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Sunday 30 September 2018

योगी राज या ‘गोली राज’ ?


तनवीर जाफ़री

पुलिस के साथ असली या नकली मुठभेड़ों में अपराधियों या बेकुसूर लोगों के मार गिराए जाने का इतिहास काफी पुराना है। कई दशकों से उत्तर प्रदेश पुलिस इस विषय को लेकर देश की सबसे विवादित राज्य पुलिस रही है। परंतु गत् कुछ वर्षों से ऐसा महसूस किया जाने लगा है कि अब संभवत: इस प्रकार के पुलिस इनकाऊंटर अकारण तथा फर्जी हो रहे हैं। खासतौर पर उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद इस तरह की फर्जी मुठभेड़ों में काफी तेज़ी आई है। विश्लेषकों का एक बड़ा वर्ग इन मुठभेड़ों को सांप्रदायिकता तथा जातिवाद के पहलू से भी जोडक़र देख रहा है। इसकी वजह यह है कि प्रदेश में होने वाली अधिकांश मुठभेड़ों में सबसे अधिक मौतें धर्म विशेष व जाति विशेष के लोगों की ही हुई हैं। परंतु इन दिनों उत्तर प्रदेश पुलिस के हौसले जिस प्रकार बुलंद दिखाई दे रहे हैं उससे ऐसा नहीं मालूम होता कि उत्तर प्रदेश पुलिस किसी धर्म या जाति विशेष के लोगों को ही निशाना बना रही है बल्कि नरभक्षी होती जा रही यह पुलिस किसी भी समय किसी भी स्थान पर किसी भी कारण से किसी भी व्यक्ति की छाती पर गोली चला सकती है। कम से कम पिछले दिनों उत्तर प्रदेश में एक होनहार प्रतिभाशाली एवं उज्जवल भविष्य रखने वाले नवयुवक विवेक तिवारी की पुलिस द्वारा सरेआम की गई हत्या तो यही साबित करती है।

विवेक तिवारी उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में प्रसिद्ध मोबाईल कंपनी एप्पल में मैनेजर के पद पर कार्यरत थे। वे देर रात अपने दफ्तर से घर वापस आ रहे थे। रास्ते में पुलिस कर्मियों द्वारा मुठभेड़ में उनकी हत्या कर दी गई। खबरों के मुताबिक विवेक तिवारी को बिल्कुल करीब से सिर के पास गोली मारी गई। वे उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जि़ले से संबंध रखते थे तथा मेरठ से एमबीए की परीक्षा पास की थी। िफलहाल वे अपनी नौकरी के सिलसिले में अपनी पत्नी तथा दो बच्चियों के साथ राजधानी लखनऊ में प्रवास कर रहे थे। पुलिस द्वारा की गई इस हत्या के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस के अपराधी चरित्र को लेकर एक बार फिर सुिर्खयों में आ गया है।

योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली तथा उनकी राजनैतिक कार्यक्षमता पर सवाल उठने लगे हैं। कुछ लोगों का तो यह भी मानना है कि उत्तर प्रदेश पुलिस के दिनों-दिन बिगड़ते जा रहे इस चरित्र को मुख्यमंत्री का पूरा संरक्षण हासिल है। योगी राज के दौरान प्रदेश में इतनी फर्जी मुठभेड़ें सामने आई हैं कि गत् जुलाई माह में देश के सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार से पुलिस एनकाऊंटर के संबंध में जवाब दािखल करने को भी कहा था। इस पर भाजपा की ओर से यह सफाई दी गई थी कि प्रदेश में जो कुछ भी घटित हो रहा है वह उत्तर प्रदेश सरकार के अपराध के प्रति ‘ज़ीरो टालरेंस’ का परिणाम है। उत्तर प्रदेश में गत् 18 महीनों में अर्थात् योगी शासन के दौरान अब तक दो हज़ार से अधिक पुलिस मुठभेड़ों के मामले सामने आए हैं। जिनमें साठ लोग मारे जा चुके हैं।

दरअसल किसी भी प्रदेश की पुलिस तथा पुलिस मुखिया अपने शासक के स्वभाव,उसके चरित्र,उसकी मंशा तथा उसके इरादों व नीयत आदि को भांपकर ही अपनी कार्यशैली निर्धारित करते हैं। अब यहां यह बताने की आवश्यकता नहीं कि स्वयं योगी आदित्यनाथ किस चरित्र के स्वामी हैं तथा उनपर किन-किन अपराध में कितने मुकद्दमे चल रहे हैं। ऐसे व्यक्ति के सत्ता के शीर्ष पद पर बैठने के बाद जब इनके मुंह से यह निकले कि-‘अपराधी या तो जेल में होंगे या ठोंक दिए जाएंगे’। इस प्रकार की भाषा न तो संवैधानिक भाषा है न ही संविधान के किसी सर्वोच्च पद खासतौर पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री जैसे जि़म्मेदार पद पर बैठे व्यक्ति को तो कतई शोभा नहीं देती। परंतु योगी ने इसी भाषा में अपनी नीयत का इज़हार किया और सरकारी प्रवक्ता ने योगी की इस भाषा का समर्थन करते हुए यह तक कहा कि ‘पुलिस पर गोली चलाने वालों को उन्हीं की भाषा में जवाब दिया जाएगा। गोली चलाने वाले अपराधियों को बख्शा नहीं जाएगा।’ सरकार की इस प्रकार की पुलिस संरक्षणवादी नीति ने पुलिस के हौसले अब इतने बुलंद कर दिए हैं कि चाहे कोई व्यक्ति अपराधी हो या आम आदमी उसे अब किसी भी बेगुनाह व्यक्ति की छाती भेदने में कोई हिचकिचाहट महसूस नही हो रही है। विवेक तिवारी की हत्या तो कम से कम यही प्रमाणित कर रही है।

हालांकि विवेक की हत्या करने वाले सिपाही व उसके सहकर्मी के विरुद्ध हत्या का मुकद्दमा दर्ज कर दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया है तथा परिवार को सांत्वना देने के उपाय भी किए जा रहे हैं। मृतक की पत्नी को नौकरी तथा पच्चीस लाख रुपये मुआवज़े की पेशकश किए जाने की भी खबरें हैं। परंतु साथ-साथ हत्यारे पुलिस कर्मियों की ओर से भी अपना पक्ष बताया जाने लगा है और उनके बचाव में सबसे पहला घिसा-पिटा तर्क फिर वही सुना जा रहा है कि पुलिस वालों को आत्मरक्षा में गोली चलानी पड़ी। हद तो यह है कि अब पुलिसकर्मी अपने बचाव में विवेक तिवारी पर चरित्र हनन जैसे आरोप भी मढ़ रहे हैं जोकि कथित रूप से उसकी हत्या का कारण बना। जबकि मृतक की पत्नी इस प्रकार के किसी भी आरोप को निराधार बता रही है। पुलिस के ऐसे प्रयासों से अभी से यह ज़ाहिर होने लगा है कि भविष्य में विवेक तिवारी भी पुलिस की नज़र में मुठभेड़ में मारा गया एक संदिग्ध अपराधी साबित किया जा सकता है।

पुलिस द्वारा उत्तर प्रदेश में पुलिस मेठभेड़ों या फजऱ्ी मुठभेड़ों के नाम पर की जाने वाली हत्याओं का सिलसिला आिखर कहां खत्म होगा? क्या पुलिस अब भी इस इनकाऊंटर संस्कृति की बदौलत उत्तर प्रदेश में अपराध के आंकड़ों को कम कर पाने में सफल हुई है? क्या मुठभेड़ों में मरने के बाद अपराधियों की संख्या में कोई कमी दर्ज की गई है? और इन सबसे बड़ा सवाल यह कि क्या किसी अपराधी को पुलिस मुठभेड़ के नाम पर मार गिराना कानून व न्यायसंगत है? यदि यह मान भी लिया जाए कि प्रदेश में कुछ वास्तविक मुठभेड़ें भी होती हैं और कई बार अपराधी की तलाश में या किसी अपराधी को पकडऩे के लिए डाली जाने वाली पुलिस दबिश में ऐसी परिस्थितियां पैदा हो जाती हैं कि पुलिस को भी गोली चलाने की ज़रूरत पड़ जाती है। इस प्रकार की अपरिहार्य परिस्थितियों के अतिरिक्त किसी भी दूसरी स्थिति में किसी अपराधी को मार गिराना या उसे मृत्युदंड दे देना कानून को अपने हाथ में लेने के सिवा और कुछ नहीं।

जिस प्रकार उत्तर प्रदेश में पिछली अखिलेश यादव सरकार को गुंडा राज व आतंक का राज बताकर भाजपा ने प्रदेश में कानून व्यवस्था बनाने,अपराध में कमी लाने तथा सुशासन देने का वादा किया था ठीक उसके विपरीत इस समय प्रदेश में भय तथा आतंक का राज कायम होता जा रहा है। अपराधियों द्वारा किए जाने वाले अपराध में तो कमी आने का नाम नहीं ही ले रही बल्कि पुलिस प्रशासन पर अपराध व हत्याएं करने के आरोप दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं।

प्रदेश में धर्म व जाति के नाम पर सामाजिक मतभेद बढ़ता जा रहा है। प्रदेश में मानवाधिकारों की रक्षा की तो बात ही क्या करनी स्वयं मानव रक्षा पर गहरा संकट छाया हुआ है। बड़े अफसोस के साथ यह कहना पड़ता है कि यह प्रदेश का दुर्भाग्य ही है कि आज इसके मुख्यमंत्री व उपमुख्यमंत्री पद पर बैठने वाले दोनों ही नेताओं के स्वयं के अपराधी रिकॉर्ड हैं। कहा जा सकता है कि प्रदेश में इस समय योगी राज नहीं बल्कि गोली राज कायम हो चुका है।

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