आप, मैं हम सब कहीं ना कहीं मां से ज्यादा जुड़े हुए होते हैं। मां की परेशानियों को समझना, उनके लिए अपने दिल में एक सॉफ्ट कॉर्नर रखना, काम में हाथ बटाना और उनका हमदर्द बनना हम सभी को करना पसंद होता है। मां भावनाओं का सैलाब होती है जिसका एक आंसू भी हमें खल जाता है।
मां अक्सर ही अपना दिल हल्का करने के लिए रो देती हैं लेकिन परिवार में पिता वो शख्स है जो ना जाने कितने आंसूओं को अपनी आंखों में छिपा कर रखता है। पिता लड़कियों को पाल पोस कर बड़ा कर देता है और एक आंसू नहीं बहाता लेकिन जब बेटियों की विदाई का समय आता है तो सबसे ज्यादा पिता ही रोता है।
लेकिन इस संसार में अक्सर ही मां को ज्यादा एहमियत दी जाती है। और ऐसा होना लाज़मी भी है क्योंकि मां 9 महीने कोख में रखकर असहनीय दर्द झेलकर हमको दुनिया में लाती है लेकिन दुनिया में आने का बाद क्या? इस दुनिया में रहने के लिए, पढ़ने के लिए आगे बढ़ने के लिए आपको कौन सपोर्ट करता है? आपकी पढ़ाई, आपकी शादी आपके शौकों की जिम्मेदारी कौन लेता है? जाहिर सी बात है इन सवालों का जवाब पिता ही है।
लेकिन हम पिता का उत्वाहवर्धन करना,उनके द्वारा किए गए कामों को सराहना उनकी कदर करना अक्सर भूल जाते हैं और वहीं मां के लिए हमेशा ही बोलते रहते हैं कि मां एक पैर पर खड़े होकर काम करती रहती है, बहुत त्याग करती है जो की वो करती भी है। पर क्या आपको पता है कि पिता कहता नहीं है लेकिन अगर आप महीने में एक – दो बार उनके द्वारा आपके लिए गए कार्यों और मदद के लिए थैंक्यू बोल देंगी तो इससे आपका कुछ घटेगा नहीं बल्कि आपके पिता का हौसला बढ़ेगा।
अंत में मेरा आपसे यही कहना है कि मां-बाप दोनों का बराबर का दर्जा है लेकिन मां के द्वारा किए गए त्यागों को नजर में रखने के साथ-साथ पिता के भी त्यागों और कामों को समय के साथ सराहएं….
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