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Friday 8 February 2019

नगर पालिका सीतापुर पर नहीं लागू नियम, आदेशों की धज्जियाँ उड़ाने में अव्वल

पालिका के लिए निदेशालय के आदेश भी बेमानी

सीतापुर। कहते हैं कि तालाब में एक मछली ख़राब हो तो वह पूरे तालाब को ख़राब कर देती है। मग़र कहीं तालाब में ज़्यादातर मछलियाँ ख़राब हों तो हालातों का क़यास लगाना मुश्किल हो जाता है। कुछ ऐसा ही हाल है नगर पालिका परिषद सीतापुर का। परिषद को घोटालों, धांधलियों और फर्ज़ीवाड़े का अड्डा कहा जाए तो अतिश्योक्ति न होगी। नगर पालिका में मामूली से काम के लिए भी पालिका कर्मचारियों द्वारा रिश्वतखोरी करना जहाँ आम बात है वहीं कर्मचारियों की नियुक्तियों में भी गम्भीर धांधली व नियमविरुद्ध पदभार देने के भी कई मामले उजागर हुए हैं।
हाल ही में *”तरुण मित्र”* ने एक ऐसा ही मामला उजागर किया था। जिसमें तथाकथित रूप से एक कर्मचारी द्वारा स्वयं को मृतक आश्रित दिखाकर नियुक्ति पाने की धांधली को उजागर किया गया था। उक्त मामले में नगर पालिका परिषद में कार्यरत *लिपिक वैभव कपूर* द्वारा दर्शाया गया है कि उनके पिता *स्व० विजय कपूर* नगर पालिका में कार्यरत थे और उनके मृतक आश्रित के रूप में उन्हें पालिका में नौकरी मिली। किन्तु उनके पिता कभी भी पालिका में कार्यरत नहीं थे, इस बात को आरटीआई के माध्यम से पहले ही उजागर किया जा चुका है। किन्तु प्रशासन इस ओर अभी भी चुप्पी साधे हुए है। इसे मिलीभगत का जीता जागता सुबूत माना जा सकता है। लम्बे समय के लिए छुट्टी पर गयीं जिलाधिकारी शीतल वर्मा की गैरमौजूदगी का फ़ायदा भी जमकर उठाया जा रहा है। मनमानी के लिए मशहूर नगर पालिका सीतापुर अपने पुराने रवैय्ये पर चल रही है। सूबे की बदली सियासत भी यहाँ की कार्यप्रणाली पर कोई भी असर नहीं डाल पाई।
मग़र ये तो सिर्फ़ बानगी है। नगर पालिका अब पदभार भी नियम विरुद्ध देने से गुरेज़ नहीं करती। नियमों को ताक पर रखते हुए पालिका में तमाम कर्मचारियों को उनके मूल पद से ऊँचे पदों पर स्थापित किया गया है। मज़े की बात तो यह है कि यह सिलसिला दशकों से चला आ रहा है। इसे लिपकीय भाषा में कहे तो यह प्रशासन की लापरवाही है और आम भाषा में कहें तो आपसी मिलीभगत। चूंकि कहावत है कि हम्माम में सभी नंगे। तो इन हालात में प्रशासन का मूक दर्शक बने रहना स्वाभाविक है।

सनद हो कि बीती 16 जनवरी को *स्थानीय निकाय* की निदेशिका डॉ० काजल के कार्यालय से आदेश संख्या-2/7462/39 निर्गत हुआ है जिसमें यह स्पष्ट रूप से निर्देशित किया गया है कि नगर निकायों में कार्यरत कर्मचारियों को उनके मूल पद से उच्च पद पर काम न लिया जाए। इस आदेश की प्रतिलिपि समस्त नगर आयुक्त, नगर निगम, समस्त महाप्रबंधक, डिवीज़नल जलसंस्थान, सभी महाप्रबंधक, जलकल विभाग तथा समस्त अधिशासी अधिकारी, नगर पालिका को अग्रसारित किया गया था। लेकिन शायद नगर पालिका अपने विभाग के निदेशालय को मखौल समझता है। तभी उक्त आदेश की अवहेलना करने में नगर पालिका कतई गुरेज़ नहीं कर रही है। यहाँ कई ऐसे कर्मचारी हैं जोकि अपने मूल पदों से उच्च पदों पर कार्यरत हैं। यहाँ पालिका की मनमानी के चलते स्थानीय निकाय की निदेशिका के आदेशों को ताक पर रखते हुए मूल पद *बेलदार होते हुए भी एक कर्मचारी से स्वास्थ्य लिपिक* का कार्य लिया जा रहा है। इतना ही नहीं राजस्व मोहर्रिर से सम्पत्ति लिपिक का कार्य लिया जा है। वहीं कई ऐसे सफ़ाईकर्मी हैं जिनसे कार्यालय में उच्च पदों पर कार्य लिया जा रहा है।
अब सवाल यह उठता है कि क्या पालिका प्रशासन के लिए निदेशालय के आदेश कोई मायने नहीं रखते? या फिर आदेश तो जारी होते हैं किन्तु पालिका के विशाल प्रांगण में एक कोने में धूल खाते पड़े रहते हैं। प्रशासन इस ओर कब अपना ध्यान आकर्षित करेगा यह एक गम्भीर चिन्ता का विषय है?

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