इंसान की फितरत का भी कोई जवाब नहीं। वह कब किसके बारे में क्या सोचने लगे, इसका अंदाज लगा पाना बहुत मुश्किल है।
मुल्ला नसरुद्दीन पहुंचा एक अंजान आदमी के पास और उससे पूछने लगा- माफ कीजिए, क्या आप ही वह सज्जन हैं जिन्होंने कल मेरे लड़के को नदी में डूबने से बचाया था ?
जी हां। लेकिन वह तो मेरा फर्ज था। हर इंसान को अपना फर्ज निभाना ही चाहिए। आप उस बात को भूल जाइए।
उस अंजान व्यक्ति ने मुल्ला से कहा।
इस पर मुल्ला का जवाब था- आप कैसे कह सकते हैं कि मैं उस बात को भूल जाऊं। फर्ज की बात छोड़िए और यह बताइए कि मेरे लड़के की टोपी कहां है ?
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