होली व्रत कथा एवं व्रत विधि | Holi Vrat Katha In Hindi | Vrat Vidhi | Alienture हिन्दी

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Saturday, 24 February 2018

होली व्रत कथा एवं व्रत विधि | Holi Vrat Katha In Hindi | Vrat Vidhi

Holi Vrat Katha In Hindi, Vrat Vidhi, Puja Vidhi, Kahani, Story | रंगों का त्यौहार होली भारत के प्रमुख त्यौहारों में से एक है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। होली जहाँ एक ओर सामाजिक एवं धार्मिक है, वहीं रंगों का भी त्योहार है। रंगों का त्यौहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। पहले दिन को होलिका जलायी जाती है, जिसे होलिका दहन भी कहते हैं। दूसरे दिन को धुलंडी कहते है इस दिन एक दूसरे को गुलाल अबीर लगाते हैं। होली क्यों मनाई जाती है इस संदर्भ में पुराणों में अनेक कथाएं है। जिसमें सबसे प्रमुख विष्णु भक्त प्रह्लाद और उनकी बुआ होलिका से सम्बंधित है। आइए जानते है होली से सम्बंधित कुछ कथाएं।

Holi Vrat Katha In Hindi

होली व्रत कथा | Holi Vrat Katha In Hindi
प्रथम कथा – नारद पुराण के अनुसार आदिकाल में हिरण्यकश्यप नामक एक राक्षस हुआ था। दैत्यराज खुद को ईश्वर से भी बड़ा समझता था। वह चाहता था कि लोग केवल उसकी पूजा करें। लेकिन उसका खुद का पुत्र प्रह्लाद परम विष्णु भक्त था। भक्ति उसे उसकी मां से विरासत के रूप में मिली थी।

हिरण्यकश्यप के लिए यह बड़ी चिंता की बात थी कि उसका स्वयं का पुत्र विष्णु भक्त कैसे हो गया? और वह कैसे उसे भक्ति मार्ग से हटाए। होली की कथा (Holi ki Katha) के अनुसार जब हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को विष्णु भक्ति छोड़ने के लिए कहा परन्तु अथक प्रयासों के बाद भी वह सफल नहीं हो सका।

कई बार समझाने के बाद भी जब प्रह्लाद नहीं माना तो हिरण्यकश्यप ने अपने ही बेटे को जान से मारने का विचार किया। कई कोशिशों के बाद भी वह प्रह्लाद को जान से मारने में नाकाम रहा। बार-बार की कोशिशों से नाकम होकर हिरण्यकश्यप आग बबूला हो उठा।

इसके बाद उसने अपनी बहन होलिका से मदद ली जिसे भगवान शंकर से ऐसा चादर मिला था जिसे ओढ़ने पर अग्नि उसे जला नहीं सकती थी। तय हुआ कि प्रह्लाद को होलिका के साथ बैठाकर अग्निन में स्वाहा कर दिया जाएगा।

होलिका अपनी चादर को ओढकर प्रह्लाद को गोद में लेकर चिता पर बैठ गयी। लेकिन विष्णु जी के चमत्कार से वह चादर उड़ कर प्रह्लाद पर आ गई जिससे प्रह्लाद की जान बच गयी और होलिका जल गई। इसी के बाद से होली की संध्या को अग्नि जलाकर होलिका दहन का आयोजन किया जाता है।

दूसरी कथा – एक अन्य पौराणिक कथा शिव और पार्वती से संबद्ध है। हिमालय पुत्री पार्वती चाहती थीं कि उनका विवाह भगवान शिव से हो जाए पर शिवजी अपनी तपस्या में लीन थे। कामदेव पार्वती की सहायता को आए व उन्होंने अपना पुष्प बाण चलाया। भगवान शिव की तपस्या भंग हो गयी। शिव को बड़ा क्रोध आया और उन्होंने अपनी तीसरी आँख खोल दी। उनके क्रोध की ज्वाला में कामदेव का भस्म हो गए। तदुपरान्तर शिवजी ने पार्वती को देखा और पार्वती की आराधना सफल हुई। शिवजी ने उन्हें अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लिया। इस प्रकार इस कथा के आधार पर होली की अग्नि में वासनात्मक आकर्षण को प्रतीकत्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम की विजय का उत्सव मनाया जाता है।

तीसरी कथा – एक आकाशवाणी हुई कि कंस को मारने वाला गोकुल में जन्म ले चुका है। अत: कंस ने इस दिन गोकुल में जन्म लेने वाले हर शिशु की हत्या कर देने का आदेश दे दिया। इसी आकाशवाणी से भयभीत कंस ने अपने भांजे कृष्ण को भी मारने की योजना बनाई और इसके लिए पूतना नामक राक्षसी का सहारा लिया। पूतना मनचाहा रूप धारण कर सकती थी। उसने सुंदर रूप धारण कर अनेक शिशुओं को अपना विषाक्त स्तनपान करा मौत के घाट उतार दिया। फिर वह बाल कृष्ण के पास जा पहुंची किंतु कृष्ण उसकी सच्चाई को जानते थे और उन्होंने पूतना का वध कर दिया। यह फाल्गुन पूर्णिमा का दिन था अतः पूतनावध के उपलक्ष में होली मनाई जाने लगी।

होली पूजन सामग्री
रोली, कच्चा सूत, चावल, फूल, साबूत हल्दी, मूंग, बताशे, नारियल, बड़कुले (छोटे-छोटे उपलों की माला) आदि।

होली पूजा विधि | Holi Puja Vidhi in Hindi
एक थाली में पूजा की सारी सामग्री लें और साथ में एक पानी से भरा लोटा भी लें। इसके बाद होली पूजन के स्थान पर पहुंचकर नीचे लिखे मंत्र को बोलते हुए स्वयं पर और पूजन सामग्री पर थोड़ा जल छिड़कें-

ऊं पुण्डरीकाक्ष: पुनातु,
ऊं पुण्डरीकाक्ष: पुनातु,
ऊं पुण्डरीकाक्ष: पुनातु।

अब हाथ में पानी, चावल, फूल एवं कुछ दक्षिणा लेकर नीचे लिखा मंत्र बोलें-

ऊं विष्णु: विष्णु: विष्णु: श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया अद्य दिवसे सौम्य नाम संवत्सरे संवत् 2073 फाल्गुन मासे शुभे शुक्लपक्षे पूर्णिमायां शुभ तिथि रविवासरे -गौत्र (अपने गौत्र का नाम लें) उत्पन्ना-(अपना नाम बोलें) मम इह जन्मनि जन्मान्तरे वा सर्वपापक्षयपूर्वक दीर्घायुविपुलधनधान्यं शत्रुपराजय मम् दैहिक दैविक भौतिक त्रिविध ताप निवृत्यर्थं सदभीष्टसिद्धयर्थे प्रह्लादनृसिंहहोली इत्यादीनां पूजनमहं करिष्यामि।

गणेश-अंबिका पूजन

हाथ में फूल व चावल लेकर भगवान गणेश का ध्यान करें-
ऊं गं गणपतये नम: आह्वानार्र्थे पंचोपचार गंधाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि।।
अब भगवान गणपति को एक फूल पर रोली एवं चावल लगाकर समर्पित कर दें।
ऊं अम्बिकायै नम: आह्वानार्र्थे पंचोपचार गंधाक्षतपुष्पाणि सर्मपयामि।।
मां अंबिका का ध्यान करते हुए पंचोपचार पूजा के लिए गंध, चावल एवं फूल चढ़ाएं।
ऊं नृसिंहाय नम: आह्वानार्थे पंचोपचार गंधाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि।।
भगवान नृसिंह का ध्यान करते हुए पंचोपचार पूजा के लिए गंध, चावल व फूल चढ़ाएं।
ऊं प्रह्लादाय नम: आह्वानार्थे पंचोपचार गंधाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि।।
प्रह्लाद का स्मरण करते हुए नमस्कार करें और गंध, चावल व फूल चढ़ाएं।

अब नीचे लिखा मंत्र बोलते हुए होलिका के सामने दोनों हाथ जोड़कर खड़े हो जाएं तथा अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए निवेदन करें-

असृक्पाभयसंत्रस्तै: कृता त्वं होलि बालिशै: अतस्त्वां पूजयिष्यामि भूते भूतिप्रदा भव:।।

अब गंध, चावल, फूल, साबूत मूंग, साबूत हल्दी, नारियल एवं बड़कुले (भरभोलिए) होली के समीप छोड़ें। कच्चा सूत उस पर बांधें और फिर हाथ जोड़ते हुए होली की तीन, पांच या सात परिक्रमा करें। परिक्रमा के बाद लोटे में भरा पानी वहीं चढ़ा दें।

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