नई दिल्ली। दिल्ली के गाजीपुर में कूड़े के पहाड़ से निपटने के लिए कोई उचित कार्रवाई न किए जाने पर हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार को फटकार लगाई। इसकी वजह से दिल्ली वालों को पर्यावरण से जुड़ी कई गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। पीईटी रीसाइकलिंग कंपनी ने एक बयान में कहा कि दिल्ली में कचरे के लिए गाजीपुर (पूर्वी दिल्ली), भलस्वा (उत्तर) और ओखला (दक्षिण) में तीन लैंडफिल हैं। लेकिन इनकी क्षमता कई बरस पहले ही खत्म हो गई थी। दिल्ली में रोजाना करीब 9000 मीट्रिक टन कचरा इकट्ठा होता है। दिक्कत यह है कि शुरुआत में ही कचरे को अलग करने की कोई प्रक्रिया नहीं है, जिससे लैंडफिल में मिथेन जैसी गैस बनती है, जो लगातार आग लगने का कारण बनती है और इससे हवा प्रदूषित होती है।
पीईटी रीसाइकलिंग कंपनी के जेम रिसाइकलिंग के निदेशक सचिन शर्मा ने कहा, “कचरे के पहाड़ के आसपास रहने वाले लोगों को बेहतर व सुरक्षित पर्यावरण देने के लिए सरकार को ऐसी प्रक्रिया बनाने की जरूरत है, जिसमें कचरे डालने से पहले इसे दो श्रेणियों में बांटा जा सके। हमारा कूड़ा दो तरह का होता है, एक को हम रीसाइकल कर सकते हैं, जैसे कि पीईटी बोतलें और दूसरा जिसे रीसाइकल नहीं किया जा सकता, जैसे कि एक बार इस्तेमाल होने वाला प्लास्टिक -स्ट्रा, प्लास्टिक बैग्स इत्यादि।“
उन्होंने कहा, “कचरे को अलग-अलग करने पर इसे रीसाइकलर/ट्रीटमेंट सेंटर भेजना चाहिए। इस समय तकनीक की मदद से कचरे को अलग करना, परिवहन, रीसाइकल और ठोस कचरे से निबटने के लिए बेहतर राजस्व आधारित मॉडल बनाने की जरूरत है। इसके साथ एक बार इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक को बैन करना जरूरी है। सरकार को अपने कर्मचारियों को सही प्रशिक्षण देने की जरूरत है और कचरा बीनने वालों और प्राइवेट रीसाइकलर को साथ जोड़ने की जरूरत है, ताकि कचरे को बेहतर तरीके से मैनेज करके कूड़े के पहाड़ की चुनौती से निपटा जा सके।“
उल्लेखनीय है कि साल 2016 में ठोस कचरा प्रबंधन नियम बनाए गए थे, जिसमें शहर के कचरा प्रबंधन प्रणाली में कचरा बीनने वालों को शामिल करना अनिवार्य है। इन नियमों में कचरे को शुरुआत में अलग करना, रीसाइकलिंग वेस्ट और तकनीकों जैसे कि कम्पोस्टिंग, वेस्ट टू एनर्जी और रिफयूस डिराइवड फ्यूल के बारे में बताया गया है। इसमें कचरे की समस्या से निबटने के लिए निर्माता की जिम्मेदारी की बात भी की गई है।
पंडित दीनदयाल स्मृति संस्था के अध्यक्ष, विनोद शुक्ला ने कहा, “भारत में कचरा प्रबंधन और रीसाइकलिंग में कचरा बीनने वाले महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और उनके बिना देश में कूड़े की समस्या से निपटना गंभीर परेशानी का सबब बन सकता है। कचरा बीनने वाले कचरे को इकट्ठा करके, उसे अलग-अलग करते हैं और फिर कबाड़ बेचने वालों/रीसाइकलर को बेच देते हैं। हमें ऐसा इकोसिस्टम बनाने की जरूरत है, जिसमें शुरुआत में कचरा बीनने वालों, रीसाइकलर की मदद से कूड़े को अलग किया जा सके और कचरे को इकट्ठा करने और मैनेजमेंट इकोसिस्टम में वेस्ट प्रोसेसर महत्वपूर्ण भाग हो, जो नगर निगम संस्थाओं के साथ मिलकर काम करें।“
उन्होंने कहा, “प्लास्टिक को प्रतिबंधित करने के बजाए हमें संगठित तरीके से इकट्ठा करने और रीसाइकलिंग तंत्र पर ध्यान देना चाहिए, जो प्लास्टिक के रीसाइकल को बढ़ावा देता है। इसमें सौ फीसदी रीसाइकल होने वाली पीईटी (पानी, जूस, तेल, कोला बोतले) और एचडीपीई (शैंपू की बोतलें, केमिकल कंटेनर) के शामिल हैं। पर्यावरण को सुरक्षित करने में मददगार कचरा बीनने वालों के पंजीकरण से उनकी सेहत से जुड़े फायदे, सुरक्षा से जुड़े उपकरण और सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध कराने में मदद मिलेगी।
No comments:
Post a Comment