आधी-अधूरी संख्या से निर्णय लेने का आरोप
लखनऊ। केजीएमयू कार्यपरिषद की 25 मई को प्रस्तावित बैठक होनी है। जिसमें कार्यपरिषद की आधी-अधूरी संख्या अहम मुद्दो पर अपनी मुहर लगाएगी। वहीं सदस्यों की संख्या कम होने के बावजूद लगातार कार्यपरिषद की बैठके हो रही हैं और अहम मुद्दों पर फैसले सुनाए जा रहे हैं। इसको लेकर केजीएमयू के डॉक्टरों में नाराजगी है। यहां तक कि इस मामले को लेकर डॉक्टर कोर्ट जाने की तैयारी में हैं।
केजीएमयू में 450 डॉक्टर, 1000 रेजीडेंट हैं। हजारों की संख्या में कर्मचारी कार्यरत हैं। केजीएमयू में सबसे अहम समिति कार्यपरिषद होती है। नीतिगत, डॉक्टरों के प्रमोशन, भर्ती, नौकरी से जुड़े विवाद, खरीद-फरोख्त समेत दूसरे अहम मुद्दों पर अंतिम फैसला केजीएमयू कार्यपरिषद लेती है। इसमें अभी तक 19 पद थे। दो पदों की संख्या हाल ही में बढ़ाई गई है। इनमें नर्सिंग व डेंटल डीन के पद शामिल हैं। अब कुल पदों की संख्या 21 हो गई है। इन पदों के मुकाबले 13 सदस्य ही हैं।
मौजूदा समय में कार्यपरिषद में हाईकोर्ट के वरिष्ठ जज पंकज कुमार जायसवाल, दिल्ली एम्स निदेशक डॉ. रनदीप गुलेरिया, पीजीआई के निदेशक डॉ. राकेश कपूर, चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक डॉ. केके गुप्ता के अलावा दंत संकाय के डीन डॉ. शादाब मोहम्मद, मेडिकल डीन डॉ. विनीता दास, नर्सिंग डीन डॉ. मधुमति गोयल, फैकल्टी ऑफ पैरामेडिकल डीन डॉ. विनोद जैन के अलावा पैथोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. आशुतोष कुमार, दंत संकाय के डॉ. प्रदीप टंडन शामिल हैं।
मामले को लेकर डॉक्टरों में असंतोष
नर्सिंग डीन डॉ. मधुमति गोयल, फैकल्टी ऑफ पैरामेडिकल डीन डॉ. विनोद जैन का मनोनयन बतौर कार्यपरिषद सदस्य कुछ समय पहले ही हुआ है। वहीं पीजीआई व दिल्ली एम्स निदेशक कई बैठकों में अनुपस्थित रहे हैं। फिर भी गंभीर मसलों पर फैसले लिए गए। अधूरी कार्यपरिषद के मामले को लेकर डॉक्टरों में असंतोष है। यही वजह है कि कार्यपरिषद की बैठक की तारीख मुकर्रर होने के बाद कई डॉक्टर कोर्ट जाने की तैयारी में हैं। उनका कहना है कि वह पूर्व में हुए फैसलों को भी चुनौती देंगे। क्योंकि कार्यपरिषद के फैसले बिना कोरम पूरा हुए ही लिए गए हैं। कोर्ट के चार सदस्य का मनोनयन अभी नहीं हो पाया है। वहीं राजभवन से चार अन्य सदस्यों का मनोनयन होना है। इस संबंध में प्रस्ताव भेजा जा चुका है। नियमानुसार एक तिहाई सदस्यों की उपस्थित पर बैठक हो सकती है।
राजेश राय, कुलसचिव केजीएमयू
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