वाशिंगटन। बचपन में नानी, दादी की कहानियों में जिस चांद का जिक्र हुआ करता है, उसे लेकर एक नई जानकारी सामने आई है। चंद्रमा अब लगातार सिकुड़ता जा रहा है। इससे उसकी सतह पर झुर्रियां पड़ रही हैं। यह जानकारी सोमवार को प्रकाशित नासा के लूनर रीकॉनिसेंस ऑर्बिटर (LRO) द्वारा कैद की गई 12,000 से अधिक तस्वीरों के विश्लेषण से खुलासा हुआ है। अध्ययन में पाया गया है कि चंद्रमा के उत्तरी ध्रुव के पास चंद्र बेसिन ‘मारे फ्रिगोरिस’ में दरार पैदा हो रही है और यह अपनी जगह से खिसक भी रहा है।
बता दें कि कई विशाल बेसिनों में से एक चंद्रमा का ‘मारे फ्रिगोरिस’ भूवैज्ञानिक नजरिये से मृत स्थल माना जाता है। जैसा की धरती के साथ है, चंद्रमा में कोई भी टैक्टोनिक प्लेट नहीं है। बावजूद यहां टैक्टोनिक गतिविधियों के पाये जाने से वैज्ञानिक हैरत में हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि चंद्रमा में ऐसी गतिविधि ऊर्जा खोने की प्रक्रिया में 4.5 अरब साल पहले हुई थी। इसके कारण चंद्रमा की सतह छुहारे या किसमिश की तरह झुर्रीदार हो जाती है। इस प्रक्रिया में चंद्रमा पर भूकंप आते हैं।
वैज्ञानिकों का मत है कि ऊर्जा खोने की प्रक्रिया के कारण ही चंद्रमा पिछले लार्खों वर्षों से धीरे धीरे लगभग 150 फुट (50 metres) तक सिकुड़ गया है। यूनिवर्सिटी ऑफ मेरी लैंड के भूगर्भ विज्ञानी निकोलस चेमर ने कहा कि इसकी काफी संभावना है कि लाखों साल पहले हुई भूगर्भीय गतिविधियां आज भी जारी हों। उल्लेखनीय है कि सबसे पहले अपोलो अंतरिक्ष यात्रियों ने 1960 और 1970 के दशक में चंद्रमा पर भूकंपीय गतिविधि को मापना शुरू किया था। उनका यह विश्लेषण नेचर जीओसाइंस में प्रकाशित हुआ था। इसमें चंद्रमा पर आने वाले भूकंपों का अध्ययन किया गया था।
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