बेटियां जीवन की शुरूआत तो पूरे जोश से करती हैं, वो जल्दी बोलना सीखती हैं, जल्दी चलना सीखती हैं, स्कूल में भी हमेशा मन लगाती हैं, लेकिन धीरे-धीरे बड़े होते-होते कुछ सामजिक प्रेशर, कुछ बदलते हारमोन उन्हें पीछे रहने के लिए मजबूर करने लगते हैं। ऐसे समय में पेरेन्ट्स की भूमिका अहम हो जाती है। पेरेन्ट अगर सूझ-बूझ से काम लें तो हमारी बेटियां हर स्थिति में रहेंगी पूरी तरह से कॉन्फिडेंट, पढ़िए-
दृढ़ता से बात रखना सिखाएं- बेटियों को सिखाएं की उन्हें बच्चों की झुंड में, क्लास रूम में और हर जगह अपनी बात दृढ़ता से रखनी चाहिए। किसी की कोई बात पसंद नहीं आई तो सीधे से कहना चाहिए, मुझे ये हरकत/बात पसंद नहीं आई।
सिर्फ तारीफ न करें, उन्हें बताएं कि क्यों तारीफ की जा रही है- झूठी तारीफों की जगह, सही और सटीक तारीफ करें। सिर्फ ये न कहें कि तुम स्मार्ट हों, उन्हें बताएं कि क्यों और कैसे वो आपको स्मार्ट लगी।
समझाएं कि हमेशा चीजें मन के अनुसार नहीं होती- जब कभी बच्चों का मन किसी बात के लिए छोटा हो, किसी से लड़ाई हो, कोई उशका दोस्त बनने से इंकार करे तो उसे बताएं कि जरूरी नहीं कि सभी चीज़ें उशके मन से हों, अगर कोई उससे दोस्ती नहीं कर रहा तो ये उसकी प्रॉबलम है, और हो सकता है कि उसका भी मूड खराब हो, आदी।
स्पोर्ट्स खेलने के लिए एंकरेज करें।
बच्चों की कमजोरी या ताकत के लिए पहले से धारणाएं न बनाएं– कभी किसी व्यबहार को पकड़ पेरेन्ट ये मन में न बाँध ले कि यही उनकी बेटी का स्वभाव है।
बॉडी इमेज के लिए सकारात्मक बनने दें सोच– बड़े होते बच्चों के मन में अपनी बॉडी को लेकर कई तरह से ख्याल आते है। जब कभी आपकी बेटी आपसे पूछे कि क्या सुंदर हूं तो उसे बताएं कि हां वो सुंदर है, लेकिन स्टेज पर डांस करते हुए या खेलते हुए, कविता पढ़ते हुए वो सबसे ज्यादा सुंदर लगती है।
सेक्सिज़म समझाएं– टीवी में अकसर ऐसे शोज़ अब भी प्रसारित होते हैं जिनमें लड़कियों का किरदार ज्यादा कुछ नहीं कर रहा होता और शो का हीरो कोई लड़का होता है। ऐसे में लड़कियों को समझाएं कि य़शो में भले ऐसा दिखाया जा रहा है, लेकिन वो भी ऐसी चीज़े कर सकती हैं।
सकारात्मक रोल मॉडल्स से मिलाएं– समाज में और हमारे आसपास एक से बढ़कर एकर प्रेरणा देने वाली महिलाएं हैं। ऐसी महिलाओंके बारे में उन्हें बताएं।
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