Intellectual property अधिकार विषय पर संस्कृति विश्वविद्यालय में हुआ सेमिनार
विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद यू.पी. के सहयोग से आयोजित हुआ सेमीनार
मथुरा। Intellectual property यानि बौद्धिक सम्पदा जो गोचर सम्पत्ति से कहीं अधिक मूल्यवान होती है। सम्पदा दो प्रकार की होती है, गोचर और अगोचर। भूमि, मकान, आभूषण, नकदी आदि गोचर सम्पत्ति के प्रमुख उदाहरण हैं जिन्हें देखा और स्पर्श किया जा सकता है लेकिन सम्पदा की एक श्रेणी ऐसी भी होती है जिसे स्पर्श नहीं किया जा सकता।
आज Intellectual property और अगोचर सम्पत्तियां मिलकर विश्व अर्थव्यवस्था की सर्वाधिक महत्वपूर्ण संचालक शक्ति बन गई हैं बावजूद अधिकांश भारतीय अपनी इस सम्पदा से बेखबर हैं जबकि आज के परिप्रेक्ष्य में बौद्धिक सम्पदा अधिकार की जानकारी हर किसी को होनी चाहिए उक्त सारगर्भित उद्गार शनिवार को संस्कृति विश्वविद्यालय में आयोजित सेमिनार में उत्तर प्रदेश विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद की संयुक्त निदेशक डा. शशी राना ने प्राध्यापकों और छात्र-छात्राओं को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए। सेमिनार का शुभारम्भ मां सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण और दीप प्रज्वलित कर किया गया।
डा. राना ने कहा कि हर प्रकार की सम्पत्ति को सुरक्षा और संरक्षण का सामना करना पड़ता है। बौद्धिक सम्पत्तियों को अलग तरह के खतरों का सामना करना पड़ता है। गोचर सम्पत्ति को अगर चुराया जा सकता है तो बौद्धिक सम्पदा की भी नकल किए जाने का अंदेशा रहता है लिहाजा हमें अपने शोध और विचारों को पेटेंट अवश्य कराना चाहिए। ट्रेड मार्क किसी विशेष वस्तु को खास पहचान प्रदान करता है और इस तरह वह उसे नकल किए जाने से बचाता है। डा. राना ने बताया कि उत्तर प्रदेश विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद का मूल उद्देश्य तकनीकी प्रौद्योगिकी का अधिकाधिक प्रचार-प्रसार करना है। हमने इसके लिए प्रदेश के छह विश्वविद्यालयों में विशेष सैल गठित किए हैं।
इस अवसर पर कुलपति डा. देवेन्द्र पाठक ने अपने सम्बोधन में कहा कि पेटेंट किसी व्यक्ति अथवा कम्पनी को प्रदत्त किया जाने वाला वह अधिकार है जो उन्हें किसी खास आविष्कार या बेजोड़ विनिर्माण प्रक्रिया से लाभ उठाने का हक प्रदान करता है। इससे आविष्कारकर्ता को एक सीमित अवधि तक यह अधिकार मिल जाता है कि उसकी अनुमति के बिना कोई अन्य व्यक्ति उसके आविष्कार का किसी भी रूप में इस्तेमाल नहीं करे।
डा. पाठक ने कहा कि कापीराइट मौलिक साहित्यिक पुस्तकों, उपन्यासों, गीतों, गानों, कम्प्यूटर प्रोग्रामों आदि के संरक्षण का साधन है। ये रचनाएँ अस्तित्व में आते ही रचनाकर्ता की सम्पत्ति बन जाती है। डिजाइन किसी उत्पाद का सम्पूर्ण या आंशिक प्रस्तुतीकरण होता है जो उसके रंग, रूप, आकार अथवा किसी उत्पाद की सामग्री या उसकी पैकेजिंग की विशेषताओं की परिणति होती है। इस सेमिनार का मुख्य उद्देश्य प्राध्यापकों और विद्यार्थियों को किसी भी नवीन खोज के दुरुपयोग या नकल रोकने के बारे में जागरूक करना रहा।
इस मौके पर टी.आई.एफ.ए.सी. की प्रिंसिपल ट्रेनिंग क्वार्डिनेटर दीप्ति ने अलग-अलग कानूनी एक्टों तथा नियमों के बारे में बताया। उन्होंने कोलकाता, चेन्नई, मुंबई, दिल्ली आदि में स्थित बौद्धिक सम्पत्ति अधिकारों को दर्ज करवाने वाले दफ्तरों के बारे में भी जानकारी दी। संदीप अग्रवाल आई.पी. एटार्नी एण्ड डायरेक्टर गुड़गांव ने नवीन खोज के पेटेंट की महत्ता तथा ट्रेड मार्क की रजिस्ट्रेशन पर प्रकाश डालते हुए ट्रेड मार्क, कॉपीराइट, लोगो, औद्योगिक डिजाइन आदि के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दी।
डा. बलराम यादव साइंटिस्ट सी.एस.टी. उत्तर प्रदेश ने बताया कि किसी नवीन विचार या ट्रेड मार्क की नकल करना कानूनी जुर्म है तथा हमें ऐसा करने से बचना चाहिए।
इस अवसर पर मधुसूदन मुकुंद मैनेजर आई.आई.टी. कानपुर ने भगवद गीता के बारे में बताया कि कापीराइट के चलते ही यह दुनिया भर में 17 भाषाओं में यथास्थिति-यथारूप पढ़ी जा रही है। सेमिनार में संस्कृति विश्वविद्यालय के एसोसिएट डीन डा. संजीव कुमार सिंह, डा. धर्मेन्द्र दुबे, प्रो. निर्मल कुंडू विभागाध्यक्ष मैनेजमेंट, विंसेंट बालू, विनय आनंद, डा. रीना रानी, रविन्द्र कुमार मालवीय, प्राचार्य स्कूल आफ एज्यूकेशन जया द्विवेदी आदि के साथ ही जीएलए यूनिवर्सिटी, हिन्दुस्तान कालेज साइंस एण्ड टेक्नोलाजी के साथ ही रतनलाल फूलकटोरी देवी महाविद्यालय के प्राध्यापक शामिल थे।
कुलपति देवेन्द्र पाठक ने अतिथियों को स्मृति चिह्न भेंट कर संस्कृति विश्वविद्यालय पधारने के लिए आभार माना।
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