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Wednesday 27 February 2019

इस जगह पर प्रसाद में बांटी जाती हैं मटन बिरयानी

2 क्विंटल चावल, 100 बकरे और 600 मुर्गे… ये सब एक खास तरह का प्रसाद बनाने के लिए इकट्ठा किया गया था। इस प्रसाद को आसपास के गांव से आए लोगों में बांटा गया। हैरान ना हों, यह तमिलनाडु के मदुरै स्थित वड़क्कमपट्टी और कल्लीगुड़ी जैसे गांवों की यह खास पहचान है। इसे हर साल उत्सव की तरह मनाया जाता है। इसके पीछे एक रोचक कहानी है।

दरअसल, ये कुछ ऐसे गांव हैं जहां कई किसान होटलों के मालिक बन गए। पहले मुनियांदी होटल की शुरुआत 1937 में गुरुसामी नायडू ने की थी। उसके बाद नायडू के एक करीबी दोस्त ने भी कल्लीगुड़ी और विरुधुनगर में ऐसे होटल खोले। चेन्नै में मुनियांदी होटल चलाने वाले एस राजगुरु ने बताया, ‘हमारे लोग इन होटल्स में काम करते हैं, जो अधिकतर उनके रिश्तेदारों द्वारा ही चलाए जाते हैं। जब वे काम सीख जाते हैं तो वे बाहर जाकर अपना खुद का होटल खोल लेते हैं। उनके रिश्तेदार इसमें उनकी मदद करते हैं।’

पूरे दक्षिण भारत में फैले मुनियांदी होटलों के मालिक दो बातों का विशेष ध्यान रखते हैं, पहली यह कि ग्राहकों को स्वादिष्ट नॉन वेज भोज परोसा जाए और दूसरा कि अपने होटलों का नाम अपने कुलदेवता मुनियांदी के नाम पर रखा जाए।

हाल ही मे वड़क्कमपट्टी में खत्म हुए दो दिवसीय मुनियांदी फेस्टिवल में हिस्सा लेने आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, पुडुचेरी और तमिलनाडु के कई मुनियांदी होटल मालिक हिस्सा लेने आए। शनिवार सुबह करीब 8,000 लोगों ने फेस्टिवल में हिस्सा लिया और प्रसाद के तौर पर बांटी गई मटन बिरयानी खाई।

चेन्नै के पूनमल्ले इलाके में राजविलास होटल चलाने वाले एन पी रामासामी ने कहा, ‘यह फेस्टिवल एक मौका होता है जब हमारे पास समाज को कुछ लौटाने का मौका होता है। इसके लिए हम रोजाना पहले कस्टमर से मिलने वाली रकम को अलग रखते रहते हैं।’ रामासामी अपने इष्टदेव मुनियांदी के नाम पर होटल का नाम नहीं रख पाए क्योंकि इसी इलाके में पहले से उनका एक साथी ग्रामीण इसी नाम से एक होटल चला रहा था।

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