राजस्थान में अकाल से स्थाई रूप से निपटने के लिए- कुल 75 गौशाला प्रतिनिधियों को ₹25 लाख का अनुदान वितरित
रिपोर्ट:डॉ. आर.बी.चौधरी
धर्मज (गुजरात)। सूखे और अकाल से जूझ रहा राजस्थान एक -एक तिनके का सहारा खोज रहा है.समस्त महाजन एक आशा की किरण बन कर पीड़ित क्षेत्रों में पशुओं की प्राण रक्षा में खरा उतरने का कोशिश किया और इस विपत्ति से उबरने के लिए स्थाई प्रबंधन के गुर सिखाने में लीन है , कुछ पढ़ा कर कुछ दिखा कर कुदरती व्यवस्था बनाने के लिए तत्पर है. समस्त महाजन का यह इंतजाम गौशाला प्रतिनिधियों को खूब भाया. जिसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस विपत्ति काल में 40 से 60 वर्ष की उम्र वाले तकरीबन सवा सौ गौशाला प्रतिनिधि समस्त महाजन द्वारा आयोजित तीन दिवसीय जीव दया एवं गौशाला प्रशिक्षण में मन लगाकर भ्रमण-प्रशिक्षण प्राप्त किया. जितने प्रतिनिधि शामिल हुए उसमें से अधिकांश गौशाला प्रतिनिधि खाली हाथ नहीं गए.
समस्त महाजन के मैनेजिंग ट्रस्टी गिरीश भाई शाह ने गौशालाओं को विषम परिस्थितियों में चलाने और स्वावलंबी बनाने के उपायों का सारांश बताते हुए कहा कि आज देश भर की गौशालाओं को संसाधन जुटाने के लिए कहीं बाहर जाने की जरूरत नहीं है. उन्हें चाहिए कि अपने पास उपस्थित जल प्रबंधन स्रोत को जागृत करें , चारा प्रबंधन एवं स्वास्थ्य प्रबंधन के विषय में अगर सजग और सतर्क हो जाएं , यह समस्या स्वतः हल हो जाएगी. उन्होंने बताया कि गौशाला प्रबंधन में जल प्रबंधन करने के लिए तालाब का रख-रखाव अत्यंत आवश्यक है. वृक्षारोपण को अनेक समस्याओं का हल बताया और कहा कि वृक्ष चिड़ियों का बेहतरीन बसेरा है. जहां एक और छाया मिलती है वहीं दूसरी तरफ अनेक पशु पक्षियों का भरण- पोषण और निवास स्थल होता होता है और इससे पर्यावरण ठीक रहता है. शाह ने बताया कि गोचर जाने वाले पशुओं को अतिरिक्त रख-रखाव तथा भरण-पोषण की समस्या नहीं होती है. गांव के साधन गांव के प्रबंधन से गौशाला का संचालन बड़े आसानी से किया जा सकता है. यही उद्देश्य लेकर के समस्त महाजन गौशालाओं को गोद लेने का काम आरंभ किया है जो निरंतर सफलता की ओर अग्रसर है.
भ्रमण- प्रशिक्षण कार्यक्रम के समन्वयक देवेंद्र भाई ने बताया कि प्रशिक्षण के आखिरी दिन गौशाला प्रतिनिधियों को गिरीश भाई के निजी गौशाला अनुसंधान केंद्र पर ले जाया गया जहां क्षारीय एवं उसर जमीन पर गौशाला बनाकर मिट्टी को उपजाऊ बनाने का कार्य किया गया है और गोबर गोमूत्र के सघन प्रयोग से मिट्टी की उर्वरा शक्ति वापस लाई जा रही है. यहां पर चारा उत्पादन के साथ -साथ ग्रामीण परिवेश को पुनर्जागरण करने का प्रयोग किया जा रहा है . दूरदराज एवं वीरान स्थल पर स्थापित इस गौशाला में आज चिड़ियों के लिए एक आकर्षक बसेरा बन गया है. उन्होंने बताया कि आखरी दिन गुजरात के प्रख्यात धर्मज गांव ले जाया गया और बताया गया कि 1,000 करोड़ की फिक्स्ड डिपॉजिट रखने वाले धर्मज के किसान अपनी डेरी चलाते हैं . उनके गांव में कोई पुलिस स्टेशन नहीं है और चारा उत्पादन का एक अनोखा कार्य करते हैं जिससे उनकी बढ़िया आमदनी होती है. अपने पशुओं के लिए चारा उत्पादन सहकारिता आधार पर उ उगाते और बेचते हैं. उनका चारा उत्पादन गांव के सीवेज वाटर को रिफाइन कर सिंचाई की आवश्यकता पूरी करते हैं.
देवेंद्र भाई के अनुसार आज के कार्यक्रम में अंतिम पड़ाव था 300 करोड़ से अधिक लागत से बनाई गई मणिलक्ष्मी तीर्थ स्थल में एक बैठक का आयोजन किया गया और गौशाला प्रतिनिधियों से उनकी समस्याएं सुनकर समाधान किया गया। सभा के अंतिम चरण में 77 गौशालाओं को ₹25 लाख रुपए का अनुदान वितरित किया गया . देवेंद्र भाई ने बताया कि 77 गौशालाए राजस्थान के मेवाड़, जैसलमेर और बाड़मेर की हैं जो गौशाला प्रबंधन एवं स्वाबलंबन के स्थाई उपाय ढूंढने के कार्य करेंगे ताकि किसी भी जैविक आपदा से मुकाबला किया जा सके. उन्होंने बताया कि इस कार्यक्रम के बाद में सभी सभी गौशाला प्रतिनिधियों ने गौशाला को स्वावलंबी बनाने और प्राकृतिक आपदा से सामना करने का संकल्प लिया.
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