मथुरा। भगवान कृष्णकी लीलाओं से हमें जिस तरह की खेती का संदेश मिलता है, हम उसी तरह की खेती की दिशा में आगे बढ रहे हैं। इसे परिस्थितिकी जन्य खेती कहा गया है। संस्कृति विश्वविद्यालय ने सर्वोत्तम खेती के लिए सेंटर ऑफ एक्सीलेेंस ऑन इकोलॉजिकल फॉर्मिंग खोला है। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय के प्रोसेस एण्ड प्रोडक्ट्स डेवलमेंट सेंटर (पीपीडीसी) के निर्देशन मेें यह केन्द्र चलेगा। विश्वविद्यालय में देशभर के छात्र एवं किसान टिकाऊ खेती पर आधारित ट्रेनिंग, सलाह आदि ले सकेंगे। आगरा मण्डल में संस्कृति विश्वविद्यालय इस तरह का पहला और एक मात्र केन्द्र होगा। इतिहास गवाह है कि भगवान कृष्ण ने ब्रज में धरती माता को उपजाऊ बनाने के लिए गोचारण किया, ताकि गायों का गोबर जगह-ंजगह गिरकर जमीन को ताकतवर बनाए। यमुना शुद्धीकरण के लिए कालिया नाग को मारकर यमुना को प्रदूषण मुक्त किया। वायु प्रदूषण रोकने के लिए ब्योमासुर नामक राक्षस के वध की कथा हमें इकोलॉजिकल फॉर्मिंग की दिशा में बढने को प्रेरित करती हैं। उससे प्राप्त उत्पाद दाने-ंचारे के रूप में किसी भी जीवधारी पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न छोड़ेंगे। जैव विविधता कायम रहेगी। जैविक खेती पर इस समय सरकार का भी जोर है लेकिन इससे भी श्रेष्ठ परिस्थितिकीय खेती है। जैविक खेती इसका एक घटक है। परिस्थितिकीय खेती किसी भी क्षेत्र मंे मौजूद संसाधानों के आधार पर होती है।
नवंबर से ही इकोलॉजिकल फॉर्मिंग के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू हो जाएंगे। इस एमओयू के लिए एमएसएमई के निदेशक पन्नीर सेल्वम ने विवि में द्विपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस अवसर पर विवि के कुलाधिपति सचिन गुप्ता, ओएसडी मीनाक्षी शर्मा, कुलपति डा. राणा सिंह, उप कुलपति डा. अभय कुमार, कार्यकारी निदेशक पीसी छाबड़ा आदि मौजूद थे। इस अनुबंध से विश्वविद्यालय के छात्रों को अपार खुशी हुई है। वह अपनी पढाई के साथ प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग लेकर खेती से जुड़ सकेंगे।
एमएसएमई के सहयोग से यह केन्द्र स्थापित होने से स्थानीय और बाहरी छात्र एवं किसान सभी को कई तरह के लाभ होंगे। अनुसंधान, स्किल डेवलपमेंट, ट्रेनिंग प्रोग्राम, वर्कशॉप आदि का आयोजन सतत रूप से होता रहेेगा। विशेषज्ञ विश्वविद्यालय एवं एमएसएमई के संयुक्त प्रयासों से श्रेष्ठतम बुलाए जाएंगे। सर्वांगीण विकास के लिए इस तरह के प्रयोग आवश्यक हैं। इंजीनियरिंग, कृषि एवं विज्ञान के छात्रों को भी इस केन्द्र की स्थापना से लाभ होगा। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय के माध्यम से ट्रेनिंग लेने वाले लोगों को प्रमाण-ंउचयपत्र प्रदान किए जाएंगे। यह जानना जरूरी है कि किसानों ने खेतों में गोबर आदि की खाद डालना बंद कर दिया है। इससे जमीन मैं मौजूद जीवांश कार्बन बेहद घट गया है। वह दिन दूर नहीं जब जीवांश कार्बन के न रहने से रासायनिक खाद भी खेतों में उपज बढाने का काम नहीं कर सकेंगे। इसका असर
चारे दाने की गुणवत्ता पर पड़ रहा है। कमजोर जमीन से पैदा होने वाले अन्न में भी अनेक तरह के पोषक तत्वों की कमी है। दूध या भोजन के रूप में खाए जाने वाले अनाजों में भी वह ताकत अब नहीं बची है। धनिए में अब सुगंध नहीं रही। दालों में प्रोटीन का प्रतिशत घट रहा है। गेहूं में कार्बोहाइड्रेट जैसे तत्वों की कमी हो रही है। इन सब चीजों का असर मानव, पशु-ंउचयपक्षी और पर्यावरण सभी पर पड़ रहा है। परिस्थितिकी जन्य खेती इस दिशा में मील का पत्थर साबित होगी। यह प्रयास धरती माता के साथ लोगों के बिगड़ते स्वास्थ्य की दिशा में भी सुधार कर सकेगा। उपजाऊ जमीन में उपजा अन्न भी पोषक एवं लाभाकारी होगा। हमारा प्रयास ब्रज और देश के लोगों की सेहत के साथ उनके सर्वांगीण विकास का है।
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Wednesday, 24 October 2018
संस्कृति विश्वविद्यालय सिखाएगा कृष्ण कालीन खेती
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