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Wednesday 8 May 2019

पलटवार से तिलमिलाए राहुल

डॉ दिलीप अग्निहोत्री

जब से भारत को राफेल युद्धक विमान मिलना सुनिश्चित हुआ है, तभी से राहुल गांधी चोर चोर चिल्ला रहे है। इस निराधार नारे को राहुल हजारों बार दोहरा चुके है। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केवल एक बार पलटवार क्या किया राहुल गांधी तिलमिला गए। मतलब मोदी का तीर निशाने पर बैठा था। उनके बिना कहे क्वात्रोची, मिशेल, नेशनल हेराल्ड आदि भी चर्चा में आ गए। इसके बाद राहुल गांधी की झल्लाहट साफ दिखाई दे रही। उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी ने लालकृष्ण आडवाणी को पंच मार कर बाहर कर दिया, मोदी फिनिश आदि। ये वाक्य राहुल की बेचैनी को ही उजागर कर रहे थे। नरेंद्र मोदी ने बोफोर्स पर राजीव गांधी के मंत्रिमंडल में शामिल रहे एक नेता का बयान ही दोहराया था। राहुल गांधी को यह एहसास अवश्य हुआ कि दूसरे को चोर बताना कैसा लगता है। खासतौर पर वह व्यक्ति जो स्वयं घोटाले के आरोप में सपरिवार पेरोल पर है।

नरेंद्र मोदी का यह पलटवार अपरिहार्य हो गया था। क्योंकि राहुल गांधी का चोर चोर चिल्लाना बेलगाम होता जा रहा था। राहुल को यह लग रहा होगा कि वह इसे बोफोर्स जैसा बना देंगे। लेकिन यह राहुल की गलतफहमी है। इस समय नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री है। इसके अलावा क्या कारण हो सकता है। केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद का तो कहना है कि राफेल विमान मिलने से भारतीय वायु सेना खुश है, उंसकी दो हजार छह से चली आ रही जरूरत पूरी हो रही है, जबकि कांग्रेस द्वारा किये जा रहे हंगामे से चीन , पाकिस्तान खुश है।

ये देश पिछले काफी समय से अपनी वायुसेना को मजबूत बनाने का संयुक्त प्रयास कर रहे थे, जबकि यूपीए सरकार अपने पूरे कार्यकाल में इसके प्रति लापरवाह बनी रही। उसने एक दाम तय किये, आठ वर्ष तक उसे लहराती रही, लेकिन भारतीय वायु सेना को राफेल की फोटो भी नसीब नहीं हुई। यह रहस्यमय है कि कांग्रेस सरकार ने विमान लेने के प्रति गंभीर क्यों नहीं थी। इस बात की जांच होनी चाहिए। जबकि यह वायुसेना की जरूरत थी। चीन की तैयारी व पाकिस्तान की तैयारी के मद्देनजर कांग्रेस सरकार के समय यह सौदा अमल में आ जाना चाहिए था। उसके पास समय भी बहुत था।

दूसरा यह कि कांग्रेस द्वारा विश्व मे राफेल के दाम को मुद्दा बनाने की भी जांच होनी चाहिए। खासतौर पर तब जबकि चीन के विशेषज्ञ दाम के आधार पर भारत को मिलने वाले विमानों में लगे उपकरणों की जानकारी हासिल करना चाहते थे। राफेल को भारतीय परिस्थियों और जरूरतों के अनुकूल बनाया गया है। यह रहस्य है कि कांग्रेस इनका खुलासा क्यों कराना चाहती है।

रविशंकर प्रसाद ने राहुल से पूंछा कि वर्ष दो हजार छह से दो हजार चौदह तक के बीच के दौरान आपने राफेल डील क्यों नहीं फाइनल कर दी थी। वो क्या बात थी जिसने आपको रोक कर रखा हुआ था। मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार बंद किया इसलिए राहुल को परेशानी हो रही है। उन्होंने कहा कि राफेल डील को यूपीए सरकार ने पहले दस वर्ष तक लटकाया और फिर इसे रद्द कर दिया। कानून मंत्री ने कहा कि यह सब घूस न मिलने की वजह से किया गया था। चिदम्बरम ने कहा था कि विमान यूपीए के मुकाबले सस्ते थे तो छत्तीस ही क्यों लिए। प्रसाद ने इसका जबाब दिया। कहा कि फिलहाल छत्तीस राफेल इसलिए लिए जा रहे हैं क्योंकि भारत में ही राफेल बनाये जायेगें। भारत रक्षा सामग्री का निर्यातक बनेगा। जिससे नौकरी के अवसर पैदा होंगे। डिसॉल्ट अपने बयान में बता चुका है कि बाकि विमानों को रिलायंस की जगह अलग-अलग कंपनियों के साथ बनाया जाएगा।

राफेल विमान यूपीए सरकार के सौदे से नौ प्रतिशत सस्ता है और हथियार लगाकर इसकी कीमत फिलहाल बीस प्रतिशत कम है। प्रसाद ने यह भी कहा कि राहुल बार-बार राफेल की कीमत पूछते हैं, ताकि दुश्मन चीन, पाकिस्तान अलर्ट हो जाएं। वह पाकिस्तान की मदद करना चाहते हैं। प्रसाद ने यह भी कहा कि रिलायंस और डिसॉल्ट के बीच समझौता मोदी सरकार आने से पहले ही हो गया था। इस बात की पुष्टि करने के लिए उन्होंने एक पुरानी खबर की कटिंग भी दिखाई। राफेल मसले पर राहुल गांधी सबको झूठा,बेईमान,और अपने को सत्यवादी ,ईमानदार प्रदर्शित का अभियान चला रहे है। वह अपने प्रत्येक भाषण में यह मुद्दा उठाते है। उनके कुछ प्रवक्ता वाह वाह करते है। अब तो राहुल गांधी की छवि फ्रांस तक पहुंच गई है। वहा के सभी संबंधित पक्षों ने राहुल के बयानों की धज्जियां उड़ाई है।

इधर राफेल डील सुनवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। उसने कहा कि सरकार को विमान की कीमत बताने की आवश्यकता नहीं है। बिडंबना देखिये कांग्रेस इसे सार्वजनिक करने के पीछे पड़ी है। ऐसे में उंसकी नीयत पर प्रश्न उठा स्वभाविक है। कांग्रेस के इस पैंतरे की गूंज फ्रांस तक पहुंच गई है।

फ्रांस के वर्तमान राष्ट्रपति ने राहुल गांधी के मुलाकात संबन्धी दावे को असत्य बताया। पूर्व राष्ट्रपति ओलांदे का कई वर्ष पहले का एक बयान कांग्रेस ढूंढ लाई। इसकी प्रमाणिकता संदिग्ध थी। ओलांदे ने इसका खंडन किया, वायुसेना प्रमुख, वायुसेना उपप्रमुख ने तथ्यों के आधार पर बताया कि इस सौदे में गड़बड़ी नहीं हुई। सेना को तत्काल इसकी आवश्यकता थी। राहुल गांधी पर वायु सेना के इन शीर्ष अधिकारियों के तर्कों का भी असर नहीं हुआ।

सरकार ने यही बात बहुत पहले कही थी। उसका कहना था कि विमान में अनेक अतिरिक्त रक्षा उपकरण लगे थे। जिन्हें वायुसेना की जरूरत के अनुसार तैयार कराया गया था। मूल्य सार्वजनिक करने से शत्रु देशों के विशेषज्ञ उन उपकरणों का अनुमान लगा सकते है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे उचित माना। देश प्रत्येक संवैधानिक, राजनीतिक या निजी संस्थाओं के लिए देश ही सर्वोच्च होता है, होना भी चाहिए। जिस बात पर सुप्रीम कोर्ट ने अमल किया, कांग्रेस पिछले कुछ समय से उसी की अवहेलना कर रही है।

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी यूपीए सरकार में चर्चित हुए दाम को लेकर हंगामा कर रहे है। यदि इस दाम पर वह एक भी विमान खरीद लेते तो यह माना जाता कि ये दाम सही थे। लेकिन दस वर्ष में वह ऐसा करने में असफल रही। इसलिए यह प्रमाणित हुआ कि यूपीए सरकार राफेल खरीदने के प्रति गम्भीर नहीं थी।

फ्रांसीसी कंपनी दासौ के सीईओ एरिक ट्रैपियर ने राहुल गांधी के दावे को असत्य और निराधार बताया है। भारत को इस सौदे में विमान पहले के मुकाबले नौ फीसद सस्ता मिल रहा है। नए सौदे में छतीस विमानों की कीमत पुराने सौदे के अठारह फ्लाईअवे विमानों जितनी ही है। सीधे तौर पर सौदे की राशि दोगुनी हो जानी चाहिए थी, लेकिन सरकार से सरकार के बीच हुए करार के चलते हमने कीमत में नौ फीसद की कटौती की है।

जब एक सौ छब्बीस राफेल विमान की बात चल रही थी, तब एचएएल से करार की ही बात थी। अगर वह सौदा आगे बढ़ता तो एचएएल से करार होता। वह सौदा आगे नहीं बढ़ पाने पर जब छतीस विमान की डील पर चर्चा हुई तब रिलायंस के साथ बात बढ़ी। आखिरी दिनों में एचएएल ने खुद कहा था कि वह इस ऑफसेट में शामिल होने का इच्छुक नहीं है। इससे रिलायंस के साथ करार का रास्ता पूरी तरह से साफ हो गया। इस दौरान अन्य कंपनियों से करार पर भी विचार हुआ था, जिसमें टाटा ग्रुप भी शामिल है। लेकिन बाद में बात रिलायंस के साथ अंतिम नतीजे तक पहुंची।

दासौ के सीईओ ने बताया कि चालीस प्रतिशत ऑफसेट अरेंजमेंट्स के लिए तीस कंपनियों से करार हुआ है। इसमें से दस प्रतिशत हिस्से पर रिलायंस डिफेंस से समझौता हुआ है। इसके लिए रिलायंस के साथ एक ज्वाइंट वेंचर बनाया गया है, जिसमें दासौ की उनचास प्रतिशत और रिलायंस की इक्यावन प्रतिशत हिस्सेदारी है। इस ज्वाइंट वेंचर में कुल आठ सौ करोड़ रुपये का निवेश होगा। यह राशि दोनों कंपनियां आधा-आधा लगाएंगी। अभी दासौ ने जो पैसा लगाया है, वह इसी संयुक्त उद्यम में लगा है। भारत को मिलने वाले राफेल विमान ने फ्रांस में पहली उड़ान भरी है। फ्रांस के इस्त्रे-ले-ट्यूब एयरबेस पर भारतीय वायुसेना को मिलने वाले राफेल लड़ाकू विमान के बेड़े में से पहले विमान का परीक्षण किया गया है। विमान को रनवे पर उतारा गया और उसके विभिन्न परीक्षण किए गए।

कांग्रेस इस मुद्दे पर खुद फंसती जा रही है। राहुल गांधी को देश से लेकर विदेश तक फजीहत का सामना करना पड़ रहा है। वह जबरदस्ती अपने तर्क चलाना चाहते है। लेकिन उनके प्रयास नाकाम हो रहे हैं। वैसे राहुल गांधी द्वारा चलाये जा रहे राफेल अभियान की जांच होंनी चाहिए, जिससे इसके पीछे के रहस्य का खुलासा हो सके।

भारतीय वायुसेना के प्रमुख बीएस धनोआ की चिंता पर खासतौर पर कांग्रेस पार्टी को ध्यान देना चाहिए। उनका कहना है कि राफेल पर हो रही राजनीति का प्रतिकूल असर देश की सैन्य तैयारियों पर हो सकता है। पड़ोसी मुल्कों ने अपने युद्धक विमान अपग्रेड कर लिए हैं। जबकि भारत मे पहले ही बहुत देर हो चुकी है। जाहिर है कि वायुसेना प्रमुख भी अपरोक्ष रूप से मानते है कि राफेल यूपीए कार्यकाल में ही उपलब्ध हो जाने चाहिए थे। राफेल सुरक्षा की दृष्टि से गेमचेंजर साबित होगा। फ्रांस के युद्धक विमानों की खरीद के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने बहुत ही अच्छा फैसला दिया है।

सर्वोच्च अदालत ने यह भी कहा है कि इस युद्धक विमान की बेहद सख्त जरूरत है। धनोआ ने कहा कि जहां तक तकनीक का सवाल है, राफेल विमान के खिलाफ कोई दलील है ही नहीं। दुनिया में कोई भी देश उस तरह के गंभीर खतरे का सामना नहीं कर रहा है जैसा भारत कर रहा है। दुश्मनों के इरादे रातोंरात बदल सकते हैं और वायु सेना को उनके स्तर के बल की जरुरत है। रणनीतिक परिदृश्य के मद्देनजर हमें इसकी जरूरत है। वह सरकार के इस कथन का समर्थन करते हुए नजर आए कि विभिन्न हथियारों से लैस विमान के मूल्य विवरण का खुलासा होने से प्रतिद्वंद्वी उसकी क्षमता जान लेंगे।

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