डॉ दिलीप अग्निहोत्री
किसी प्रदेश में प्रायः राज्यपाल की नियुक्ति में आमजन की खास रुचि नहीं होती। लेकिन राम नाईक की सक्रियता से यह अवधारणा बदली है। उत्तर प्रदेश के आमजन राज्यपाल के रूप में पुनः राम नाईक को देखने के लिए उत्सुक है। बाइस जुलाई को उनका कार्यकाल समाप्त हो रहा है। राज्यपाल के दुबारा नियुक्ति में कोई संवैधानिक बाधा नहीं है। वर्तमान समय में भी नरसिम्हन राज्यपाल के रूप में अपना कार्यकाल पूरा कर रहे है। राम नाईक की सक्रियता में कोई कमी नहीं है। उन्होंने राजभवन के दरवाजे आमजन के लिए खोलने का कार्य किया। यही कारण है कि उनका उत्तर प्रदेश के लोगों से संवाद कायम हुआ। अपने दायित्वों का उन्होंने संवैधानिक मर्यादा में रहते हुए बखूबी अंजाम दिया। उन्होंने प्रमाणित किया कि राज्यपाल का पद आराम के लिए नहीं है। इसी धारणा वह राज्यपाल के पद को नया आयाम देने में सफल रहे। संविधान अथवा राजनीति शास्त्र की पुस्तकों में उनके इस रूप में किये गए कार्यो की चर्चा होगी। विद्यर्थियो को राज्यपाल के अधिकार व कर्तव्यों के विषय में बहुत कुछ जानकारी मिलेगी।
राम नाईक की पुस्तक चरैवेति चरैवेति का एक रोचक प्रसंग है। इससे राम नाईक की कार्यशीली का अनुमान लगाया जा सकता है। राम नाईक ने दो हजार नौ में चुनावी राजनीति से सन्यास लिया था। तब उन्होंने अपनी पत्नी कुंदा नाईक जी से कहा कि वह अब परिवार को समय दे सकेंगे। कुंदा नाईक से बेहतर उन्हें कौन समझता होगा। वह बोलीं कि आपके पैर में सनीचर है, अतः लगता नहीं कि आप परिवार को समय दे सकेंगे। यह बात कुंदा नाईक जी ने अपने अनुभव के आधार पर कही थी, उनकी बात सही साबित हुई। चुनावी राजनीति से हटने के बाद भी वह समाजसेवा से दूर नहीं हुए। उसमें समय बिताने लगे। कुछ समय बाद वह राज्यपाल बन गए। यहां भी उन्होंने निर्धारित अवकाश तक नहीं लिया।
उन्होंने चरैवेति-चरैवेति शीर्षक से अपने संस्मरण लिखे हैं। वस्तुतः यह उनका निजी जीवन दर्शन भी है, जिस पर उन्होंने सदैव अमल किया है। यही कारण है कि उन्होंने राजभवन के प्रति प्रचलित मान्यता को बदल दिया। उनका यह कार्यकाल चरैवेति-चरैवेति को ही रेखांकित करता है।
संविधान से संबंधित पुस्तकों में राज्यपाल का अध्याय रोचक रहता है। इसमें उसकी संवैधानिक स्थिति के साथ अनेक उदाहरणों का भी विवरण होता है। इसमें प्रायः विवादित मुद्दों को भी जगह मिलती है। अपवाद छोड़ दें तो अधिकांश राज्यपाल इसी श्रेणी के रहे हैं। संबंधित प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा हो तो बात अलग, अन्यथा राज्यपाल आराम के साथ अपना कार्यकाल व्यतीत कर देते हैं। प्रदेश के आमलोगों से राजभवन का विशेष संपर्क नहीं रहता है। लेकिन इन सबसे अलग उत्तर प्रदेश के राज्यपाल ने अपने कार्यकाल में मिसाल कायम की है। इस दौरान अनेक नजीर बनीं।
यह कहा जा सकता है कि राम नाईक के अनेक कार्यों को संविधान से संबंधित पुस्तकों में जगह मिलेगी। सबसे बड़ी बात यह कि नाईक के कार्यकाल में राजभवन के दरवाजे आमजन के लिए भी खुलने लगे। उन्होंने राज्यपाल को महामहिम कहने पर रोक लगाई। इसी मानसिकता के अनुरूप बदलाव होने लगे। उनकी दूसरी विशेषता उनकी सक्रियता है। चरैवेति-चरैवेति उनकी जीवनशैली और कार्यशीली में शामिल है। राज्यपाल पद का दायित्व निर्वाह भी वे इसी मानसिकता के अनुरूप करते हैं। उनके सुझाव से ही उत्तर प्रदेश ने पहली बार अपना स्थापना दिवस मनाया। वैसे यह सुझाव उन्होंने पिछली सपा सरकार के दौरान दिया था, लेकिन उसने इस सलाह को महत्व नहीं दिया। वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस पर अमल किया। इसे प्रदेश के आर्थिक और सांस्कृतिक विकास से जोड़ दिया गया। इसके पहले नाईक राजभवन में महाराष्ट्र दिवस आयोजित कर चुके थे।
लगातार दूसरी बार भव्यता के साथ यह समारोह आयोजित किया गया जिसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए। यह संयोग ही था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रत्येक राज्य से, किसी एक राज्य से विशेष सांस्कृतिक संबन्ध बनाने का आग्रह किया था। योगी आदित्यनाथ ने इसके लिए महाराष्ट्र को चुना था। लखनऊ राजभवन में आयोजित महाराष्ट्र दिवस से इस अभियान को गति मिली। लोकमान्य तिलक ने लखनऊ में ही स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार का ऐतिहासिक नारा दिया था।
यह नारा सर्वप्रथम उन्होंने कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में दिया था। इस नारे को सभी लोग जानते हैं, लेकिन राम नाईक का ध्यान इसके शताब्दी वर्ष पर गया। इसे भव्यता के साथ मनाने का सुझाव भी राम नाईक ने दिया था। योगी आदित्यनाथ ने इस पर अमल किया। खासतौर पर युवावर्ग को ऐसे आयोजनों से प्रेरणा मिलती है। भारत में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का मुख्य समारोह राजभवन में हुआ। ऐसा आयोजन करने वाला यह देश का पहला राजभवन बना। इस वर्ष इक्कीस जून को भी राजभवन में पूरी गरिमा के साथ योग समारोह आयोजित किया गया। जिसमें मुख्यमंत्री सहित हजारों लोगों ने योग किया।
लखनऊ में एक पूर्व मुख्यमंत्री के आवास में तोड़-फोड़ का संज्ञान लेकर राम नाईक ने सरकार को जांच कराने हेतु लिखा था। वह चाहते थे कि सरकारी संपत्ति को नुकसान न पहुंचाने का सन्देश भी जाये। इसके पहले भी राम नाईक अनेक मुद्दों पर अपनी सक्रियता के द्वारा नजीर कायम कर चुके हैं।
राम नाईक ने विधानपरिषद के लिए मनोनीत होने वालों सदस्यों के संदर्भ में संविधान में उल्लिखित योग्यता को महत्व दिया था। यह भी एक नजीर के रूप में सदैव स्थापित रहेगा। इसी प्रकार लोकायुक्त की नियुक्ति में भी उन्होंने सजगतापूर्वक प्रक्रिया का पालन किया था। इसमें यह तय हुआ कि उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश के विचार को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
उच्च शिक्षा में सुधार की दिशा में भी राम नाईक ने अनेक प्रयास किये। सभी विश्वविद्यालयों में सत्र नियमित किये गए। परीक्षा की गुणवत्ता कायम की गई। प्रत्येक विश्वविद्यालय में दीक्षांत समारोह आयोजित होने लगे। कुलपतियों के वार्षिक सम्मेलनों की शुरुआत भी राम नाईक ने की जिसके सकारात्क परिणाम रहे हैं। इसमें उल्लेखनीय यह है कि वह लोगों के साथ अत्यंत आत्मीयतापूर्वक मुलाकात करते हैं। यह उनके सहज स्वभाव में शामिल है। मुम्बई में सक्रिय राजनीति के समय से ही यह उनकी दिनचर्या में शामिल हो गया था। तब लोग जानते थे कि राम नाईक यदि मुम्बई में हैं, तो सुबह उनसे मुलाकात हो जाएगी। वह न केवल लोगों की समस्याएं सुनते थे, बल्कि अपनी पूरी क्षमता से उसके समाधान का प्रयास भी करते थे। राज्यपाल बनने के बाद उन्होंने राजभवन में भी अपने इस स्वभाव में बदलाव नहीं किया।
चरैवेति-चरैवेति में उन्होंने लिखा भी है कि आमजन के बीच रहना उन्हें अच्छा लगता है। लोकल ट्रेन आज भी उनकी मनपसंद सवारी है, क्योकि उसमें एक साथ बड़ी संख्या में लोगों से मुलाकात हो जाती है। एक वर्ष पूरा होने के बाद से ही वह प्रत्येक वर्ष बाइस जुलाई को राजभवन में ‘राम नाईक’ शीर्षक से अपना कार्यवृत्त जारी करते आ रहे हैं। इसकी शुरुआत भी उन्होंने मुम्बई से की थी। वह तीन बार विधायक और पांच बार लोकसभा सदस्य रहे। इस रूप में वह प्रतिवर्ष अपना कार्यवृत्त जारी करते थे। कुछ अवधि ऐसी भी थी जब वह किसी भी सदन के सदस्य नहीं थे। फिर भी समाजसेवा में उनकी सक्रियता कम नहीं हुई थी। इस रूप में भी वह आमजन के बीच अपना कार्यवृत्त रखते थे।
राज्यपाल को एक वर्ष में उत्तर प्रदेश के बाहर आयोजित कार्यक्रमों में जाने के लिये कुल तिहत्तर दिन स्वीकृत हैं। राम नाईक सदैव इस सीमा से बहुत पीछे रहे। उन्हें अपने दायित्व निर्वाह में ज्यादा सुख मिलता है।
इसी प्रकार राज्यपाल को बीस दिन का वार्षिक अवकाश उपभोग करने की अनुमति है। लेकिन राम नाईक ने इसका भी कभी पूरा लाभ नहीं उठाया। इसे देख कर कुंदा नाईक जी का ही कथन सही लगता है। एक बार उत्तराखंड व हिमाचल प्रदेश भ्रमण हेतु जितने दिन का अवकाश लिया था, उसके पहले ही लखनऊ आ गए। वर्ष दो हजार सत्रह अठारह में उन्होंने किसी प्रकार का व्यक्तिगत अवकाश नहीं लिया। सार्वजनिक जीवन की सक्रियता में वह अवकाश नहीं लेते थे।
अब तक वह बत्तीस हजार लोगों से समय देकर मुलाकात कर चुके हैं। राज्यपाल के रूप में किये गये कार्यों से उन्हें बहुत समाधान है।
उनके प्रयासों से उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र राज्य के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान का अनुबंध हुआ। सांस्कृतिक आदान-प्रदान के अनुबंध के तहत उत्तर प्रदेश में गीत रामायण के वाराणसी, आगरा, मेरठ एवं लखनऊ में आयोजन हुए।
उत्तर प्रदेश से पदम् पुरष्कृत महानुभावों को राजभवन में सम्मानित करने की शुरुआत राम नाईक ने ही की थी। अब यह उत्तर प्रदेश की परंपरा बन चुकी है। कारगिल दिवस पर बिना बुलाये लखनऊ के मध्य कमान स्थित स्मृतिका जाकर कारगिल शहीदों को आदरांजलि देना तथा परमवीर चक्र से सम्मानित प्रदेश के वीर सैनिकों के भित्ति चित्रों का निर्माण करवाना, विधायक, सांसद, मंत्री एवं राज्यपाल रहते हुये अपना वार्षिक कार्यवृत्त प्रकाशित करना, डाॅ आंबेडकर का सही नाम लिखना, लोकमान्य तिलक के अजर अमर उद्घोष स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा’ की एक सौ एकवी जयंती का आयोजन, अड़सठ वर्ष के बाद प्रथम बार उत्तर प्रदेश स्थापना दिवस का आयोजन, कुम्भ के पूर्व इलाहाबाद का पौराणिक नाम प्रयागराज करने का सुझाव, विधान सभा एवं नगरीय निकाय चुनाव में सबसे ज्यादा मतदान वाले क्षेत्र से जुड़े प्रतिनिधियों एवं कर्मचारियों का सम्मान, कुष्ठ पीड़ितों का गुजारा भत्ता बढ़ाने तथा उनके लिये पक्के आवास बनाने का सुझाव देना उनके अभूतपूर्व कार्यो में शामिल है। उनके संस्मरण चरैवेति चरैवेति अब तक दस भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।
जाहिर है कि अपनी सक्रियता से राम नाईक ने राज्यपाल के संवैधानिक दायित्वों को नया अध्याय लिखा है। उन्होंने यह प्रमाणित किया कि बेशक निर्वाचित सरकार ही कार्य करती है, इसके बावजूद राज्यपाल का पद आराम के लिए नहीं बल्कि बहुत कुछ करने के लिए होता है। इसके लिए राजभवन के वैभव के प्रति अनासक्त भाव रखने की भावना होनी चाहिए, तभी आमजन दिखाई देंगे। राम नाईक ने यही किया। वह लिखते हैं कि राजभवन की भव्यता बस उन्हें कार्य करने की प्रेरणा देती है। इस प्रकार राम नाईक ने केवल कार्य ही नहीं, विचारों और मानसिकता को भी महत्व दिया। इसलिए वह मिसाल और नजीर बना सके। भविष्य में राज्यपाल बनने वालों को इससे प्रेरणा मिलेगी।
No comments:
Post a Comment