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Tuesday, 29 January 2019

राम मंदिर मामला: सुप्रीम कोर्ट से मांगी गैर-विवादित जमीन, 67 एकड़ में 10 विस्वा ही विवादित

नई दिल्ली। अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर 1993 में अयोध्या में अधिगृहित की गई 67.703 एकड़ जमीन में से 10 विस्वा विवादित भूमि छोड़ कर बाकी की जमीन राम जन्मभूमि न्यास व अन्य भू मालिकों को वापस करने की इजाजत मांगी है। सरकार ने कोर्ट से मामले में यथास्थिति कायम रखने का 31 मार्च 2003 का आदेश रद करने या बदलने की गुहार लगाई है ताकि वह अयोध्या भूमि अधिग्रहण को सही ठहराने वाले संविधान पीठ के इस्माइल फारुकी फैसले के मुताबिक अपने दायित्व का निर्वाह कर सके।

सोमवार को दाखिल अर्जी में सरकार ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश बदलने की मांग करते हुए दलील दी है कि इससे सरकार अधिगृहित अतिरिक्त जमीन से उतनी भूमि पैमाइश करके अलग कर पाएगी जितनी विवादित जमीन का मुकदमा जीतने वाले पक्ष को अपनी जमीन तक आने जाने के लिए चाहिए होगी। बाकी की अतिरिक्त जमीन सरकार भू मालिकों को वापस कर देगी।

सरकार ने यह याचिका 16 साल पुराने मोहम्मद असलम भूरे मामले में दाखिल की है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने उसी केस में 31 मार्च 2003 को विवादित जमीन के साथ ही पूरी अधिगृहित जमीन पर यथास्थिति कायम रखने के आदेश दिये थे। यह मामला अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद में लंबित अपीलों से अलग दाखिल हुआ है ऐसे में इस पर सुनवाई भी अलग से ही होगी। जबतक कि कोर्ट इस याचिका को मुख्य मामले के साथ संलग्न नहीं करता तबतक इस पर अलग से ही सुनवाई होगी।

अयोध्या राम जन्मभूमि पर मालिकाना हक के मुख्य मामले की सुनवाई 29 जनवरी को होनी थी लेकिन संविधान पीठ के एक न्यायाधीश एसएस बोबडे के उपलब्ध न होने के कारण सुनवाई टल गई थी। सुनवाई की नयी तिथि अभी तय नहीं है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में कुल 13 अपीलें लंबित हैं जिसमे विवादित राम जन्मभूमि को तीन बराबर के हिस्सों में बांटने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2010 के फैसले को चुनौती दी गई है। इस मुकदमें में केन्द्र सरकार पक्षकार नहीं है।

असलम भूरे मामले में दाखिल अर्जी में सरकार ने कहा है कि 1993 में अयोध्या में विवादित स्थल सहित कुल 67.703 एकड़ जमीन का अधिग्रहण हुआ था। अधिग्रहण को 25 साल बीत चुके हैं। जो लोग अधिगृहित जमीन के मूल मालिक हैं और जिनकी जमीन पर कोई विवाद नहीं है, उन्हें अपनी जमीन वापस मिलनी चाहिए। केन्द्र सरकार की जिम्मेदारी है कि वह इस्माइल फारूकी मामले में संविधानपीठ के फैसले के मुताबिक कार्रवाई करते हुए उनकी जमीन वापस कर दे।

सरकार ने कहा है कि अधिगृहित अतिरिक्त जमीन को लगातार केन्द्र सरकार के पास बने रहने का कोई मतलब नहीं है। और न ही इसमें कानूनी अड़चन है। सरकार ने कहा है कि उसे सैद्धांतिक तौर पर जमीन भूमालिकों राम जन्मभूमि न्यास व अन्य को वापस किये जाने पर कोई आपत्ति नहीं है। सरकार इस्माइल फारुकी केस के मुताबिक सिर्फ अधिग्रहित अतिरिक्त भूमि से उतनी जमीन नाप कर रख लेगी जितनी विवादित जमीन का मुकदमा जीतने वाले पक्ष को अपनी जमीन पर आने जाने के लिए जरूरत होगी।

इस जमीन का विवादित जमीन के लंबित मुकदमे से लेना-देना नहीं
सरकार ने अर्जी में कहा है कि अधिग्रहित अतिरिक्त गैर विवादित जमीन का सुप्रीम कोर्ट में राम जन्मभूमि के लंबित मुख्य अपीलों से कोई लेना देना नहीं है और न ही उन अपीलों में 1993 में अधिगृहित अतिरिक्त गैर विवादित जमीन के बारे में विचार होना है। विवादित जमीन सिर्फ 0.313 एकड़ है।

सरकार ने कहा है कि 31 मार्च 2003 का यथास्थिति कायम रखने का आदेश उस समय के हालात देखते हुए दिया गया था। वह इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले से पहले दिया गया था। इसके बाद बहुत सी घटनाएं हो चुकी हैं इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी अंतिम फैसला दे दिया है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने उसी 2003 के आदेश को आधार बनाकर जन्मभूमि विवाद मे लंबित अपीलों के मामले में भी आदेश पारित कर दिया जबकि उनका अधिगृहित अतिरिक्त भूमि से कोई लेना देना नहीं है। लेकिन कोर्ट का वह आदेश बाकी आदेशों का आधार बना हुआ है जो कि केन्द्र सरकार को राम जन्मभूमि न्यास व अन्य को जमीन लौटाने से रोकते हैं इसलिए सरकार ने यह अर्जी दाखिल की है।

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