राजगृह का श्रेष्ठीपुत्र सिगाल सुबह-सुबह उठ कर नगर के बाहर गया। भीगे वस्त्रों से और भीगे केश से पूर्व, दक्षिण, पश्चिम, उत्तर, नीचे और ऊपर छहों दिशाओं की ओर हाथ जोड़-जोड़ कर नमस्कार करने लगा। उन दिनों की अनेक पूजन-विधियों और कर्मकांडों में से यह भी एक था। उसी समय भगवान वेणुवन विहार से निकले और राजगृह नगर में भिक्षाटन के लिए चले। रास्ते में श्रेष्ठीपुत्र सिगाल को छहों दिशाओं की ओर नमस्कार करते हुए देखा तो पूछा — “गृहपति-पुत्र! यह क्या कर रहे हो?”
सिगाल ने उत्तर दिया– “भंते भगवान! दिशाओं को नमस्कार कर रहा हूं। मेरे पिता ने मरते समय आदेश दिया था कि दिशाओं को नमस्कार अवश्य करना। इससे सुख-शांति मिलेगी। इसलिए पिता के अंतिम आदेश का पालन कर रहा हूं।”
भगवान ने कहा– ‘गृहपति-पुत्र! आर्यधर्म में इस प्रकार छहों दिशाओं को नमस्कार नहीं किया जाता।”
— ‘अच्छा हो भगवान, कृपया मुझे आर्यधर्म का ज्ञान करायें।’ श्रेष्ठीपुत्र सिगाल की प्रार्थना पर भगवान ने उसे समझाया–
वास्तविक छह दिशाएं भगवान ने श्रेष्ठीपुत्र सिगाल को आर्यधर्म में छह दिशाओं को नमस्कार करने की सही विधि सिखायी-समझायी। कोई व्यक्ति किस प्रकार छहों दिशाओं को धर्म से आच्छादित कर यानी धर्मपूर्वक जीवन जीकर इनके प्रति अपनी सुरक्षा स्थापित करता है। छह दिशाएं क्या हैं?
माता-पिता को पूर्व दिशा, आचार्यों को दक्षिण दिशा, पुत्र-कलत्र को पश्चिम दिशा, मित्र-साथियों को उत्तर दिशा, नौकर-चाकरों को नीचे की दिशा और श्रमण-ब्राह्मणों को ऊपर की दिशा जाननी चाहिए।
1. माता-पिता की सेवा
पुत्र को पांच प्रकार से माता-पिता की सेवा करनी चाहिए।
१. इन्होंने मेरा भरण-पोषण किया है, इसलिए मुझे इनका भरण-पोषण करना चाहिए।
२. इन्होंने मेरे प्रति कर्तव्य पूरा किया है, मुझे भी इनके प्रति अपना कर्तव्य पूरा करना चाहिए।
३. इन्होंने कुल-वंश कायम रखा है, मुझे भी कुल-वंश कायम रखना चाहिए ।
४. इन्होंने मुझे दाय (विरासत) दी है। मुझे भी उचित दाय उत्पन्न करना चाहिए ।
५. मृत पितरों के पुण्यार्थ श्रद्धापूर्वक दान देना चाहिए।
यों पांच प्रकार से पूजित माता-पिता पुत्र पर पांच प्रकार से अनुकंपा करके उसका भविष्य उज्ज्वल करते हैं।
१. उसे पाप-कर्मों से बचाते हैं।
२. उसे पुण्य-कर्मों में लगाते हैं।
३. उसे शिल्प सिखाते हैं।
४. योग्य जीवन-संगिनी से उसका संबंध कराते हैं।
५. समय पाकर उसे दायाद प्रदान करते हैं। यों पांच प्रकार से सेवित हो पूर्व दिशा रूपी माता-पिता पुत्र पर पांच प्रकार से अनुकंपा करते हैं। इस प्रकार पूर्व दिशा गृही के लिए योगक्षेमपूर्ण होती है।
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