नई दिल्ली। देश भर से बड़ी संख्या में यहां रविवार को जमा हुए बुजुर्गो और दिव्यांगों ने अपनी मांगों के समर्थन में विरोध प्रदर्शन किया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर पेंशन के अधिकार को सुरक्षित करने में विफल रहने का आरोप लगाया। संसद मार्ग पर जुटे प्रदर्शनकारियों में ज्यादातर मजदूर और अकेली रहने वाली महिलाएं शामिल थीं। उन्होंने केंद्र सरकार से उनकी पेंशन प्रति माह 3,000 रुपये तक बढ़ाने और बायोमीट्रिक सत्यापन को हटाने की भी मांग की।
राजस्थान, बिहार, महाराष्ट्र, झारखंड, तेलंगाना, कर्नाटक और तमिलनाडु से ये प्रदर्शनकारी यहां पहुंचे थे।
ग्रामीण विकास मंत्रालय के सचिव पद से सेवानिवृत्त हुए नरेश चंद्र सक्सेना ने कहा कि केंद्र सरकार की मौजूदा पेंशन नेपाल, बोलीविया और बोत्सवाना जैसे अपेक्षाकृत कम विकसित देशों की तुलना में काफी कम है।
सक्सेना ने कहा, “हमारा बजट 40 लाख करोड़ रुपये का है। बजट का सिर्फ एक प्रतिशत 40,000 करोड़ रुपये खर्च कर दें, तो कम से कम बुजुर्गों की जरूरतें पूरी हो जाएंगी।“
तेलंगाना की दिहाड़ी मजदूर बोडारू सत्यम्मा (60) ने कहा कि उनका जीवन अधर में लटक गया है, क्योंकि बॉयोमीट्रिक सत्यापन मशीन उनकी अंगुलियों के निशान पहचानने में नाकाम रही।
सत्यम्मा ने कहा, “मुझे पिछले तीन महीने से पेंशन नहीं मिली है, क्योंकि मशीन मेरे अंगुलियों के निशान नहीं पढ़ पा रही है। सत्यम्मा ने मशीन को हटाए जाने की मांग की।“
पेंशन परिषद के समन्वयक निखिल डे ने कहा, “2006-2007 के बाद से अभी भी वहीं 200 रुपये पेंशन दी जा रही है और इसकी सबसे खराब शर्त यह है कि लक्षित लाभार्थी परिवार गरीबी रेखा से नीचे होना चाहिए।“
डे ने कहा, “केंद्र सरकार सोचती है कि पेंशन देना भिखारी के एक समूह को दान देने का काम है।
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