नीरज अवस्थी
नई दिल्ली/नीरज अवस्थी। राजधानी दिल्ली में सर्दी का सितम शुरू हो चुका है, लेकिन दिल्ली से अभी तक नाइट शेल्टर लापता हैं। कड़ाके की इस ठंड के बीच लोगों का जहां घर से निकलना भी मुश्किल है, वहीं बे-घर लोग फुटपाथ पर रात गुजारने को मजबूर हैं।शीत लहर की सबसे अधिक मार विक्षिप्त लोगों (मनोरोगियों) पर पड़ रही है। मानसिक रोगी दिन में तो किसी तरह रह लेते हैं, लेकिन सर्द रातें उनके लिए बेहद कष्टदायी साबित होती हैं। नवोदय टाइम्स के रियलिटी चेक में सामने आया कि पश्चिमी दिल्ली के जनकपुरी वेस्ट और टैगोर गार्डन मेट्रो स्टेशन के नीचे सैकड़ों लोग एक पतले से कंबल में ठिठुर रहे थे।बे-घरों को देखकर सरकार के दावे पूरी तरह से फेल साबित हो रहे हैं। वहीं अम्बेडकर और संजय गांधी अस्पताल में भी तीमारदारों के लिए ठंड से बचने के लिए कोई विशेष इंतजाम नहीं किए गए हैं। तीमारदार जमीन पर ही रात गुजारने को मजबूर हैं। पर्याप्त नाइट शेल्टरों की व्यवस्था न होने से मजबूरन बे-घर लोग फुटपाथ,फ्लाईओवर व मेट्रो स्टेशन के बाहर कड़ाके की ठंड में रात बिता रहे हैं।ठड़क किनारे जहां अभी तक नाइट शेल्टर बना दिए जाने चाहिए थे, वहां अभी दूर-दूर तक नाइट शेल्टर नजर नहीं आ रहे हैं। जैसे-जैसे सर्दी का प्रकोप बढ़ता जाएगा, वैसे-वैसे ठंड से मौत का ग्राफ भी आसमान को छूने लगेगा। ठंड से हर साल हजारों लोगों की जान जाती है। सरकारी आंकड़ों पर नजर डालें तो चार साल में ठंड से भारत में 10933 लोगों की जान गई थी। राजधानी दिल्ली भी इसमें पीछे नहीं है। सबसे ज्यादा मौत फुटपाथ और खुले आसमान के नीचे सोने वाले लोगों की हुई है। फुटपाथ पर सो रहे लोगों को रैन बसेरों तक लाना अब भी एक बड़ी चुनौती बना हुआ है।
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