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Thursday 13 September 2018

क्या यही हैं भारत के ‘विश्वगुरू’ बनने के लक्षण?

निर्मल रानी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर भारतीय जनता पार्टी के छोटे नेताओं तक के द्वारा कई बार ऐसे बयान दिए जाते हैं जो आम लोगों को आश्चर्यचकित कर देते हैं। इस प्रकार के विवादित बयान जहां समाज के एक बड़े वर्ग को अतार्किक, निरर्थक तथा फुज़ूल के ऐसे बयान प्रतीत होते हैं जिनका सच्चाई से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं होता। वहीं दूसरी ओर इन्हीं नेताओं के समर्थक जिन्हें आज की भाषा में ‘भक्तगण’ कहा जा रहा है वे लोग इन बयानों को सत्य तथा महत्वपूर्ण मानने लग जाते हैं। भले ही ऐसे बयान प्रयोगिक रूप से स्वयं को सही साबित न कर पाते हों। उदाहरण के तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अपने एक भाषण में यह बताया गया कि-‘मैंने एक अखबार में पढ़ा था कि एक शहर में नाले के पास एक व्यक्ति चाय बेचता था। उस व्यक्ति के मन में विचार आया कि क्यों न गंदी नाली से निकलने वाली गैस का इस्तेमाल किया जाए। उसने एक बर्तन को उल्टा करके उसमें छेद कर दिया और पाईप लगा दिया। अब गटर से जो गैस निकलती थी उससे वह चाय बनाने का काम करने लगा’।
प्रधानमंत्री मोदी ने केवल इतना ही ‘ज्ञान’ सांझा नहीं किया बल्कि इस प्रकार के ‘अविष्कार’ पर और अधिक रौशनी डालते हुए एक और घटना का जि़क्र करते हुए बताया कि-‘जब मैं गुजरात का मु यमंत्री था उस समय मैंने देखा कि एक व्यक्ति ट्रैक्टर की ट्यूब को स्कूटर से बांधकर ले जा रहा था। हवा से भरा ट्यूब का$फी बड़ा हो गया था जिससे यातायात में का$फी परेशानी आ रही थी। पता करने पर उस व्यक्ति ने बताया कि वह रसोई के कचरे और मवेशियों के गोबर से बायो गैस प्लांट में गैस बनाता है। बाद में उस गैस को ट्यूब में भरकर अपने खेत में ले जाता है जहां वह उस गैस का प्रयोग कर पानी का पंप चलाता है’। यदि प्रधानमंत्री का उपरोक्त वक्तव्य सही है तो निश्चित रूप से भारत सहित पूरे विश्व के वैज्ञानिकों तथा ज्वलनशील गैस पर शोध करने वाले वैज्ञानिकों के लिए बेहद शर्म की बात है कि अभी तक उन्होंने इस प्रकार की ‘ज्ञान गंगा’ पूरी दुनिया में क्यों नहीं बहाई? आज देश में पेट्रोल-डीज़ल व गैस की बढ़ती कीमतों को लेकर हाहाकार मचा हुआ है। क्यों नहीं पूरे देश के लोगों को यह सुझाव व तकनीक दी जा रही है कि वे अपने-अपने घरों की नालियों व सेप्टिक टैंक की गैस का प्रयोग करें और गैस सिलेंडर पर निर्भरता छोड़ें? क्यों नहीं कार,स्कूटर आदि में भी उसी प्रकार के नि:शुल्क पाए जा सकने वाले गैस के टैंक रखे जा रहे हैं? ज़ाहिर है जब प्रधानमंत्री स्तर का कोई व्यक्ति ऐसी बात करे तो उसे झूठ कैसे कहा जा सकता है? परंतु यदि प्रधानमंत्री की बातों पर पूरा देश अमल करता हुआ नज़र नहीं आता या सरकार द्वारा इस विषय का प्रचार-प्रसार नहीं किया जाता ऐसे में इस बयान पर अथवा ऐसे ‘ज्ञान’ पर संशय होना स्वाभाविक हैं। उन्हें मन की बात में भी यह विषय गंभीरता से उठाना चाहिए।
इसी प्रकार उत्तर प्रदेश के मु यमंत्री योगी आदित्यनाथ गत् दिनों बागपत में एक कार्यक्रम में देश के गन्ना उत्पादक किसानों को यह सलाह दे आए कि वे गन्ने के अतिरक्त खेतों में अन्य फसलें उगाने की आदत डालें। क्योंकि लोग शूगर के कारण बीमार होते जा रहे हैं। उनके इस बयान पर किसान नेताओं द्वारा यह पूछा जाने लगा है कि मु यमंत्री को इसी सलाह के साथ-साथ यह भी बता देना चाहिए था कि यदि वे शूगर की बढ़ती बीमारी के भय से गन्ने की फसल न उगाएं फिर आ$िखर उन्हें कौन सी फसल उगानी चाहिए? मु यमंत्री के इस बयान पर विश्लेषकों द्वारा यह भी कहा जा रहा है कि क्या बीमारी के भय से किसी वस्तु विशेष का उत्पादन ही बंद कर दिया जाना चाहिए? यदि ऐसा है तो समाज को नु$कसान पहुंचाने वाली सबसे बड़ी चीज़ शराब, सिगरेट, बीड़ी, खैनी, गुटका तथा भांग आदि है। सरकार इन चीज़ों के उत्पादन बंद करने की बात आ$िखर क्यों नहीं करती? ईरान सहित अनेक ऐसे देश जो वास्तव में अपने समाज की भलाई के विषय में गंभीरता से सोचते हैं तथा उस दिशा में रचनात्मक कदम भी उठाते हैं। वहां शराब जैसी हानिकारक चीज़ों का उत्पादन ही नहीं होता। ऐसे भी कई देश हैं जहां नशीले पदार्थों का उत्पादन करने, इसकी तस्करी करने या इसके व्यवसाय में शामिल होने वालों को सज़ा-ए-मौत दी जाती है। क्या हमारे देश में समाज कल्याण के दृष्टिगत् इस प्रकार का कोई कानून कभी बनाया गया है?
हमारे देश में तो धर्म की शिक्षा-दीक्षा देने वाले हज़ारों धर्मस्थानों में नशीले पदार्थों का सरेआम सेवन होता है। $खासतौर पर कुंभ जैसे बड़े-बड़े मेलों में तो जगह-जगह नशीला धुंआ उड़ते देखा जा सकता है। परंतु सरकार की इस पर न तो कोई नज़र है न निगरानी न ही नियंत्रण। दरअसल शराब व सिगरेट के उत्पादन से जुड़े मालिकों के हाथ इतने लंबे हैं कि वे सरकार के बनाने व चलाने में अपना पूरा दखल रखते हैं। इनके स्वामी ऊंचे रुसूख रखते हैं इसलिए भला उन्हें यह सलाह कैसे दी जा सकती है कि वे शराब व सिगरेट के उत्पादन बंद कर दें। यह तो गरीब, भोली-भाली, अनपढ़ जनता ही है जिसे जब चाहे नाले की गैस से चाय या रसोई चलाने की सलाह दे दी जाए या फिर शुगर के बढ़ते मरीज़ों की जि़ मेदारी गन्ना उत्पादक किसानों पर डाल दी जाए। भारतीय नेताओं के महाज्ञानी होने की दास्तान तो वैसे दशकों पुरानी है। परंतु जब से वर्तमान भाजपा सरकार सत्ता में आई है या दूसरे शब्दों में यूं कहें कि देश को जबसे ‘अच्छे दिन’ नसीब हुए हैं तब से ‘महाज्ञान’ की कुछ ज़्यादा ही ‘मूसलाधार वर्षा’ होने लगी है। भाजपा का कोई न कोई नेता आए दिन ज्ञान वर्षा करता दिखाई दे जाता है।
कभी उत्तरप्रदेश के उपमु यमंत्री दिनेश शर्मा सीता जी के घड़े से जन्म होने की घटना को टेस्ट ट्यूब बेबी का उस समय का प्रयोग बता बैठते हैं तो कभी महाभारत काल के पौराणिक पात्रों संजय व नारद को उस समय का गूग्गल तथा पत्रकारिता का शुरुआती काल बता डालते हैं। वे बड़े दावे के साथ यह भी कहते हैं कि मोतियाबिंद का ऑप्रेशन गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत, प्लास्टिक सर्जरी, इंटरनेट तथा परमाणु परीक्षण जैसी आधुनिक समझी जाने वाली वैज्ञानिक प्रक्रियाएं दरअसल पौराणिक काल में ही शुरु हो गई थीं। इसी प्रकार त्रिपुरा के मु यमंत्री विप्लव देव भी ‘ज्ञान वितरण’ में किसी से कम नहीं हैं। वे भी महाभारत युग में इंटरनेट व सेटेलाईटस समेत कई तकनीकी सुविधाओं को मानते हैं। विप्लव देव को तो युवाओं को यहां तक सुझाव है कि मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पृष्ठभूमि रखने वालों को सिविल सेवाओं का चयन नहीं करना चाहिए। वे युवाओं को गाय पालने तथा पान की दुकान खोलने की सलाह भी देते हैं। कभी भाजपा का कोई केंद्रीय मंत्री यह कहता दिखाई देता है कि बलात्कार दुर्भाग्यपूर्ण है परंतु इन्हें रोका नहीं जा सकता और इतने बड़े देश में एक-दो घटनाएं हो जाएं तो बतंगड़ नहीं बनाना चाहिए तो कभी कैलाश विजयवर्गीय जैसे वरिष्ठ नेता देश की लड़कियों को सीता हरण का प्रसंग सुनाकर समझाते हैं कि यदि ‘महिलाएं लक्ष्मण रेखा पार करेंगी तो सामने रावण बैठा है और वह हरण करके ले जाएगा’। तो कभी हिंदुत्व की रक्षा के लिए हर हिंदू महिला को पांच से दस बच्चे पैदा करने की सलाह सांसद स्तर के लोग दिखाई देते हैं।
इस प्रकार के और भी न जाने कितने विवादित गैरजि़ मेदाराना तथा निरर्थक बयान भाजपा नेताओं द्वारा दिए जाते रहते हैं। और यही लोग देश को विश्वगुरू बनाने की बातें भी करते हैं। ऐसे में यह सवाल उठना ज़रूरी है कि क्या इसी स्तर की सोच व इसी प्रकार की ‘ज्ञानवर्षा’ तथा ऐसे सुझावों के द्वारा ही देश विश्वगुरू बन पाएगा?

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