कहीं आप भी तो किसी ”वैध” कॉलोनी के ”अवैध” मकान मालिक नहीं हैं ?
हो सकता है कि यह प्रश्न आपको कुछ अजीब लग रहा हो, या आप सोचने लगे हों कि यदि कॉलोनी ”वैध” है तो मकान ”अवैध” कैसे हो सकता है ?
यदि आप यह सोच रहे हैं तो जान लीजिए कि ऐसा हो सकता है। साथ ही यह भी हो सकता है कि बिल्डर को लाखों रुपए देकर जिस मकान को आप अपना समझ रहे हैं वह कल किसी कोर्ट के आदेश पर ध्वस्त कर दिया जाए और आपकी जिंदगी भर की जमा पूंजी सहित वो पैसा भी डूब जाए जिसे आपने इस कथित वैध मकान को खरीदने के लिए बैंक या फिर साहूकार से कर्ज ले रखा हो।
ऐसी स्थिति में मकान तो आपका रहेगा नहीं, ऊपर से आप जिंदगीभर उस कर्ज के बोझ तले दबे रहेंगे जिसे लेकर आपने अपने लिए एक अदद आशियाने का सपना संजोया था।
वैसे तो रियल एस्टेट कंपनियों ने यह खेल पूरे उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर खेला है किंतु बात करें विश्व विख्यात धार्मिक जिले मथुरा की तो यहां भी ऐसे बिल्डर्स की कोई कमी नहीं है जिन्होंने अपने प्रोजेक्ट के किसी एक हिस्से का नक्शा पास कराकर उसमें सैकड़ों अवैध मकान, बंगले और फ्लैट बनाकर बेच दिए हैं।
नेशनल हाई-वे नंबर दो पर बने मल्टीस्टोरी प्रोजेक्ट्स में नियम-कानून की किस कदर धज्जियां उड़ाई गई हैं, इन्हें मौके पर जाकर ही समझा जा सकता है। यहां न तो नियम के मुताबिक पार्किंग की जगह छोड़ी गई है और न पार्क बनाए हैं। आग लगने की स्थिति में फायर ब्रिगेड की एक गाड़ी इनके अंदर मूव नहीं कर सकती जबकि सैकड़ों फ्लैट खड़े कर दिए गए हैं। भूकंप जैसी किसी प्राकृतिक आपदा के लिए यहां सिर छिपाने की कोई व्यवस्था नहीं है, और न किसी इमारत में भूकंपरोधी कोई इंतजाम किए गए हैं। हजारों जिंदगियां भगवान भरोसे रह रही हैं क्योंकि डेवलपमेंट अथॉरिटी चुप्पी साधे बैठी है।
रियल एस्टेट कंपनियों के इस खेल में तमाम वो सरकारी विभाग भी शामिल हैं जिनमें ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार व्याप्त है और वो बैंकें भी लिप्त हैं जो बिल्डर्स से ऑब्लाइज होकर उनके एक इशारे पर कुछ भी करने को तत्पर रहती हैं।
दरअसल, रियल एस्टेट कंपनियों और बिल्डर्स का यह खेल वहीं से शुरू हो जाता है जहां से किसी प्रोजेक्ट का नक्शा पास कराने की प्रक्रिया शुरू होती है। कोई भी रियल एस्टेट कंपनी या बिल्डर कभी अपने पूरे प्रोजेक्ट का नक्शा एकसाथ पास नहीं कराता क्योंकि पूरे प्रोजेक्ट का एकसाथ नक्शा पास कराने के लिए उसे प्रोजेक्ट का एकमुश्त डेवलपमेंट चार्ज भी जमा कराना होता है। प्रोजेक्ट के किसी छोटे से हिस्से का नक्शा पास कराकर वह उसका प्रचार-प्रसार शुरू कर देता है और उसके नाम पर पैसा इकठ्ठा करने लगता है।
इस प्रक्रिया में नगर पालिका, नगर पंचायत, जिला पंचायत तथा अग्निशमन विभाग आदि भी रियल एस्टेट कंपनियों तथा बिल्डर्स को नियम विरुद्ध एनओसी देकर मदद करते हैं।
विकास प्राधिकरण से एकबार नक्शा पास हो जाने पर यह मान लिया जाता है कि सबकुछ जायज है लिहाजा रियल एस्टेट कंपनियों और बिल्डर्स को मनमानी करने की पूरी छूट मिल जाती है।
बताया जाता है कि मथुरा जनपद में नेशनल हाई-वे नंबर दो से लेकर वृंदावन, और गोवर्धन तक ऐसे प्रोजेक्ट्स की भरमार है जिनमें विकास प्राधिकरण से एप्रूव्ड नक्शे के अलावा सैकड़ों मकान फर्जी तरीके से बनाकर खड़े कर दिए गए।
किसी प्रोजेक्ट में चार टावर का अप्रूवल लेकर छ: टावर खड़े कर दिए गए तो किसी में अवैध व्यापारिक कॉम्पलेक्स बना दिए गए। किसी प्रोजेक्ट में ”प्रस्तावित” नक्शे के आधार पर ही पूरा निर्माण करा दिया गया तो किसी में मॉरगेज प्लॉट पर भी मकान खड़े कर दिए गए।
भ्रष्टाचार की नींव पर खड़े किए गए इन मकान और दुकानों का आलम यह है कि कहीं-कहीं तो ग्राम समाज की जमीन इसके लिए इस्तेमाल कर ली गई है और कहीं नहर, नाले व बंबों को पाटकर फ्लैट खड़े कर दिए गए हैं।
आश्चर्य की बात यह है कि वैध कॉलोनियों में बने ऐसे अवैध मकानों में आज अनेक लोग रह रहे हैं और दुकानों में कारोबार शुरू हो गया है लेकिन इन रहने वालों तथा कारोबार करने वालों को पता तक नहीं कि उनके ऊपर हर पल एक नंगी तलवार लटक रही है।
जहां तक सवाल विकास प्राधिकरण का है तो उसके अधिकारी और कर्मचारी पूरी मलाई मारकर अब तमाशबीन बने हुए हैं क्योंकि 01 मई 2017 से ”रियल एस्टेट रेगुलेशन एक्ट” अर्थात RERA लागू होने के बाद से उनके लिए भी काले को सफेद करना इतना आसान नहीं रह गया।
यह बात अलग है कि विकास प्राधिकरण, बिल्डर्स के अधिकांश काले कारनामों की ओर से अब भी आंखें फेरे बैठा है और कार्यवाही के लिए ऐसी अथॉरिटी के आदेश-निर्देश का इंतजार कर रहा है जिसके बाद वह आराम से यह कह सके कि अब हमारे हाथ में कुछ रहा ही नहीं।
रियल एस्टेट रेगुलेशन एक्ट के अनुसार अब किसी भी रियल एस्टेट कंपनी या बिल्डर को प्रोजेक्ट के गेट पर प्रोजेक्ट का पूरा ”ले-आउट” संबंधित अथॉरिटी से पास नक्शे सहित लगाना अनिवार्य है, जिससे खरीदार को पता लग सके कि उसके प्रोजेक्ट में कितनी तथा कौन-कौन सी इकाइयां पास हैं और उनका निर्माण कितने समय में पूरा हो जाएगा।
चूंकि यह नियम निर्माणाधीन प्रोजेक्ट सहित सभी पुराने प्रोजेक्ट्स पर भी लागू किया गया है इसलिए पूरे हो चुके प्रोजेक्ट भी इस दायरे में आते हैं, लेकिन अब तक किसी ऐसे प्रोजेक्ट पर बाहर नक्शा चस्पा नहीं किया गया और ना ही डेवलपमेंट अथॉरिटी ने किसी प्रोजेक्ट पर इसे लेकर कोई कार्यवाही की है।
इसी प्रकार रियल एस्टेट के हर कारोबारी, ग्रुप या कंपनी को RERA के तहत अपना रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य है और उस रजिस्ट्रेशन की जानकारी के साथ प्रोजेक्ट की वेबसाइट पर पैसे का पूरा ब्यौरा भी दिया जाना जरूरी है किंतु यहां तो कई नामचीन बिल्डर्स ने अब तक न RERA में रजिस्ट्रेशन कराया है और ना ही उनकी कोई वेबसाइट है। इन हालातों में उनसे ब्यौरा उपलब्ध कराने की उम्मीद भी कैसे की जा सकती है।
इस पूरे घपले-घोटाले का एक महत्वपूर्ण पहलू किसी प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री कराने में छिपा है क्योंकि रजिस्ट्री कार्यालय को सिर्फ और सिर्फ मतलब है तो रैवेन्यू वसूलने से, बाकी कौन कितना काला-पीला करता है, इससे उसे कोई वास्ता नहीं।
उसका सारा फोकस रजिस्ट्री के लिए जरूरी स्टांप लगवाने तथा उसमें हेर-फेर के लिए सुविधा शुल्क वसूलने तक सीमित है, बाकी जिम्मेदारी क्रेता तथा विक्रेता की है क्योंकि जब भी फंसते हैं तो वही फंसते हैं। रजिस्ट्री विभाग अपना पल्लू झाड़कर खड़ा हो जाता है।
यही कारण है कि रियल एस्टेट के कारोबारी पहले भी खरीदारों को बड़े इत्मीनान से लूटते रहे और आज भी लूट रहे हैं क्योंकि RERA लागू होने के बावजूद डेवलपमेंट अथॉरिटी ने नए कानून पर अमल करना शुरू नहीं किया है।
अथॉरिटी से शायद ही किसी नामचीन बिल्डर को अब तक RERA के तहत रजिस्ट्रेशन न कराने, वेबसाइट न बनवाने, नक्शा प्रदर्शित न करने तथा खरीदारों से प्राप्त रकम का ब्यौरा न देने पर नोटिस जारी किया गया हो।
डेवलपमेंट अथॉरिटी की इस ढील का कुछ बिल्डर तो भरपूर फायदा उठा रहे हैं और अब भी ऐसी इकाइयों को बेच रहे हैं जिनके नक्शे तक पास नहीं कराए गए।
ठीक इसी प्रकार अधिकांश पॉश कॉलोनियों में बिना नक्शा पास कराए दो से चार मंजिल तक का निर्माण कार्य अपनी मनमर्जी से करा लिया गया है लेकिन न कोई रोकने वाला है और न टोकने वाला। इस स्थिति में सरकार को तो राजस्व की बड़ी हानि हो ही रही है, साथ ही कॉलोनियों की वैधता पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।
विकास प्राधिकरण की भ्रष्ट तथा लचर कार्यप्रणाली का ही परिणाम है कि रियल एस्टेट के बहुत से करोबारी आम जनता का अरबों रुपया अब भी दबाकर बैठे हैं और उनके नीचे फंसे लोग किसी तरह अपनी जान छुड़ाने के प्रयास में हैं।
कोई कोर्ट कचहरी के चक्कर लगा रहा है तो कोई पुलिस से उम्मीद पाले बैठा है किंतु समस्या यह है कि बिना ठोस लिखा-पढ़ी के उनके लिए बिल्डर्स से निपटना आसान नहीं है।
हाल ही में नोएडा विकास प्राधिकरण ने कई नामचीन रियल एस्टेट कंपनी के सैकड़ों फ्लैट्स को अवैध घोषित कर दिया है। ये वो फ्लैट्स हैं जिनका पूरा पैसा बिल्डर्स की जेब में पहुंच चुका है। शासन-प्रशासन तक इन बिल्डर्स के सामने असहाय है क्योंकि वह अपने हाथ खड़े करने को तैयार बैठे हैं। कोर्ट में भी उन्होंने अपनी आर्थिक बदहाली का रोना रोकर राहत पाने की कोशिश की थी, हालांकि कोर्ट ने उनके घड़ियालू आंसुओं पर तवज्जो नहीं दी।
नोएडा डेवलेपमेंट अथॉरिटी इन नामचीन बिल्डर्स से कैसे निपटेगी और कैसे उन हजारों लोगों को राहत पहुंचाएगी जो इनके नीचे अपनी तमाम पूंजी फंसा बैठे हैं, यह प्रश्न तब गौण हो जाता है जब पता लगता है कि यहां सवाल सिर्फ दिल्ली से सटे नोएडा का नहीं है, सवाल मथुरा जैसे छोटे किंतु विश्व प्रसिद्ध धार्मिक शहरों का भी है जहां न केवल स्थानीय लोग ऐसे बिल्डर्स का शिकार बन रहे हैं बल्कि बाहरी लोग भी इनके शिकंजे में फंसे हुए हैं। उन्हें नहीं पता कि जिस प्रोजेक्ट को वैध समझकर उन्होंने मुंहमांगे दामों पर मकान या फ्लैट खरीदा है, उस प्रोजेक्ट के अंदर ही अवैध निर्माण कराकर उन्हें लूटा गया है।
इससे भी अधिक आश्चर्य तब होता है जब पता लगता है कि स्थानीय डेवलपमेंट अथॉरिटी की मिलीभगत तथा उसकी भ्रष्ट कार्यप्रणाली के चलते लूट का यह सिलसिला अब भी जारी है और ”रियल एस्टेट रेगुलेशन एक्ट” अर्थात RERA जैसा सख्त कानून भी फिलहाल तो ताक पर रखा हुआ है।
बताया जाता है कि हाल ही मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण की कमान संभालने वाली महिला आईएएस अधिकारी को विभाग की कार्यप्रणाली सुधारने के लिए खासे पापड़ बेलने पड़ रहे हैं किंतु विभागीय कर्मचारी हैं कि सुधरने का नाम नहीं ले रहे क्योंकि उन्हें पहले से चली आ रही अतिरिक्त कमाई पर आंच आना मंजूर नहीं। फिर चाहे बिल्डर किसी को लूटें या लुटे हुओं को ठेंगा दिखाकर खुलेआम रियल एस्टेट रेगुलेशन एक्ट को चुनौती दें।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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