पूर्वी दिल्ली, चुनावों की घोषणा के साथ ही भाजपा ने भी संसदीय सीटों पर जातियों के समीकरण पर विधानसभा से लेकर बूथ स्तर तक पर मंथन शुरू कर दिया है। माना जा रहा है कि पूर्वांचल फैक्टर इस बार चुनावों में सीधे-सीधे तीन-चार सीटों पर हार-जीत में अपनी भूमिका निभा सकता है।इसके अलावा अन्य दो सीटों पर भाजपा के पारंपरिक वोटरों के रूप में स्थापित बनिया व पंजाबी तथा एक सीट पर गुर्जर, जाट व अन्य जातियों का असर रह सकता है। ऐसे में पूर्वांचलियों व अन्य जातियों के बीच आपसी सामंजस्य स्थापित करना और छिटके हुए पारंपरिक वोटरों को एकजुट करना भाजपा के लिए इस समय चिंता का विषय भी बना हुआ है।
पिछले दिनों भाजपा ने एक आंतरिक सर्वेक्षण भी इसके मद्देनजर कराया है जिसमें भी यह बात सामने आ चुकी है कि करीब 25 से अधिक विधानसभा क्षेत्रों में पूर्वांचलियों की आबादी करीब 17 से 39 फीसदी तक इलाके के आधार पर है। जबकि लगभग 42 से 50 फीसदी तक बनिया व पंजाबी वोटरों में पार्टी को लेकर राय बनती-बिगड़ती दिख रही है।हालांकि माना जाता है कि पार्टी दलित बाहुल्य बारह विधानसभा और मुसलिम बाहुल्य 5 क्षेत्रों में लगभग पिछड़ी हुई है। गौर करने योग्य बात यह है कि उत्तर-पूर्वी दिल्ली से सांसद व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी ने अध्यक्ष बनने से पूर्व 2013 के विधानसभा चुनावों में 19 विधानसभा सीटों पर प्रचार किया था, उसमें से 14 सीटों पर भाजपा ने जीत हासिल की थी। हालांकि 2015 में वह इसे भले ही बरकरार नहीं रख सके, लेकिन बताया जाता है कि खुद उनके संसदीय इलाके में पूर्वांचल के लोगों की संख्या करीब 28-33 फीसदी तक रही है।
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