सरकार और बीजेपी में सरदर्द—राजभर के अपने हैं दर्द
अशोक सिंह विद्रोही /कर्मवीर त्रिपाठी
उत्तर प्रदेश की रामराज्य वाली योगी सरकार के गठबंधन गुलदस्ते में काॅटों भरे गुलाब के तौर पर अपने तीखे बयानों से सरदर्द का सबब कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर खुद को रामायण काल का लव कुश कहते हैं । जिन्हें राम सहित चारों भाइयों के सिद्धांतों से आपत्ति थी। भाजपा सरकार में शामिल होकर भी सरकार की आलोचनात्मक कला में माहिर राजभर पूर्वांचल के 18 फीसद राजभर आबादी के सबसे बड़े नेता हैं। शायद यही वजह है कि दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करने वाली बीजेपी के चाणक्य अमितशाह से लेकर फायर ब्रांड मुख्यमंत्री योगी तक राजभर पर ऐक्सन की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे ।
राम मंदिर से लेकर सीधे मुख्यमंत्री योगी तक पर सरकार में शामिल रहते हुए अपने जुबानी हमलों से लगातार आक्रामक ओमप्रकाश राजभर की राजनीतिक पारी की शुरुआत 81 के दशक में काशीराम के साथ हुयी, जो साल 2001 में मायावती से मतभेद के चलते बसपा को अलविदा कहने और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के गठन का सबब बनी।
पूर्वांचल में ओबीसी दलित फैक्टर में अच्छी दखल के बूते पर ही 2017 के विधानसभा आम चुनाव में भाजपा को सुभासपा से गठबंधन के चलते 128 सीटों का सुख मिला था । चार सीटों से अपने पार्टी के विधायक बना कर राजभर ने योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री का पद तो प्राप्त कर लिया लेकिन बकौल राजभर योगी से उन्हें हमेशा उपेक्षा ही मिली । यही वजह है कि राजभर बीजेपी की रार दुश्मन ना “करे दोस्त ने वो काम किया है” जैसी हालत में है। सरकारी अफसरों के नकारेपन तथा सीएम योगी तक की बात अफसरों के ना मानने का कथन कह चुके राजभर यह बखूबी जानते हैं कि आगामी लोकसभा चुनावों में उनकी हैसियत बीजेपी के लिए कितनी जरूरी है । जानकारों की मानें तो भाजपा समेत सपा, बसपा में भी राजभर नेता हैं । बावजूद इसके राजभर समाज में वोटरों पर पकड़ ओमप्रकाश राजभर की ही है । यही वजह है कि बीजेपी सरकार ने अपनी पार्टी के कोटे से अनिल राजभर को राज्यमंत्री बनाकर काफी प्रमोट करने की कोशिश की लेकिन उनका असर बेअसर ही रहा। बीजेपी के पिछड़ा वर्ग सम्मेलन, रैली और मोर्चे के ब्रम्हास्त रूपी तीरों को नाकामी के बक्से में बंद कर चुके ओमप्रकाश राजभर बखूबी जानते हैं कि कब और क्या कहना है। दबाव व प्रभाव का भूत सरकार से लेकर बीजेपी तक के सर पर नाचता रहे इसीलिए सरकार व भाजपा में गुड़ घाली हसिया बने राजभर को लेकर योगी ने विनाश काले विपरीत बुद्धि की बात कहीं तो वहीं डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, दिनेश शर्मा , प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडे तक महज नसीहत का झंडू बाम एक दूसरे के माथे पर लगा कर चुप हो जाते हैं।
ओमप्रकाश राजभर को जानने वालों का कहना है कि सूबे की बीजेपी सरकार ने भी राजभर के साथ दोस्ती के वादों में बेवफाई की है।
यही कारण है कि राजभर आये दिन राशन पानी लेकर अपनी ही सरकार पर चढायी कर देते हैं।
कूटनीति की चतुर खिलाड़ी बीजेपी ने शिवपाल यादव को जिस तरह सरकारी बंगले का सुख दुश्मन का दुश्मन दोस्त वाली नीति के तहत दे दिया ऐसी उदारता आज तक हमसफर राजभर को पार्टी कार्यालय के लिए जमीन या कार्यालय देकर नहीं दिखायी। अपने पुत्र के रिसेप्शन के पूर्व राजभर ने पैतृक गांव फतेहपुर सिंधोरा में अपने घर तक पहुंचने के लिए सड़क न होने पर खुद कुदाल फावड़ा लेकर ग्रामीणों की मदद से 500 मीटर सड़क बना डाली थी। सरकार तथा स्थानीय अफसरों की उपेक्षा पर जमकर हमला बोलते हुए ओम प्रकाश राजभर ने कहा था कि मुझे दबाने का प्रयास न किया जाए मैं ज्वालामुखी हूं । जितना दबाओगे उतना खतरनाक होता जाऊंगा। सरकार में कालिदास की उपाधि से नवाजे जा चुके राजभर के जनसभाओं में सीमित संसाधन के बावजूद सीएम योगी की जनसभाओं से ज्यादा भीड़ जुटती है। जिसका एहसास बीजेपी को बखूबी है ।ओमप्रकाश राजभर को लेकर जल बिन मछली की तरह योगी सरकार की छटपटाहट हाल फिलहाल कम नहीं हो सकती क्यों की आगामी लोकसभा चुनावों में बीजेपी की तैयारी भले ही हाईटेक हो लेकिन पूर्वांचल की जमीनी हकीकत कुछ और ही है।
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