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Wednesday 14 November 2018

आसिया बीबी की दुशवारियों का अभी अंत नहीं

संतोष कुमार भार्गव

पाकिस्तान की सर्वोच्च अदालत ने ईशनिंदा के आरोप से ईसाई आसिया बीबी को बरी क्या किया, पूरा पाकिस्तान सुलग उठा। आज भले ही आसिया बीबी आजाद हों, मगर पाक के पारंपरिक और कट्टरतावादी समाज में उसका आजाद जीना मुमकिन नहीं है। आसिया बीबी पर समाज बुरी तरह बंट चुका है और कोर्ट तक को कट्टरपंथी सुनाने में पीछे नहीं हैं। ईशनिंदा को लेकर पाक का रवैया सही नहीं ठहराया जा सकता। आसिया बीबी के मामले में पाकिस्तान में कोहराम तो मचाया ही, पूरी दुनिया को भी उद्वेलित किया। लगभग एक दशक चले इस विवाद ने एक गवर्नर व एक मंत्री की जान ली और एक परिवार को तिल-तिल मरने के लिये सड़कों पर छोड़ दिया। पाकिस्तान की शीर्ष अदालत न्याय के साथ खड़ी हुई तो आसिया की जान बच पाई। पहले प्रधानमंत्री इमरान खान न्याय के पक्ष में खड़े नजर आये मगर फिर कट्टरपंथियों के दबाव में यू-टर्न ले गये। अब अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप के बाद आसिया और उसके वकील के सुरक्षित देश से निकलने की खबरें हैं।

घटनाक्रम 14 जून, 2009 का है जब आसिया दूसरी महिला श्रमिकों के साथ फालसे के बगीचे में फल तोड़ने लगी। उस दिन भयानक गर्मी थी। हालात इतने विकट थे कि आसिया के शरीर ने काम करना बंद कर दिया। वहां से निकलकर वह पास के कुएं में गई और बाल्टी से पानी निकाला। एक अपने जैसी महिला को पानी देने पर उसे विधर्मी बताकर दूसरी महिला को पानी न पीने को कहा गया। विवाद बढ़ा तो बात ईशनिंदा के आरोप तक जा पहुंची। बाद में भीड़ ने हमला बोलकर आसिया को पकड़ा और ईशनिंदा के आरोप लगाते हुए पुलिस को सौंप दिया। पाक में अल्पसंख्यक समुदायों को निजी विवादों में ईशनिंदा कानून की चपेट में लेना आम बात है, जिसके लिये पाक कानून में मौत और उम्रकैद की सजा का प्रावधान है। इस धार्मिक अस्त्र की भयावहता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले लगभग तीन दशक में 62 लोगों को अदालत का फैसला आने से पहले ही कत्ल कर दिया गया।  इसमें एक दंपति को जिंदा जलती भट्ठी में डालने का वाकया भी है।

ईशनिंदा कानून अविभाजित भारत में ही बन चुका था और इसे धार्मिक सद्भावना कायम रखने के लिए बनाया गया था, जिससे लोग एक दूसरे के धर्म का सम्मान करें। यह वो दौर था जब सांप्रदायिक दंगों में लोग मारे जा रहे थे। स्वतंत्रता के बाद पाकिस्तान ने इसे ज्यादा फेरबदल के लागू कर दिया, लेकिन 80 के दशक में इसे लेकर ज्यादा मुखरता दिखाई जिया उल हक की सैन्य सरकार ने। जिया उल हक के सियासी काल में 10 फरवरी 1979 को देश में इस्लामिक कानून लागू कर कट्टरपंथी ताकतों को मजबूत करने की कोशिश की गई थी। इसके साथ ही उन्होंने शिक्षा को अपनी सियासी हसरतों को पूरा करने का साधन बनाया। इसके अनुसार किताबों को जिहाद की ओर मोड़कर धार्मिक असहिष्णुता का माहौल तैयार कर दिया।

निचली अदालत ने आसिया को मौत की सजा सुनाई, जिसके खिलाफ मानवाधिकार संगठनों ने शीर्ष अदालत में गुहार लगाई। यहां तक कि वर्ष 2016 में मौत की सजा के खिलाफ शीर्ष अदालत में दी गई याचिका भी खारिज कर दी गई। घटना के कुछ समय बाद आसिया बीबी से मिलने गये पंजाब के तत्कालीन राज्यपाल सलमान तासीर ने आसिया को निर्दोष पाया और ईशनिंदा कानून को लेकर सवाल खड़े किये। इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप उनके अंगरक्षक मुमताज कादरी ने सलमान तासीर जैसे धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति की हत्या कर दी। इतना ही नहीं, जब दो माह बाद अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री शहबाज भट्टी ने ईशनिंदा कानून की निंदा की तो उन पर जानलेवा हमला किया गया, जिसमें उनकी मृत्यु हो गई।  इसके बाद आसिया के पति आशिक मसीह द्वारा लाहौर हाईकोर्ट में दायर याचिका को खारिज कर दिया गया।

यह समय आसिया के परिवार पर वज्रपात की तरह टूटा। पति आशिक मसीह को गांव का अपना घर बेचना पड़ा और जान बचाने के लिये खानाबदोश जिंदगी जीने को मजबूर होना पड़ा। पांच बच्चों का पालन-पोषण और उनकी पढ़ाई करा पाना बेहद मुश्किल था। मजदूरी न मिलने पर कई-कई दिन उन्हें भूखा सोना पड़ता। उसमें  एक बच्ची मानसिक रूप से बीमार भी थी। बच्चों के पास मां के न होने का एहसास उन्हें टीस देता रहा। उन्हें जान भी बचानी थी और पेट भी भरना था।

मोहम्मद साहब ने किसी से पूछा कि बहादुर कौन है। उसका जवाब था कि बहादुर वो है जो निडर हो और जंग में जीतता हो। यह सुनकर मोहम्मद साहब बोले बहादुर वो है जो बदला लेने का सामथ्र्य रखने के बावजूद भी दोषी को माफ कर दे। मोहम्मद साहब की शिक्षाओं में माफी का बड़ा महत्व रहा है और उन्होंने अपने जीवन में इसकी कई मिसालें भी पेश की हैं। पड़ोसी देश पाकिस्तान मोहम्मद साहब की शिक्षाओं पर चलने के वादे के साथ अस्तित्व में आया था। अब हालात यह हैं कि इस्लाम की सीख व अच्छाइयों को तो कभी वह अपना ही नहीं सका, इसके उलट वह मोहम्मद साहब की शिक्षाओं का वजूद मिटाने को भी ज्यादा बेकरार नजर आता है। ईशनिंदा के नाम पर पाकिस्तान में शिया, अहमदिया और अन्य अल्पसंख्यकों को रौंदने और कुचलने के प्रयास इसी की बानगी पेश करते हैं। हाल ही में ईसाई आसिया बीबी को जब सुप्रीम कोर्ट ने ईशनिंदा के आरोप से मुक्त किया तो पूरा पाकिस्तान सुलग उठा।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस आसिफ सईद ने आसिया बीबी केस की सुनवाई करते हुए कहा पैगंबर मोहम्मद या कुरान का अपमान करने की सजा मौत या उम्र कैद है, लेकिन इस जुर्म का गलत और झूठा इल्जाम अकसर लगाया जाता है। कोर्ट के ताजा फैसले के बाद मस्जिदों से इमामों और कट्टरपंथियों ने आम लोगों से व्यापक विरोध करने की अपील कर देश की कानून व्यवस्था को ठप कर दिया। ऐसा फैसला देने वाले जजों को सोशल मीडिया पर गालियां दी जा रही हैं। कराची, इस्लामाबाद, फैसलाबाद और रावलपिंडी जैसे बड़े शहरों में व्यापक विरोध प्रदर्शन किए गए, रोड़ जाम किए गए व सरकारी संपत्ति को भारी नुकसान पहुंचाने की कुचेष्टा की गई। अंततरू प्रशासन को मजबूरी में पूरे पंजाब प्रांत में धारा144 लागू करनी पड़ी। प्रदर्शनकारियों ने पाक के सबसे व्यस्ततम फैजाबाद और इस्लामाबाद को जोड़ने वाले राष्ट्रीय हाइवे को भी बंद कर दिया।

आसिया बीबी की रिहाई का फैसला सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस आसिफ खोसा ने लिखा और कहा कि ‘ईशनिंदा की सजा मौत या उम्रकैद है, मगर इस जुर्म का गलत और झूठा आरोप अक्सर लगाया जाता है।’ कोर्ट के फैसले के बाद पाक के विभिन्न शहरों में विरोध प्रदर्शन होने लगे और पुलिस से टकराव हुआ। धार्मिक स्थलों से फैसले के खिलाफ सड़कों पर उतरने का आह्वान किया गया। न्यायालय को भी कठघरे में खड़ा करने का प्रयास किया गया।

पहले तो  इमरान सरकार न्यायालय के पक्ष में खड़ी नजर आई, मगर बाद में कदम पीछे खींचते हुए आंदोलन का नेतृत्व कर रही तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान से समझौता कर बैठी। दरअसल, पाक में ईशनिंदा एक बेहद संवेदनशील विषय रहा है, जिसका दुरुपयोग अल्पसंख्यकों को फंसाने के लिये किया जाता रहा है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा रिहा किये जाने के बाद आसिया के पति ने अपने परिवार की जान को खतरा बताते हुए कई देशों से शरण मांगी थी। कई देशों ने प्रस्ताव भी दिये। यहां तक कि आसिया का केस लड़ने वाले वकील सैफ उल मुलूक ने भी जान को खतरा देखते हुए देश छोड़ दिया। उन्होंने सरकार और इस मुद्दे पर आंदोलन चला रही तहरीक-ए-लब्बैक के बीच हुए समझौते को दर्दनाक बताया क्योंकि सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करवाने के बजाय कट्टरपंथियों के आगे झुक गयी।

पाकिस्तान बनने के सात दशक बाद मुल्क का नजारा बदल गया है। इस समय इस्लामिक कट्टरपंथी है, आतंकवाद है, आर्थिक कंगाली है, लोकतांत्रिक नाकामी है और सैन्य तानाशाही है। ऐसे हालात में अल्पसंख्यकों का जीवन मुहाल है। ईशनिंदा पाक में अल्पसंख्यकों की संपत्ति छीनने का बड़ा हथियार बन गया है और इसकी पुष्टि हाल ही में वहां की सर्वोच्च न्यायालय ने भी की है। बहरहाल आसिया बीबी ईशनिंदा के आरोप झेलकर बुरी तरह टूट चुकी है। पाक के पारंपरिक और कट्टरतावादी समाज में उसका आजाद जीना मुमकिन नहीं है। आसिया की दुश्वारियों का अभी तक अंत नहीं हुआ है। जब तक वह परिवार समेत विदेश में बस नहीं जाती तब तक उसकी जान को खतरा बना ही रहेगा। यह बताता है कि पाक में अल्पसंख्यकों का जीवन कितना जोखिमभरा है। यह भी कि सरकारें कट्टरपंथियों के आगे झुककर अपने नागरिकों को सुरक्षा देने में असफल हैं।

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