रांची : चारा घोटाले मामले में जेल की सजा काट रहे राष्ट्रीय जनता दल चीफ लालू प्रसाद यादव ने बिहार के मुख्यमंत्री और जदयू प्रमुख नीतीश कुमार को लिखा क्यों हमारी पार्टी का चुनाव चिन्ह जनता दल यूनाइटेड (जदयू) से बेहतर है। लालू ने कहा कि नीतीश की पार्टी का चुनाव चिन्ह ‘तीर’ हिंसा का प्रतीक है जबकि आरजेडी का चुनाव चिन्ह ‘लालटेन’ लोगों के जीवन में प्रकाश लाता है।
यह पत्र उस अस्पताल से आया जहां लालू प्रसाद यादव इलाज करा रहे हैं। लालू ने अपने लेटर में इस तरह शुरुआत की, ‘सुनो मेरे छोटे भाई नीतीश’ इससे पता चलता है कि तुम्हें प्रकाश से नफरत है। तुम नहीं जानते हो कि लालटेन प्रकाश का प्रतीक है। यह प्यार और भाईचारे का प्रतीक है। यह गरीबों की जिंदगी से अंधकार को दूर करने का हथियार है। लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान नीतीश कुमार ने लालू की पार्टी के चुनाव चिन्ह पर निशाना साधा था। उसके बाद लालू ने लेटर लिखा।
लालू ने आगे लिखा, लेकिन तुम्हारा ‘तीर’ हिंसा का हथियार है। यह एक हिंसा का प्रतीक और समानार्थी है। लालू यादव ने लिखा उसकी पार्टी ने लालेटने की मदद से नफरत, अत्याचार और अन्याय के अंधेरे हटाया है। उन्होंने नीतीश पर भयभीत होने और शॉर्टकट अपनाने की पुरानी आदत होने का आरोप लगाया। लालू ने कहा कि तुमने तीर से 11 करोड़ लोगों को पीछे वार किया। तुम्हारे तीर कमल के कीचड़ में ढक जाएंगे या खत्म हो जाएंगे। मिसाइल का जमाना है, तीर का समय खत्म हो गया है। अब तीर सिर्फ म्यूजियम में रखने के लिए है। नीचे पढ़ें पूरा पत्र हू-ब-हू
सुनो छोटे भाई नीतीश,
ऐसा प्रतीत हो रहा है कि तुम्हें आजकल उजालों से कुछ ज़्यादा ही नफ़रत सी हो गयी है। दिनभर लालू और उसकी लौ लालटेन-लालटेन का जाप करते रहते हो। तुम्हें पता है कि नहीं, लालटेन प्रकाश और रोशनी का पर्याय है। मोहब्बत और भाईचारे का प्रतीक है। ग़रीबों के जीवन से तिमिर हटाने का उपकरण है। हमने लालटेन के प्रकाश से ग़ैरबराबरी, नफ़रत, अत्याचार और अन्याय का अँधेरा दूर भगाया है और भगाते रहेंगे। तुम्हारा चिह्न तीर तो हिंसा फैलाने वाला हथियार है। मार-काट व हिंसा का पर्याय और प्रतीक है।
और हाँ जनता को लालटेन की ज़रूरत हर परिस्थिति में होती है। प्रकाश तो दिए का भी होता है। लालटेन का भी होता है और बल्ब का भी होता है। बल्ब की रोशनी से तुम बेरोज़गारी, उत्पीड़न, घृणा, अत्याचार, अन्याय और असमानता का अँधेरा नहीं हटा सकते इसके लिए मोहब्बत के साथ खुले दिल और दिमाग़ से दिया जलाना होता है। समानता, शांति, प्रेम और न्याय दिलाने के लिए ख़ुद को दिया और बाती बनना पड़ता है। समझौतों को दरकिनार कर जातिवादी, मनुवादी और नफ़रती आँधियों से उलझते व जूझते हुए ख़ुद को निरंतर जलाए रहना पड़ता है। तुम क्या जानो इन सब वैचारिक और सैद्धांतिक उसूलों को। डरकर शॉर्टकट ढूँढना और अवसर देख समझौते करना तुम्हारी बहुत पुरानी आदत रही है।
और हाँ तुम कहाँ मिसाइल के ज़माने में तीर-तीर किए जा रहे हो? तीर का ज़माना अब लद गया । तीर अब संग्रहालय में ही दिखेगा। लालटेन तो हर जगह जलता दिखेगा और पहले से अधिक जलता हुआ मिलेगा क्योंकि 11 करोड़ ग़रीब जनता की पीठ में तुमने विश्वासघाती तीर ही ऐसे घोंपे है । बाक़ी तुम अब कीचड़ वाले फूल में तीर घोंपो या छुपाओ। तुम्हारी मर्ज़ी..
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