प्रेम शर्मा
ताजातरीन सड़क हादसों में मौत के आकड़े तथा इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की फटकार और टिप्पणी ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या इन मौतों के लिए वाकई गड्ढें जिम्मेदार है या फिर हमारी सरकार जिनका यह दायित्व है कि सड़क निर्माण कराने के दौरान इनकी गुणवत्ता का निरीक्षण ही न करे अपितु इनके रखरखाव का पूरा ध्यान रखें। रखरखाव के आभाव में जनता की गाढ़ी कमाई से बनाई गई सड़के चंद दिनों में गड्ढें के जालों की छबि में तब्दील हो जाती हैं, इसका परिणाम है कि सड़क दुघर्टनाओं मौत का आकड़ा चैकाने वाला सामने आ रहा है। अभी कुछ साल पहले नासा के एक अंतरिक्ष यान की भेजी हुई मंगल ग्रह की सतह की तस्वीरें जब अखबारों में छपीं, तो बहुत से लोगों की प्रतिक्रिया थी कि इससे ज्यादा गड्ढे तो हमारे शहर की सड़कों पर हैं। हमारे देश की सड़कें और उनके गड्ढे हमेशा से ही मजाक और चुटकलों का विषय रहे हैं। ये गड्ढे हमारे नागरिक जीवन का एक ऐसा सच है, जिस पर उछलते और झटके खाते हुए ही हमारी विकास यात्रा न जाने कब से बढ़ती रही है। अच्छी बात यह है कि अब जब सुप्रीम कोर्ट ने इसकी सुध ली है, तो हमारी राह के बहुत सारे सच सामने आ रहे हैं। गड्ढों को लेकर हम मजाक भले ही कितने भी बना लें, लेकिन इसके सच बहुत ही क्रूर हैं। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में जो आंकड़े पेश किए गए, उनके अनुसार सड़कों के गड्ढों की वजह से हुई दुर्घटनाओं के कारण हर साल 14,926 से ज्यादा लोगों की जान चली जाती है। अदालत का कहना है कि यह संख्या आतंकवाद की वजह से मरने वाले लोगों की संख्या से कहीं ज्यादा है। शायद आतंकवाद, मॉब लिंचिंग, सांप्रदायिक दंगों, जातीय हिंसा वगैरह में जान गंवाने वालों की कुल संख्या को जोड़ लिया जाए, तब भी सड़कों के गड्ढों की वजह से मरने वालों की संख्या कहीं ज्यादा होगी। लेकिन देश में सुबह-शाम जितना हंगामा आतंकवाद को लेकर होता है, गड्ढों के आतंक को लेकर कभी नहीं होता। गत दिवस देश भर में सड़कों पर बने गड्ढे में गिरने से पिछले पांच सालों में 15 हजार मौत पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी नाराजगी जताई है। कोर्ट ने कहा कि यह आंकड़ा बॉर्डर पर और आतंकी हमले में मरने वालों से भी ज्यादा है। जस्टिस मदन बी.लोकूर की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि आंकड़ा इस बात का गवाह है कि सड़कों का रखरखाव सही तरह से नहीं हो रहा है। यह स्वीकार्य नहीं है कि सड़क पर बने गड्ढों के कारण इस कदर लोगों की मौत हो रही है। सुप्रीम कोर्ट कमिटी द्वारा पेश की गई रिपोर्ट को देखने के बाद शीर्ष अदालत ने उक्त टिप्पणी की। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस के.एस. राधाकृष्णनन की अगुवाई वाली कमिटी ने रोड सेफ्टी पर अपनी रिपोर्ट पेश की थी।रिपोर्ट में कहा गया है कि 2013 से लेकर 2017 के बीच 14,926 लोगों की सड़कों पर बने गड्ढे के कारण मौत हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने रिपोर्ट को देखने के बाद कहा कि आंतकी हमले में मरने वालों से भी ज्यादा मौतें सड़क पर बने गड्ढे के कारण होने वाले एक्सिडेंट से हुई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कमिटी की रिपोर्ट पर जवाब दाखिल करने को कहा है। अदालत ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह तमाम राज्यों से इस मामले में संपर्क करे और फिर रिपोर्ट पर जवाब दाखिल करे।सुप्रीम कोर्ट में कोर्ट सलाहकर गौरव अग्रवाल ने बताया कि कमिटी ने रिपोर्ट पेश की है। रिपोर्ट एनएचएआई के आंकड़ों पर आधारित है। सड़क के रखरखाव की जिम्मेदारी जिसकी है वही इसके लिए जिम्मेदार है। राज्य के सड़क विभाग सड़कों का सही तरह से रखरखाव नहीं कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो आंकड़ा पेश किया गया है उससे साफ है कि मौत की संख्या बेहद ज्यादा है। इससे साफ होता है कि सड़कों के रखरखाव की जिम्मेदारी जिस पर है वह काम नहीं कर रही है। चाहे म्युनिसिपल कॉरपोरेशन, राज्य सरकार या एनएचएआई हो वह सड़कों का रखरखाव सही तरह से नहीं कर रहे हैं। ऐसे मामले में विक्टिम को मुआवजा तक नहीं मिल रहा है। जख्मी का डेटा नहीं है। उनकी संख्या और ज्यादा होगी। सुप्रीम कोर्ट विक्टिम को मुआवजा दिए जाने के मुद्दे पर भी सुनवाई कर रही है। कोर्ट सलाहकार गौरव अग्रवाल ने कोर्ट को बताया था कि रोड सेफ्टी मामले में जो समस्याएं हैं उसे नहीं देखा जा रहा है। सड़कों के गड्ढे को कैसे रिपेयर किया जाए इस पर पॉलिसी नहीं है। मीटिंग में कोई इनपुट नहीं था कि कैसे सड़कों के गड्ढे को ठीक किया जाए। जो ब्लाइंड स्पॉट है उसे भी देखा जाना चाहिए। बेशक यह एक बड़ा मामला है कि हमारी राजनीति जनता के जरूरी मुद्दों से भटकी रहती है या इसे यूं भी कहा जाता है कि हमारी राजनीति जनता को जरूरी मुद्दों से भटकाए रखती है। अच्छी सड़कें हमारे यहां यदा-कदा चुनावी मुद्दा भी बनती हैं, लेकिन आमतौर पर यह स्थानीय मुद्दा होता है। आमतौर पर केंद्र या राज्य की सरकारें सड़कों के मुद्दे पर बनती या गिरती नहीं हैं। सरकारें अक्सर जो ढेर सारे वादे जनता से करती हैं, उनमें से एक बात अक्सर सड़कों को गड्ढा मुक्त करने की भी होती है। कभी-कभार यह काम होता हुआ दिखाई भी देता है। लेकिन जितने गड्ढे भरे जाते हैं, थोडेघ् ही समय में उससे ज्यादा नए बन जाते हैं। न तो हमें आज तक अच्छी गुणवत्ता की सड़कें ही मिल सकी हैं और न ही ऐसी प्रशासनिक व्यवस्था, जिसमें गड्ढा दिखते ही उसे भरने की कवायद शुरू हो जाए। ये गड्ढे, इनका बने रहना और शायद बढ़ते जाना यह भी बताता है कि हमारा शासन-प्रशासन किस गुणवत्ता का जीवन जनता को दे रहा है? ऐसा जीवन, जो कुछ को मौत की तरफ धकेल देता है।अब जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में उठ रहा है, तो क्या इससे कुछ उम्मीद बांधनी चाहिए? बेशक बांधनी चाहिए। लेकिन साथ ही हमें कुछ और चीजों पर भी गौर फरमाना होगा। कुछ महीने पहले ही सुप्रीम कोर्ट में गैर-कानूनी रूप से बने स्पीड ब्रेकर का मसला उठा था। तब यह बताया गया था कि इनकी वजह से हुई दुर्घटनाओं की वजह से हर साल दस हजार से ज्यादा लोगों की जान जाती है। तब सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे सभी स्पीड ब्रेकर हटाने को कहा था। पता नही, इनमें से कितने हटे और कितने नए बन गए? किसी भी शहर के किसी भी मुहल्ले की सड़कों-गलियों में चले जाइए, आपको न जाने कितने स्पीड ब्रेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना करते मिल जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट जब सड़कों को गड्ढा मुक्त करने की ओर बढ़ रहा है, तब इसे लेकर क्या हमारी सरकारें भी उतनी ही गंभीर हैं?.सुप्रीम कोर्ट ने सड़कों पर गड्ढों की वजह से पिछले पांच साल में हुई दुर्घटनाओं में 14,926 मौतों पर गुरुवार को चिंता जताई। अदालत ने इसे अस्वीकार्य बताते हुए कहा कि यह संभवतः सीमा पर या आतंकियों द्वारा की हत्याओं से ज्यादा है। अब प्रश्न यह उठता है कि जनता से टैक्स बटोर कर मूलभूत सुविधाओं के निर्माण और उनके रखरखाव की जिम्मेदारी सरकार की बनती है। टोल टैक्स और रोड़ टैक्स के नाम पर अरबों खरबों की वसूली के बाद भी अगर सड़कों को गड्ढा मुक्त नही रखा जाता तो इसकी नैतिक जिम्मेदारी सरकार की बनती है इसलिए यह तो तय है कि इन गड्ढों के कारण होने वाली मौत के लिए सरकार जिम्मेदार है। इसलिए सरकार और इनके करिन्दों को इन मौत के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।
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Sunday, 9 December 2018
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