कैसे करें आलू की उन्नत वैज्ञानिक खेती | Alienture हिन्दी

Breaking

Post Top Ad

X

Post Top Ad

Recommended Post Slide Out For Blogger

Saturday, 13 October 2018

कैसे करें आलू की उन्नत वैज्ञानिक खेती

भारत की सरकारी नीतियां कहीं और विकसित होती है, जहां की भौतिक और सामाजिक-आर्थिक स्थितियां भारत की स्थितियो से काफी भिन्न होती है एसे में इन समाधानों को अपनाने से हमारी कृषि के लिए किए जाने वाले नवीन आविष्कार प्रभावित होते हैं, ये समाधान लोगों और यहाँ की भौतिक और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों केलिए प्रासंगिक नहीं होते है। इसके परिणाम स्वरूप कुछ नया करने का उत्साह नष्ट होता जा रहा है, और निर्भरता की भावना पैदा कर रहा है।

उपयुक्त मिट्टी
आलू किसी भी अच्छी सिंचीत मिट्ïटी मे उग सकते है क्योंकि ये जमीन के नीचे उगते है और ढीली मिट्टी में उन्हे फैलने में आसानी होती और सांस लेने में आसानी होती है मगर उन्हे गीली मिट्टी बिल्कुल भी पसन्द नहीं है क्योंकि उसमें हवा का प्रवाह अच्छे से नहीं होता है जिससे उन्हे पोषक तत्व सोखने में परेशानी होती है।

जमीन तैयार करना
जमीन तैयार करने के लिए सबसे पहले उसकी 2-3 बार गुड़ाई करके छोड़ देना चाहिए उसके बाद जमीन की जुताई करनी चाहिए ताकी पौधो को अच्छे से नमी मिल पाएं।

खाद का प्रयोग
पौधो को रोपने से पहले मृदा की जरूरत के अनुसार उसमें खाद मिला लेनी चाहिए । इस के लिए मृदा की जांच करा लेनी चाहिए।
आम खाद बनाने की विधि निम्नलिखित है :
1. एकड़ जमीन में 40 किलो नाइट्रोजन का यूरिया के रूप में 2-3 में छिड़काव करना चाहिए । या ड्रिल की सहायता से अमोनियम-सल्फेट मिट्टी में मिला देनी चाहिए।
2. एकड़ जमीन में 32 किलो पी2ओ5 डाइ-अमोनियम-फोस्फेट के रूप में या एकल सुपर- फोस्फेट के रूप में मिलाना चाहिए। और 40 किलो के2ओ पोटाश के दानों को मिट्ïटी में मिलाना चाहिए। आलू के बीज बोने के 30 दिन बाद ऊपर से 35 किलो नाइट्रोजन का यूरिया के रूप में छिड़काव करना चाहिए।

बुआई का उचित समय
यदि आलू की बुआई उचित समय पर न की जाय तो उसकी पैदावार सही नहीं होती है। आलू की बुआई ऐसे समय में करनी चाहिए जब तापमान अधिकतम 30 से 32 डिग्री हो और न्युनतम 18 से 20 डिग्री हो। भारत का क्षेत्र विस्तरित है जिसकी वजह से भिन्न भिन्न स्थानों का तापमान भिन्न होता है।

मिट्टी भरना
फसल की निराई के बाद ट्रैक्टर की सहायता से या स्वयं ही मिट्टी भरने का काम पूरा करें।
सिंचाई
आलू के पौधे पौधारोपन के तुरंत बाद या 2-3 दिनों के बाद (मिट्टी की नमी पर निर्भर करते हुए) रोशनी और सिंंचाई का प्रति उत्तर देना शुरू कर देतें हैं । मिट्टी की संरचना और तापमान के अनुसार आम तोर पर 3 से 5 सिंचाई या काफी होती हैं। जरूरत से अधिक सिंचाई नहीं करनी चाहिए वरना पौधों को नुकसान पहुंच सकता है।

रख-रखाव
आलू की फसल 10 हफ्तो में तैयार हो जाती है। लगभग पर जुलाई के महीने तक।
आलुओं की कटाई किसी सूखे दिन में करनी चाहिए । खुदाई हल्के हाथों से करनी चाहिए ताकि पौधों को कोई नुकसान न पहुँचे ।
लगभग सारे आलू पौधों के सूखने से पहले यानी लगभग-लगभग अगस्त तक काट लेनी चाहिए वरना पौधे सड़ जाएंगे।
आलूओं पर से सारी मिट्टी झाड़ देनी चाहिए और उसके बाद उन्हे ठंडी और सूखी जगह पर जहां पर रोशनी न पहुँचे मतलब जहाँ सिर्फ अन्धेरा हो एसी जगह रखा जाना चाहिए।
आलुओ को कभी भी सेब के साथ नहीं रखना चाहिए क्योंकी उन से निकलने वाली इथाइलिन गैस से आलू सड़ सकते हैं।
आलू घर में उगाए गए हों या बाहर से खरीदे गए हो उन्हें तब तक न धोए जब तक आप उसका उसका उपयोग न कर रहें हों क्योंकि धोने से उनकी उम्र कम हो जाती है।
आमतौर पर आलूओं को कतार में उगाया जाता हैं। आलू के बीजों को 15 इंच के अन्तराल पर लगाया जाता हैं, और हर कतार के बीच का फर्क ढाई से तीन फीट के बीच का होता हैं । यदि स्थान कम हो तो एक टीला बना कर उस पर आलू के पौधे उगाए जा सकते हैं। एक 3 से 4 फुट के व्यास वाले टीले पर 6 से 8 आलू के पौधे उगाए जा सकते हैं ।
पौधे लगाने से पहले मिट्ïटी की गुड़ाई अच्छे से कर लेनी चाहिए और खर पतवारों के साथ पत्थरो को भी बिन लेना चाहिए ताकी मिट्ïटी ढिली हो जाए और पौधो को उगने में आसानी हो सके। पौधो को खाद से काफी फायदा पहुंचता है मगर जरूरत से ज्यादा खाद डालने से पौधे दागदार हो जाते है।

उत्पादन
देश के विभिन्न हिस्सों में आलू के किसानों ने उत्पादन के लिए अलग-अलग प्रथाओं का पालन कर रहे है। गुजरात में किसानों ने दिखाया की नदी के किनारे, आलू उत्पादन के लिए आदर्श साबित हो सकते है, अगर उन्हे ठीक से इस्तेमाल किया जाये तो। वे प्रति हेक्टेयर 60 से अधिक टन है का उत्पादन हासिल करने मे सक्षम हुए हैं, जो तीन देश के औसत से तीन गुणा अधिक है। इस अभ्यास को बाद में वैज्ञानिकों द्वारा अध्ययन किया गया था और यह साहित्य में अच्छी तरह से प्रलेखित है ।
कुछ किसानों ने गुजरात के डेसा क्षेत्र में, जे की नदी के ताल मे खेती के लिए प्रसिद्ध के,सिंचित खेतों में आलू की खेती की एक फ्लेटबेडतरी का विकसित किया है। उन्होने अपलैंड आलू की खेती के साथ नदी के ताल आलू की खेती की प्रथाओं का गठबंधन करने की कोशिश की है । यह विधि उनकी मिट्टी और जलवायु परिस्थितियों पर सठीक बैठती है, संसाधनों का अधिक कुशल उपयोग करती है और अपेक्षाकृत अधिक लाभदायक भी है। यह भी ‘हनी बीÓ, भारत में स्वदेशी ज्ञान पर अग्रणी प्रकाशन में संक्षेप में बताया गया है , और कृषि विस्तार की समीक्षा में पुनप्र्रकाशित किया गया था ।
देश के विभिन्न हिस्सों में किसान इन्टर क्रोपिंग करते हैं। इसके पीछे आम धारणा यह है कि इससे भूमि का उपयोग और अधिक कुशल होतो है, लेकिन कुछ किसानों के पास इन्टरक्रोपिंग का प्रयोग करने के गहरे कारणहोता है। जैसे कर्नाटक के हासन जिले में कुछ किसान ऐसे है जो वर्षा आधारित फसलों में आलू के साथया तो अरंडी या बाजरा उगाते हैं।
उनमें से कुछ लोग कहते हैं कि वे लम्बे फसलों जैसे अरंडी और बाजरा को इस लिए प्रयोग कर रहे हैं, क्योंकी ये आलू की फसल को धूप के दिनों में (जो ठंडे मौसम की फसल है) को छाया प्रदान करते हैं । वह ऐसा इस लिए भी करते हैं क्योंकि आलू की फसल के बाद एक और फसल उगाना संभव नहीं है क्योंकि उस समय मिट्ïटी में नमी की कमी हो जाती है।

नवाचारों का प्रसंस्करण
जहां बड़ी मात्रा में आलू के भंडार को संग्रहीत किया जाता है, किसानों को बहुत सारे आंशिक रूप से सड़े आलूओं को फेंकना पड़ता था । कुछ इस तरह के आलूओं के क्षतिग्रस्त हिस्सो को हटाने के बाद स्थानीय बाजार में बेच दिया जाता था , लेकिन इसमें से अधिकांश नष्ट हो जाते था क्योंकी ऐसे आलूओं की जिंदगी बहुत छोटी होती थी।
कुछ नव विचारक किसानों ने आलू के सड़े हिस्से को हटाने के बाद उन्हें सूखाकर अद्र्ध क्षतिग्रस्त आलू की शेल्फ जीवन में वृद्धि के बारे में सोचा ।
इस तरह दो महीने के लिए यह कुछ किसानों के लिए एक पूर्णकालिक गतिविधि बन गया। क्योकी अद्र्ध क्षतिग्रस्त आलू बहुत कम कीमत पर उपलब्ध थे । उन्होनें
बड़ी मात्रा में आलू की प्रक्रिया करने के लिए श्रमिकों को रोजगार देना शुरू कर दिया।
आलू का क्षतिग्रस्त हिस्से हटा दिया जाता है और कंद को उबलते पानी में ब्लानच किया जाता है, छिला जाता है, उसके बाद स्थानीय उपकरण द्वारा काटा जाता है, और धूप में सूखा दिया जाता है।
ऐसे सूखे आलू जो डेस्सा में तैयार होते हैं मुंबई, दिल्ली, और कभी-कभी कलकत्ते के बाजारो में बेची जाती है। और इन्हीं वजहे से इनकी मांग मे बढ़ोतरी हुई है जिसके कारण ये अब अलग-अलग आकार मे आने लगे है ।इस तरीके को और अधिक विकसित किया जा सकता था मगर इस क्षेत्र में बड़े उद्योगों के शामिल होने से इसका विकास बाधित हुआ है।

पौधारोपन
आलू के बीज ( आलू के टुकड़े या पूरा आलू जिसमें कम से कम दो आँखे हो ) को आखिरी बारिश के 0-2 हफ्तों के भीतर रोप देना चाहिए।
यदि आलू के बीज के रूप में आलू के टूकड़ों का प्रयोग किया जा रहा है तो आलू के टुकड़ों को 2-3 दिन पहले तैयार कर लेना चाहिए ताकी उस पर एक परत जम जाए जो नमी के अन्दर रखे और टुकड़ों को सडऩ से बचा सके ।
पौधारोपन जल्दी शुरू किया जा सकता है मगर यह याद रखना चाहिए कि पाले के कारण कुछ फसलें नष्ट हो सकतें हैं।
आलू के बीजों को रोपने से पहले उसे सड़ी हुई खाद या जैविक खाद के साथ मिश्रित करके फैला दना चाहिए।
आलू के बीजों को एक दूसरे से 1 फीट के अन्तराल पर और 4 इन्च गहरे गढ़े में डालना चाहिए, और आँख वाले हिस्से को ऊपर रखना चाहिए।
वार्षिक चक्रीकरण का अभ्यास करना चाहिए।

पौधो की सुरक्षा
प्रति एकड़, पौधो पर 30 इ.सी. हर 300 एम.एल. डाइ-मिथा ओएटमिला कर छिड़काव करे या इमी-डाक्लोरोपिड 17.8 एस.एल 50 एम. एल. मिला कर पौधो पर छिड़काव करें ताकी एफिड,जैसीडस और सफेद मक्खियोंसे बचाव हो सकें। मनकोजब (0.2) के फाइला कटिक का छिड़काव आखिरी समय में होने वाले नुकसान से बचाव के लिए नवम्बर के पहले या दूसरे हफ्ते में कर देना चाहिए और उसके बाद 3-4 बार हर हफ्ते इसका छिड़काव करना चाहिए।

No comments:

Post a Comment

Post Top Ad