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Tuesday, 29 January 2019

इसे अस्पताल कहें या मानवता पर कलंक?

निर्मल रानी

प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता आमिर खां ने कुछ समय पूर्व सत्यमेव जयते नामक एक अति लोकप्रिय धारावाहिक में एक एपिसोड भारतीय चिकित्सा व्यवस्था को भी समर्पित किया था। दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी जनसं या वाला देश जहां जन सुविधाओं से जुड़ी अनेक समस्याओं का सामना कर रहा है वहीं देश के आम नागरिकों के लिए समय पर उपयुक्त चिकित्सा हासिल कर पाना वास्तव में एक टेढ़ी खीर बन चुका है। डॉक्टर के जिस पेशे को समाज सेवा का अवसर प्रदान करने का आदर्श पेशा समझा जाता है वही पेशा आज व्यवसाय या दुकानदारी बनकर रह गया है। देश के किसी न किसी क्षेत्र से आए दिन अनेक ऐसे समाचार मिलते रहते हैं जिनसे यह पता चलता है कि सरकारी अस्पतालों से लेकर निजी अस्पतालों तक में किस तरह चिकित्सों द्वारा मरीज़ों से नाजायज़ तरीके से पैसे वसूले जा रहे हैं और अनावश्यक जांच व टेस्ट आदि के नाम पर किस प्रकार कमीशन या दलाली का बाज़ार गर्म है। जिस समय आमिर खां ने सत्यमेव जयते में ऐसे चिकित्सों व अस्पतालों की पोल खोली थी उसके बाद ऐसा लगने लगा था कि शायद देश के डॉक्टर्स व इनके द्वारा संचालित अस्पतालों में कुछ सुधार हो सकेगा। परंतु अभी तक सब कुछ ढाक के तीन पात है। उल्टे कुछ घटनाएं तो ऐसी सामने आने लगी हैं जिन्हें सुनकर तो ऐसा लगता है गोया इस प्रकार का अमानवीय आचरण करने वाले अस्पताल किसी डॉक्टर्स द्वारा नहीं बल्कि राक्षस अथवा शैतानों द्वारा संचालित किए जा रहे हैं।

इस घटना पर ही गौर कीजिए। गत् 23 जनवरी को न्यूयार्क निवासी एक अप्रवासी भारतीय 52 वर्षीय गगनदीप सिंह जोकि सेक्टर 69 मोहाली के रहने वाले थे अपने भाारत प्रवास के दौरान अपने पूरे परिवार के साथ स्वर्ण मंदिर, अमृतसर की यात्रा पर गए थे। अचानक उन्हें स्वर्ण मंदिर की भीतर परिक्रमा करते समय मस्तिष्काघात हो गया और उस पवित्र स्थल के भीतर ही उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए। गगनदीप अत्यंत सामाजिक व्यक्ति थे तथा बढ़-चढ़ कर ज़रूरतमंदों की गुप्त रूप से मदद किया करते थे जिसकी अनेक कहानियां उनके मरणोपरांत पता चलीं। बहरहाल मरणोपरांत उनके परिवार के शेष लोग जिसमें बुज़ुर्ग माता-पिता भी शामिल थे, उन सबको कारों में अमृतसर से मोहाली के लिए रवाना करने के बाद गगनदीप के बड़े भाई व उनके दो भतीजों द्वारा गगनदीप के शव को एंबुलेंस द्वारा अमृतसर से मोहाली लाने की व्यवस्था की गई। गगनदीप की मृत्यु 23 जनवरी को सायंकाल लगभग साढ़े चार बजे के आस-पास हुई थी और उनके मृतक शरीर को मोहाली तक आते-आते लगभग बारह घंटे बीत चुके थे। यहां पहुंचकर शव के साथ चल रहे रिश्तेदारों ने गगनदीप के शव में नाक से रक्त का रिसाव होते देखा। इस बीच जब शव मोहाली स्थित सेक्टर 69 में अपने घर पहुंचने ही वाला था कि उनके घर के पास ही उसी सेक्टर 69 में स्थित एक निजी अस्पताल जिसे शिवालिक अस्पताल के नाम से जाना जाता है, उनके परिवार के सदस्य गगनदीप के शव को लेकर वहां पहुंच गए।

एंबुलेंस अस्पताल के बाहर ही खड़ी कर गगनदीप का भतीजा शिवालिक अस्पताल में दाखिल हुआ तथा भीतर जाकर मौजूद स्टा$फ को अपनी व्यथा सुनाई तथा यह निवेदन किया कि वे मृतक के शरीर की नाक से रिसने वाले रक्त को साफ कर दें। गगनदीप के बड़े भाई द्वारा मृत्यु प्रमाण पत्र भी अमृतसर में ही हासिल कर लिया गया था जो अस्पताल वालों को दिखाया भी गया। परंतु अस्पताल स्टाफ ने यह कहकर किसी भी प्रकार की सहायता से मना कर दिया कि यहां मृत शरीर के साथ कोई काम नहीं किया जाता। यह सुनकर शव के साथ चलने वाले उनके मित्रों व परिजनों ने अस्पताल के स्टाफ से निवेदन किया कि वे पैसे लेकर उन्हें थोड़ी सी रुई दे दें ताकि शव की नाक से रिसने वाला खून वे स्वयं अपने हाथों से साफ कर सकें। परंतु अस्पताल के प्रबंधन द्वारा उन लोगों को पैसे लेकर भी रुई देने से मना कर दिया गया। आखिरकार उसी जगह खड़े होकर गगनदीप के बड़े भाई ने मैक्स अस्पताल में फोन कर अपनी दु:ख भरी दासतां बयान की। मैक्स अस्पताल की ओर से उन्हें शव लाकर सुरक्षित स्थान पर रखने का आश्वासन दिया गया। इस प्रकार गगनदीप का शव 24 जनवरी को प्रात:काल लगभग पांच बजे मैक्स अस्पताल के शव गृह के शीत कक्ष में साफ कराकर सुरक्षित रखा गया जिसे अगले दिन 25 जनवरी को दोपहर 2 बजे मोहाली के सेक्टर 73 के शवदाह गृह में अंतिम संस्कार हेतु लाया गया।

इस पूरे प्रकरण में कई अमानवीय पक्ष दिखाई देते हैं। एक तो यह कि शिवालिक अस्पताल जो संतोष अग्रवाल नामक डॉक्टर द्वारा संचालित किया जा रहा है,यह अस्पताल स्वर्गीय गगनदीप के घर के बिल्कुल समीप है। अर्थात् एक पड़ोसी के नाते भी इनकी सहायता करना उस अस्पताल के लोगों का कर्तव्य था जो उन्होंने पूरा नहीं किया। इस घटना से दूसरी बात यह भी सामने निकल कर आती है कि एक अप्रवासी भारतीय परिवार होने के बावजूद जब इस अस्पताल के लोगों द्वारा मामूली सी रुई इन लोगों को पैसे देने का प्रस्ताव मिलने के बावजूद नहीं दी गई तो ज़रा सोचिए एक मध्यम या निम्र मध्यम वर्ग का कोई व्यक्ति अथवा कोई गरीब व्यक्ति इन हालात से दो-चार हो रहा होता तो संभवत: यह अस्पताल वाले उसे धक्के देकर या गाली-गलौच कर के अस्पताल के गेट से बाहर निकाल देते। और तीसरी बात यह कि इस प्रकार की जो भी घटना घटी वह पूरी तरह से चिकित्सक पेशे पर कलंक है तथा चिकित्सकीय मानदंडों के बिल्कुल विरुद्ध है। गगनदीप की शव यात्रा से लेकर उनकी अंतिम अरदास तक में आने वाले अनेक राजनेता,अधिकारी व प्रतिष्ठित लोग शिवालिक अस्पताल सेक्टर 69 मोहाली द्वारा गगनदीप के शव के साथ किए गए इस अपमानजनक व अमानवीय व्यवहार को लेकर काफी आश्चर्यचकित थे। खासतौर से इस बात को लेकर उन्हें ज़्यादा तकलीफ थी कि जिस व्यक्ति की मौत हरमंदिर साहब जैसे पवित्र स्थल में हुई हो और जो व्यक्ति शिवालिक अस्पताल मोहाली के बिल्कुल समीप रहता हो ऐसे व्यक्ति के साथ अस्पताल कर्मियों द्वारा किया गया बर्ताव निश्चित रूप से अत्यंत अमानवीय था।

ऐसा भी नहीं कि देश के सभी अस्पताल अथवा समस्त डॉक्टर्स द्वारा मरीज़ों के साथ या किसी के शव के साथ इस प्रकार का बुरा बर्ताव किया जाता हो। परंतु यदि हज़ार में से एक व्यक्ति भी चिकित्सक के पेशे से जुड़ा होने के बावजूद इस प्रकार का बर्ताव करता है तो वह नि:संदेह इस पवित्र पुनीत व सेवा भाव रखने वाले पेशे को कलंकित करता है। देश में आपको ऐसे हज़ारों उदाहरण सुनने को मिल जाएंगे कि अमुक अस्पताल द्वारा परिजनों को इसलिए शव देने से इंकार कर दिया गया क्योंकि उन्होंने अस्पताल का पूरा बिल नहीं भरा। ऐसी भी तमाम मिसालें मिलेंगी कि अमुक पैथोलॉजी या लैब से ही कराई गई जांच को ही डॉक्टर स्वीकार करेगा किसी दूसरे लैब की नहीं। सरकारी अस्पतालों में काम करने वाले डॉक्टर्स की निजी प्रैक्टिस प्रतिबंधित होने के बावजूद इस प्रकार का खेल अभी भी किसी न किसी तरीके से जारी है। अस्पतालों में दवाईयां मिलने के बावजूद कमीशनखोर डॉक्टर अभी भी मरीज़ों को मेडिकल स्टोर्स से दवाईयां खरीदने के लिए मजबूर कर रहे हैं। कुल मिला कर ऐसे लोग और शिवलिक अस्पताल जैसे चिकित्सा गृह चिकित्सा के पेशे पर कलंक साबित हो रहे हैं।

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