शिरडी के साईं बाबा बड़े ही विनम्र और सिद्ध महापुरुष थे। आज भी लोग उनसे जुड़ी बातों की चर्चा करते हैं जो उन्होंने अपने बुजुर्गों से सुनी हैं।
शिरडी के साईं बाबा के मंदिर में हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु उनके दर्शन के लिए आते हैं। सच में साईं बाबा के किस्से-कहानी अनोखे हैं। ऐसी ही एक कथा है मुंबई के एक धनी व्यापारी की। जिसको पढ़कर आपकी श्रद्धा साईं बाबा पर और भी बढ़ जाएगी। तो आइए, जानते है ऐसे ही भक्त की एक सच्ची कहानी, जो बयान करती है साई बाबा के चमत्कारों को-
कहा जाता है कि साल 1910 में मुंबई के एक धनी व्यापारी का बेटा बीमार हो गया। उसका काफी इलाज कराने के बाद भी जब वह ठीक नहीं हुआ तो वह उसे साईं बाबा के पास ले गया। मन में यह उम्मीद थी कि शायद इससे कुछ सुधार हो जाए। वह अपने परिवार के साथ शिरडी गया। वहां उसने साईं बाबा को प्रणाम किया और मन ही मन उनसे अपनी पीड़ा कही। बाबा ने भी उसके बेटे की ओर देखा तथा उसे आशीर्वाद दिया। शाम को बालक की स्थिति में काफी सुधार हो गया था। यह देखकर वह परिवार पुनः साईं बाबा के पास गया और उनका आभार जताया। बाबा ने उनसे कहा, सिर्फ परमात्मा ही किसी को जीवन दे सकता है। मेरा क्या सामर्थ्य है?
कहा जाता है कि उसके बाद बालक का स्वास्थ्य तेजी से सुधरा तथा प्रसन्न होकर एक दिन उस परिवार ने पुनः घर जाने का फैसला किया। जाने से पहले उनकी इच्छा थी कि एक बार वे साईं बाबा के दर्शन जरूर करें। इसलिए वे उनके स्थान पर गए और उनका आशीर्वाद लेकर घर जाने की अनुमति मांगी। बाबा ने परिवार के मुखिया को तीन रुपए देते हुए कहा, दो रुपए मैं तुम्हें पहले दे चुका हूं। इस बार ये तीन रुपए ले जाओ। इन्हें पूजा स्थान पर रख देना। ईश्वर का ध्यान करना, सदा अच्छे कर्म करना। तुम्हारा कल्याण होगा। उस व्यक्ति ने बाबा को प्रणाम कर वे तीन रुपए ले लिए, लेकिन पूरे रास्ते वह इसी सवाल में उलझा रहा कि बाबा ने मुझे दो रुपए कब दिए थे? मैं तो आज पहली बार ही इनके दर्शन करने आया हूं। फिर वे मुझे दो रुपए कैसे दे सकते हैं? इसी सवाल पर चिंतन करते हुए वह घर आ गया। उसने अपनी वृद्ध मां से पूरी बात कही। तब मां ने उसे बताया, बेटा, जब तू बहुत छोटा था तो एक बार बीमार हो गया था। तब तेरे पिता तुझे लेकर साईं बाबा के पास गए थे।
उस वक्त बाबा ने तुम्हारे सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए तुम्हें दो रुपए दिए थे। साईं बाबा सिर्फ सिद्धपुरुष ही नहीं, वे अपने भक्तों के साथ हृदय से जुड़े हुए हैं और इसीलिए वे उनके तन, मन और जीवन की सब बातें जानते हैं। अपनी माता के मुख से यह बात सुनकर उस व्यक्ति के आश्चर्य की सीमा नहीं रही। उसे इस बात पर पूरा भरोसा हो गया था कि भक्त और भगवान का रिश्ता बहुत मजबूत होता है। भक्त माया के वशीभूत होकर भगवान को भूल सकता है लेकिन भगवान उसे कभी नहीं भूलते, विपत्ति में कभी साथ नहीं छोड़ते।
No comments:
Post a Comment