लखनऊ। स्वास्थ्य विभाग की नरमी से राजधानी के प्रमुख अस्पताल भी मरीजों को चिकित्सा सुविधाएं नहीं उपलब्ध करवा पा रहे हैं। यहां प्रमुख सरकारी अस्पतालों में पर्याप्त चिकित्सा संसाधन नहीं है। डाक्टर मरीज को जांच करवाने के लिए केजीएमयू भेजते हैं लेकिन वहां पर सिर्फ मरीजों को ओपीडी का पर्चा बनवाने के लिए फिर से केजीएमयू के संबंधित विभाग के डाक्टर से लिखने के बाद ही जांच करवा सकते हैं। यानी सरकारी अस्पताल के डाक्टर का परामर्श मरीज के लिए बेकार साबित हो रहा है।
इन अस्पतालों से आ रहें मरीज
केजीएमयू में रेडियोलॉजी विभाग हो या फिर पैथालॉजी विभाग के काउंटरों पर बलरामपुर अस्पताल, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी (सिविल) अस्पताल और लोहिया अस्पताल से जांच के लिए बड़ी संख्या में मरीज आते हैं। आज पीआरओ आफिस के पास सीटी स्कैन जांच के लिए शुल्क जमा करने के लिए काफी भीड़ जुटी थी। करीब आधे घंटे के बाद बाराबंकी रामनगर के एक व्यक्ति ने जब सिविल अस्पताल का पर्चा देकर शुल्क जमा करना चाहा तो कर्मचारी ने साफ मना कर दिया। उनसे कहा कि केजीएमयू ओपीडी का पर्चा लेकर आओ।
सिविल के मरीज की नहीं हुई सीटी स्कैन
मरीज दिव्या (18) को सिविल अस्पताल में मनोरोग विभाग में दिखाया गया था, जहां डाक्टर ने केजीएमयू में सीटी स्कैन जांच लिखी थी। सिविल में पांच माह से सिटी स्कैन जांच बंद है। बलरामपुर अस्पताल से आयी पुरानी मशीन लगायी गयी है लेकिन उसके रेडिएशन की जांच चल रही है। इसके चलते इस जांच की सुविधा का लाभ मरीज को नहीं मिल पा रहा है। इधर,जब मरीज अपराह्न 1.50 बजे केजीएमयू की ओपीडी पहुंचे तो पर्चा काउंटर बंद हो गया था। आसपास पूछने पर लोगों ने ट्रामा सेन्टर में इमरजेंसी का पर्चा बनवाकर जांच करवाने की बात कही। इस पर मरीज को लेकर परिजन ट्रामा सेन्टर पहुंचे और वहां मनोरोग विभाग में दिखाने की सलाह दी गयी। ऐसी स्थिति में परेशान परिजन बिना जांच करवाए ही लौट गए।
केजीएमयू के मीडिया कोर्डिनेटर डा. पवित्र रस्तोगी ने बताया कि अभी नियम है कि जब तक केजीएमयू के डाक्टर जांच के लिए न लिखे, तब तक मरीज की जांच न हो। उक्त प्रकरण में अगर कोई कमेटी बन जाए तो मरीजों की समस्या का हल निकल सकता है।
No comments:
Post a Comment