महफ़िल में कई शायर है तो सुनाओ,
हमे वो शायरी जो दिल के आर पार हो जाये।
जिसका ये ऐलान है कि वो मज़े में है,
या तो वो फ़कीर है या फिर नशे में है।
इश्क न हुआ कोहरा हो जैसे,
तुम्हारे सिवा कुछ दिखता ही नहीं।
एक हसरत थी की कभी वो भी हमे मनाये,
पर ये कम्ब्खत दिल कभी उनसे रूठा ही नही।
अधूरा ही रह जाता है हर अल्फाज,
मेरी शायरी का तेरे अहसास की खुश्बू के बिना।
कभी मैं तो कभी ये बात बदल रही है,
कमबख्त नींद से मेरी लड़ाई चल रही है।
दिल अधूरी सी कहानियों का अंत ढूंढता रहा,
और वो कोरा पन्ना मुझे देर तक घूरता रहा।
टूटे हुए दिल भी धड़कते है उम्र भर,
चाहे किसी की याद में या फिर किसी फ़रियाद में।
जिस्म से रूह तक जाए तो हकीकत है इश्क,
और रूह से रूह तक जाए तो इबादत है इश्क़।
शक होता है जिनको अपने मर्द होने पर
शायद वो ही मासूमों पर मर्दानगी आजमाते हैं।
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