन मास के कृष्ण चतुर्थी संकटा का अनुष्ठान कीजिये। इस व्रत के करने से आपका पौत्र अवश्य ही आ जाएगा। ऐसा सुनकर मुनिवर वन में चले गए। श्रीकृष्ण जी ने लोमश ऋषि के कथानुसार व्रत किया। हे देवी! इस व्रत के प्रभाव से उन्होंने अपने शत्रु बाणासुर को पराजित कर दिया। यद्धपि उस भीषण युद्ध में मेरे पिता ( शिवजी) ने बाणासुर की बड़ी रक्षा की फिर भी वह परास्त हो गया। भगवान् कृष्ण ने कुपित होकर बाणासुर की सहस्त्र भुजाओं को काट डाला। ऐसी सफलता मिलने का कारण व्रत का प्रभाव ही था। श्री गणेश जी को प्रसन्न करने तथा सम्पूर्ण विघ्न को शमन करने के लिए इस व्रत के सामान कोई दूसरा व्रत नहीं हैं।
श्रीकृष्ण जी कहते हैं कि हे राजन! सम्पूर्ण विपत्तियों के विनाशार्थ इस व्रत को अवश्य ही करना चाहिए। इसके प्रभाव से शत्रुओं पर आप विजय लाभ करेंगे एवं राज्याधिकारी होंगे। इस व्रत के महात्म्य का वर्णन बड़े-बड़े विद्वान् भी नहीं कर सकते। हे कुंती पुत्र! मैंने इसका स्वाम अनुभव किया है, यह मैं आपसे सत्य कह रहा हूँ।
आश्विन मास गणेश संकष्टी चतुर्थी व्रत पूजन विधि | Ashvin Month Ganesh Chaturthi Vrat Vidhi –
प्रात: काल उठकर नित्य कर्म से निवृत हो स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें। श्री गणेश जी का पूजन पंचोपचार (धूप,दीप, नैवेद्य,अक्षत,फूल) विधि से करें। इसके बाद हाथ में जल तथा दूर्वा लेकर मन-ही-मन श्री गणेश का ध्यान करते हुये व्रत का संकल्प करें। संध्या होने पर दुबारा स्नान कर स्वच्छ हो जायें। श्री गणेश जी के सामने सभी पूजन सामग्री के साथ बैठ जायें। विधि-विधान से गणेश जी का पूजन करें। वस्त्र अर्पित करें। नैवेद्य के रूप में लड्डू अर्पित करें। चंद्रमा के उदय होने पर चंद्रमा की पूजा कर अर्घ्य अर्पण करें। उसके बाद गणेश चतुर्थी की कथा सुने अथवा सुनाये। दूब तथा हल्दी से हवन करें। तत्पश्चात् गणेश जी की आरती करें। भोजन के रूप में केवल फलाहार करें।
यह भी पढ़े –
चैत्र संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा | चैत्र मास संकष्टी चतुर्थी की कहानी
The post आश्विन संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा | आश्विन मास संकष्टी चतुर्थी की कहानी appeared first on AjabGjab.
No comments:
Post a Comment