पटना। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यहां बुधवार को 15वें वित्त आयोग की बैठक में कहा कि आयोग व्यवहारिकता के आधार पर बिहार के लिए निर्णय करे। मुख्यमंत्री ने बैठक में कहा, “वित्त आयोग संविधान के दायरे में रहकर काम करता है और पूरे देश के लिए सोचता है। राजस्व का संग्रह और संसाधनों के उचित वितरण के बीच संतुलन स्थापित करता है। देश के हाशिए पर रह रहे व्यक्ति को मुख्यधारा में लाना गांधीजी की भी अवधारणा थी। आर्थिक विकेंद्रीकरण के द्वारा इसे और आसान बनाया जा सकता है।“
बैठक में वित्त आयोग के अध्यक्ष एऩ क़े सिंह, आयोग के सदस्य शक्तिकांत दास, डॉ. अनूप सिंह, डॉ. अशोक लाहिड़ी, सचिव अरविंद मेहता एवं संयुक्त सचिव मुखमित सिंह भाटिया, डॉ़ रवि कोटा एवं आयोग के अन्य प्रतिनिधि शामिल हुए।
मुख्यमंत्री ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग दोहराते हुए कहा, “यहां की समस्या का समाधान विशेष दर्जा मिलने से ही संभव है। अन्य राज्यों की तुलना में यहां प्रति व्यक्ति आय कम है, लेकिन यहां व्यक्तिगत काम के द्वारा लोगों की आमदनी बढ़ी है, जो आंकड़ों में प्रतीत नहीं होता है।“
उन्होंने कहा, “जो राज्य पिछड़े हैं, वहां संसाधनों की कमी है। वहां पर अन्य राज्यों की तरह समानता और समानीकरण के आधार पर संसाधनों का वितरण करना उचित नहीं है। इसके कारण जो राज्य पिछड़े हैं, पिछड़ते ही चले जाएंगे। बिहार राज्य की आबादी अधिक है, इसकी वजह ऐतिहासिक भी है, क्योंकि यह क्षेत्र उपजाऊ था, वातावरण बढ़िया था और अन्य भी कई कारण थे।“
मुख्यमंत्री ने कहा कि बिहार आपदा पीड़ित राज्य है, जहां बाढ़ नेपाल, उत्तराखंड एवं मध्यप्रदेश की नदियों से आती है, जिससे 70 प्रतिशत क्षेत्र बाढ़ से प्रभावित रहता है। उन्होंने कहा कि यह क्षेत्र भूकंप जोन में भी आता है और इसका असर भविष्य में दिख सकता है।
आपदा के लिए केंद्र सरकार से मिलने वाली 500 करोड़ रुपये की राशि बढ़ाने की जरूरत बताते हुए उन्होंने कहा कि “वर्ष 2017 में आई भयानक बाढ़ में 18 लाख पीड़ित परिवारों को छह हजार रुपये प्रति परिवार सहायता राशि उनके खाते में भेजी गई। इस मद में 2400 करोड़ रुपये राज्य सरकार ने अपनी तरफ से व्यय किए थे।“
उन्होंने कहा कि बिहार आपदा पीड़ित राज्य है, इसपर भी विचार किया जाना चाहिए। मुख्यमंत्री ने केंद्र प्रायोजित योजनाओं में राज्य सरकार की राशि खर्च करने पर भी चिंता प्रकट की।
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