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Monday, 1 April 2019

एक साल बाद भी सीबीआई जाँच पूरी नहीं हुई, दोषियों को सज़ा नहीं हुई और छात्रों के साथ न्याय नहीं हुआ

नई दिल्ली | बेरोज़गारी को बड़ा मुद्दा बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले राष्ट्रव्यापी आंदोलन युवा-हल्लाबोल ने सनसनीखेज़ खुलासा किया है। सोमवार को दिल्ली में आयोजित एक प्रेस वार्ता में आंदोलन से जुड़े नेताओं ने बताया कि किस तरह एसएससी में धांधली को छिपाने और भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए नियमों को ताक पर रखकर सेवानिवृत हो चुके चेयरमैन अशीम खुराना को एक साल का सेवा-विस्तार (एक्सटेंशन) दिया। आरटीआई से मिले जवाब, उच्च अधिकारियों की फाइल नोटिंग्स और बैठकों की मिनट्स को मीडिया के समक्ष प्रस्तुत करते हुए युवा-हल्लाबोल ने आरोप लगाया कि एसएससी में भ्रष्टाचारियों को बचाने का काम सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इशारे पर हुआ है, वो भी असंवैधानिक ढंग से। गुजरात कैडर के आईएएस अधिकारी श्री अशीम खुराना पिछले साल काफी चर्चा में रहे थे जब कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी) में पेपर लीक और भ्रष्टाचार को लेकर देशभर में प्रदर्शन हुए। यह भारत का सबसे बड़ा भर्ती आयोग है जिसके माध्यम से सालाना लगभग दो करोड़ युवा पढ़ लिखकर एसएससी द्वारा आयोजित परीक्षाओं के माध्यम से अपने लिए उज्ज्वल भविष्य का सपना देखते हैं। लेकिन फरवरी 2018 में सीजीएल 2017 परीक्षा के प्रश्नपत्र लीक होने पर आक्रोशित छात्रों को जोरदार आंदोलन करना पड़ा। छात्रों के आक्रोश के केंद्र में थे आयोग के अध्यक्ष श्री अशीम खुराना, जिनको पद से हटाने की मांग देशभर से हुई। लेकिन युवाओं की मांगों के प्रति असंवेदनशील हो चुकी सरकार ने खुराना को हटाना तो दूर उन्हें एक साल का एक्सटेंशन दे डाला, वो भी नियमों को ताक पर रखते हुए। इसके बाद सरकार ने असंवैधानिक ढंग से चेयरमैन पद के लिए अधिकतम आयु बढ़ाकर 65 वर्ष करके पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू करते हुए अपने ग़लत फैसले को कानूनी जामा भी पहना दिया। लेकिन नियम संशोधित करने की प्रक्रिया में यूपीएससी से लेकर विधि मंत्रालय तक के उच्च अधिकारियों ने मोदी सरकार की मंशा पर गंभीर सवाल उठाए और इस असंवैधानिक संशोधन को रोकने का असफल प्रयत्न किया। अधिकारियों ने इस तानाशाही और ग़ैरकानूनी कदम का बाकायदा लिखकर विरोध किया जिसके कागज़ात युवा-हल्लाबोल ने प्रेस वार्ता में प्रस्तुत किए। 31 मार्च 2018 को संसद मार्ग पर युवा-हल्लाबोल का आयोजन हुआ जिसमें छात्रों पर पुलिस लाठीचार्ज भी हुए थे। इससे पहले हज़ारों छात्रों ने लगातार 18 दिन रात तक सीजीओ कॉम्प्लेक्स स्थित एसएससी मुख्यालय के सामने बैठकर प्रदर्शन किया था। इस आंदोलन के दबाव में 22 मई 2018 को सीबीआई ने प्राथमिक एफआईआर दर्ज किया जिसमें एसएससी के अनाम अधिकारियों समेत सिफी कंपनी के अधिकारी का भी नाम था। सुप्रीम कोर्ट को दिए गए स्टेटस रिपोर्ट में सीबीआई ने कहा है कि एसएससी के जिन अधिकारियों के ऊपर स्वच्छ और ईमानदार परीक्षा करवाने की ज़िम्मेदारी थी उन्होंने अपने पद का दुरुपयोग किया। इसी कारण छात्रों ने मांग की थी कि एसएससी चेयरमैन अशीम खुराना को तुरंत हटाया जाए लेकिन सरकार ने कोई कार्यवाई नहीं की। 12 मई 2018 को तो अशीम खुराना स्वयं पद से सेवानिवृत होने वाले थे लेकिन पूरा देश हैरत में आ गया जब ख़बर आयी कि उन्हें एक साल का एक्सटेंशन दे दिया गया है। यह युवाओं के साथ सिर्फ मज़ाक ही नहीं बल्कि सीधे तौर पर जाँच प्रभावित करने के उद्देश्य से उठाया गया कदम था ताकि एसएससी में चल रहा गोरखधंधा बाहर न आए और भ्रष्टाचार के छींटे सरकार में बैठे लोगों पर न पड़े। वरना दूसरा कोई कारण नहीं दिखता कि क्यूँ एसएससी आंदोलन के दौरान युवा आक्रोश के केंद्र में रहे अशीम खुराना को सरकार सर आँखों पर बिठाए और हर नियम ताक पर रखके पूर्वव्यापी प्रभाव से सेवा-विस्तार दे डाले।
14 मई 2018 को कैबिनेट की नियुक्ति समिति, जिसके सदस्य प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री राजनाथ सिंह हैं, ने प्रस्ताव जारी किया कि खुराना को एसएससी के चेयरमैन पद पर एक साल का एक्सटेंशन दिया जाए। प्रधानमंत्री मोदी की समिति का यह आदेश अनैतिक होने के साथ साथ दो मामलों में ग़ैरकानूनी भी था:
• आदेश जारी होने के दो दिन पहले यानि 12 मई को ही अशीम खुराना सेवानिवृत हो चुके थे, इसलिए इस परिस्थिति में सेवा विस्तार का प्रावधान बनता ही नहीं
• जब यह आदेश जारी किया गया तो एसएससी नियुक्ति नियम में चेयरमैन पद के 62 वर्ष की अधिकतम आयुसीमा को अशीम खुराना पार कर चुके थे 
इस ग़ैरकानूनी सेवा-विस्तार को संवैधानिक जामा पहनाने के लिए ही नरेंद्र मोदी और राजनाथ सिंह की कैबिनेट समिति ने कार्मिक और प्रशिक्षण मंत्रालय के माध्यम से चेयरमैन की नियुक्ति संबंधी नियमों में संशोधन करवाने का प्रस्ताव जारी किया। 14 तारीख को जिस दिन एक्सटेंशन का आदेश हुआ उसी दिन नियमों में संशोधन का प्रस्ताव जारी होना यह स्पष्ट करता है कि अशीम खुराना को ग़ैरकानूनी सेवा विस्तार देते वक्त सरकार को अपने कारनामे का इल्म था। नियमों में हर हाल में संशोधन करवाने की जद्दोजहद का कारण यह था कि एसएससी की कारगुज़ारियों पर देश के युवाओं की लगातार नज़र थी और मामला सुप्रीम कोर्ट में भी विचाराधीन था। संशोधन का उद्देश्य खुराना के ग़ैरकानूनी सेवा-विस्तार को न्यायिक रूप देना था, न कि एसएससी में कोई संस्थागत सुधार। इस बात की पुष्टि 23 मई के कार्मिक विभाग की एक फाइल नोटिंग से हो जाती है जहाँ स्पष्ट निर्देश दिया गया है कि नियुक्ति नियमों में ऐसे प्रावधान किए जाएं जिससे वर्तमान चेयरमैन को दिया गया सेवा-विस्तार रेगुलराइज हो सके। 15 जून 2018 को यूपीएससी ने कहा कि कोर्ट आदेश के अलावा और किसी भी परिस्थिति में एसएससी की नियुक्ति नियमों में संशोधन को पिछली तारीख यानी पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू नहीं किया जा सकता। इसके बाद विधि एवं न्याय मंत्रालय के अधिकारियों ने तीन अलग अवसरों (06 जून, 16 अगस्त और 07 सितंबर) पर कैबिनेट कमिटी के इस प्रस्ताव को खारिज़ करते हुए लिखा कि एसएससी के नियुक्ति नियमों में किए जा रहे संशोधन को पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू करवाने की कोशिश संविधान की धारा 14, 16 और 39 का उल्लंघन है क्यूंकि इसका उद्देश्य सिर्फ़ वर्तमान पदासीन अधिकारी के ग़ैरकानूनी सेवा-विस्तार को नियमित करने का है। विधि मंत्रालय के अधिकारियों ने तो इस सेवा-विस्तार के बारे में यहाँ तक लिखा कि यह एक ऐसी अनियमितता है जिसे इस नियम संशोधन में स्थापित किया जा रहा है और इसका इरादा सिर्फ और सिर्फ अनियमितता को नियमित करना है। साफ शब्दों में कहें तो विभाग के अधिकारियों को इस बात से आपत्ति थी कि मोदी जी असंवैधानिक ढंग से खुराना को एसएससी चेयरमैन बनाए रखना चाहते हैं जिसके लिए अधिकारियों से हस्ताक्षर करवाया जा रहा।
एसएससी जिस कार्मिक और प्रशिक्षण मंत्रालय के अंतर्गत आता है उसका कार्यभार मोदी जी के पास है। श्री जितेंद्र सिंह को मंत्रालय में सिर्फ राज्य मंत्री का दर्जा है। युवा-हल्लाबोल ने इसलिए प्रधानमंत्री मोदी से सवाल किए हैं कि:
• ऐसी क्या मजबूरी है आपकी जो देश के सबसे बड़े भर्ती आयोग में भ्रष्टाचार को इस कदर शह देना पड़ रहा है?
• गुजरात कैडर के अधिकारी श्री अशीम खुराना से आपका क्या याराना है जिन्हें इतने आरोपों, युवाओं के आक्रोश और आंदोलन के बाद भी कोई हिला नहीं पाया?
• लगभग साल भर पूरा होने को है लेकिन अब तक सीबीआई की जाँच पूरी क्यूँ नहीं हुई है जबकि छात्रों ने समयबद्ध जाँच की मांग की थी?
• उच्च अधिकारियों की इतनी अप्पत्तियों के बावजूद ग़ैरकानूनी ढंग से नियमों में संशोधन करके खुराना को एसएससी में बनाये रखने की क्या मजबूरी है  
देश में आज बेरोज़गारी दर चरम पर है जो 45 साल के रिकॉर्ड को भी तोड़ चुकी है। ऐसे में एसएससी भारत की सबसे बड़ी भर्ती एजेंसी है जिसकी विभिन्न परीक्षाओं में सालाना दो करोड़ के क़रीब युवा बैठते हैं। एसएससी जैसे आयोग के साथ यह खिलवाड़ न सिर्फ युवाओं के भविष्य के प्रति सरकार की बेपरवाही का परिचायक है बल्कि संस्थानों को चलाने की मोदी नीति का भी एक उदाहरण है। यह रवैय्या आश्चर्यजनक नहीं है क्यूंकि संस्थानों की स्वायत्तता और कार्यप्रणाली के साथ छेड़छाड़ करना इस सरकार की पहचान बन गयी है।

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