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Tuesday 14 May 2019

म्यूचुअल फंड में निवेश करते समय न करें ये गलतियां

म्यूचुअल फंड निवेश यूं तो बहुत सरल-सहज है, लेकिन कई बार निवेशक कुछ आम गलतियों के शिकार होने के कारण उन तमाम लाभों को हासिल नहीं कर पाते, जिनके वे अधिकारी होते हैं। यहां पढ़ें उन 4 महंगी पड़ने वाली गलतियों के बारे में, ताकि म्यूचुअल फंड में निवेश के दौरान उनसे बचा जा सके।

1. यह नहीं जानना कि आपने किसमें निवेश किया है
कभी-कभी निवेशक बिना यह जाने म्यूचुअल फंड खरीद लेते हैं कि उनमें निहित प्रतिभूति (सिक्युरिटी) क्या है या फिर यह किस प्रकार का फंड है। वे अपने स्रोतों से मिले ‘हॉट टिप्स’ के आधार पर निवेश करते हैं। वे यह तर्क दे सकते हैं कि अगर उनके द्वारा चुने गए फंड से अच्छा रिटर्न मिल जाता है, तो फिर बाकी चीजों से मतलब क्यों होना चाहिए! हालांकि मुद्दे की बात यह है कि जब फंड का प्रदर्शन अपेक्षा से अलग हो, तो यही चीजें मायने रखती हैं।

कई निवेशक ’डाइवर्सिफिकेशन’ के नाम पर अपनी झोली में दर्जनों म्यूचुअल फंड रखते हैं। हालांकि यदि वे अपने फंड के पोर्टफोलियो पर एक हल्की नजर ही डाल लें, तो उन्हें यह जानकर बड़ी हैरानी हो सकती है कि उन्हें तो बहुत कम डाइवर्सिफिकेशन मिल पाया है। निवेशकों की अनभिज्ञता को ही इसका दोष दिया जा सकता है।

यह जानना महत्वपूर्ण है कि आप किसमें निवेश कर रहे हैं, क्योंकि इससे आपको सही ढंग से अपेक्षाएं तय करने में मदद मिलेगी और आप लक्ष्यों के लिए प्रभावी रूप से योजना बना सकेंगे। मिसाल के लिए, यह आपको बताएगा कि शेयर बाजारों के उत्साहहीन चरण में होने पर अपने डाइवर्सिफाइड लार्ज कैप फंड से आसमानी ऊंचाई वाले रिटर्न की अपेक्षा करना बेमानी है, या फिर यदि आपके निवेश की अवधि कम है, तो इक्विटीज से बचा जाना चाहिए, भले ही रिटर्न कितना भी आकर्षक क्यों न दिखता हो।

यह जानें कि फंड मिड कैप फंड है या लार्ज कैप फंड, डाइवर्सिफाइड फंड है या सेक्टर फंड, एक्टिव फंड है या पैसिव फंड, इक्विटी फंड है या बैलेंस्‍ड फंड आदि, और एक फंड को दूसरे से क्या अलग करता है – मसलन अंतर्निहित सिक्युरिटी, निवेश की शैली आदि। यह जानकारी आपको उनसे जुड़े जोखिम और रिटर्न को मापने में मदद करेगी।

2. निवेश को अपने लक्ष्यों के बजाय बाजार के स्तर से जोड़ना
आपको यह जानकर आश्चर्य नहीं होगा कि अच्छी-खासी संख्या में लोग निवेश से संबंधित फैसले अपने निवेश लक्ष्य के आधार पर लेने के बजाय बाजार की मनोदशा के आधार पर लेते हैं। बहरहाल म्यूचुअल फंड खरीदने से पहले आपके पास परिसंपत्तियों के आवंटन की रणनीति होनी चाहिए।

यह रणनीति आपके निवेश लक्ष्यों से निर्देशित होती हो। निवेश की एक रणनीति होने से आप खुद को और अपने पैसे को भावनाओं के चक्कर में पड़ने से बचा सकते हैं।
यह पोर्टफोलियो के दोहराव से बचने में भी मदद करता है।

यह दोहराव तब होता है जब आप डाइवर्सिफिकेशन के उद्देश्य से कई फंड खरीद लेते हैं, लेकिन उनके पोर्टफोलियो एक जैसे ही होते हैं। यह जरूरत से ज्यादा जोखिम की तरफ ले जा सकता है। इसलिए परिसंपत्तियों का आवंटन एक मजबूत और असरदार निवेश पोर्टफोलियो रखने की कुंजी है।

3. आंखें मूंदकर प्रदर्शन के पीछे भागना
म्यूचुअल फंड निवेश के मामले में पिछले प्रदर्शन भविष्य के प्रदर्शन का संकेतक नहीं होते हैं। जब निवेशक म्यूचुअल फंड खरीदते हैं, तो किसी भी विज्ञापन में म्यूचुअल फंड स्कीम्स का प्रदर्शन हमेशा इस अस्वीकरण (डिस्क्लेमर) के साथ होता है।

सेबी ने ऐसा करने के लिए निर्देशित किया है। बावजूद इसके प्रदर्शन के आंकड़ों का आकर्षण इतना प्रबल होता है कि कई निवेशक अपने फंड के चुनाव के लिए एकमात्र कसौटी के रूप में पिछले प्रदर्शन का इस्तेमाल करके ही संतुष्ट हो जाते हैं।

यहां ट्रैक रिकॉर्ड के महत्व को खारिज नहीं किया जा रहा है। हालांकि, ट्रैक रिकॉर्ड के मायने तभी हैं, जब किसी फंड के प्रदर्शन का अध्ययन अलग-अलग बाजार चक्रों में किया जाए और यह अध्ययन सिर्फ उसी फंड का न हो, बल्कि उसके बेंचमार्क और अन्य समान फंडों से तुलना भी हो। अक्सर नए निवेशक बाजार की स्थिति और अन्य समान फंडों के संदर्भ में प्रदर्शन पर विचार नहीं कर पाते, और गलत निष्कर्ष निकाल बैठते हैं।

मान लीजिए कि आपको ऐसे फंड का पता चलता है, जिसने पिछले 5 वर्षों में सालाना 15% रिटर्न दिया है। क्या आपको प्रभावित होना चाहिए? निर्भर करता है। अगर उसी अवधि में इसका बेंचमार्क रिटर्न 19% हो और उसके साथ के अन्य फंडों का औसत रिटर्न 20% रहा हो, तो वह फंड अपेक्षा से कम प्रदर्शन करने वाला है!

या मान लें कि 5 साल की अवधि में 20% रिटर्न देने वाले फंड ने 3 साल की अवधि में सिर्फ 8% रिटर्न दिया, तो क्या आपको इससे निराश होना चाहिए? यदि इसके बेंचमार्क ने 5% रिटर्न दिया है और उसी अवधि में इसके जैसे अन्य फंड का औसत रिटर्न 6% रहा है, तो फिर निराशा का कोई कारण नहीं है।

बहरहाल, भले ही ट्रैक रिकॉर्ड प्रभावशाली हो, पर अकेले इसी कारण से फंड का चुनाव करना जोखिम भरा होता है, क्योंकि किसी फंड का प्रदर्शन सालों के शानदार ट्रैक रिकॉर्ड के बाद भी लुढ़क सकता है। इसलिए सिर्फ प्रदर्शन के आंकड़े देखने की तुलना में गहराई तक जाना महत्वपूर्ण है। इस तरह के प्रश्नों के उत्तर खोजें – म्यूचुअल फंड निवेशकों के धन को अच्छी तरह से प्रबंधित करने को लेकर गंभीर है या फिर उसकी रुचि केवल इकट्ठा करने में है (एयूएम)?

निवेशकों को शिक्षित करने, लागत कम करने, निवेश को सरल व सुविधाजनक बनाने के नए तरीके खोजने आदि के बारे में उसके रवैये जैसे मुद्दों से सूत्र लें। क्या म्यूचुअल फंड के प्रायोजकों की साख अच्छी है? क्या वे रिसर्च प्रक्रिया पर जोर देते हैं या फंड मैनेजर ही स्टार है? बेशक, इस प्रयास में कुछ दिन लग सकते हैं, लेकिन ऐसा करना सार्थक होगा। आखिरकार यह आपके कड़ी मेहनत से कमाए और बड़ी कोशिशों से बचाए गए पैसों की बात है।

4. व्यय अनुपात (एक्सपेंस रेशियो) को कम आंकना
निवेशकों के धन का उचित ढंग से प्रबंधन करने और उन्हें समय के साथ अच्छा रिटर्न देने के लिए म्यूचुअल फंड इक्विटी शेयर्स; बांड आदि जैसी गुणवत्तापूर्ण प्रतिभूतियों पर शोध करते हैं और उनमें अपना पैसा लगाते हैं। इस सारी प्रक्रिया को करने के लिए हर म्यूचुअल फंड म्यूचुअल फंड स्कीम्स पर शुल्क लगाता है, जिसे उद्योग के शब्दों में व्यय अनुपात (एक्सपेंस रेशियो) के नाम से जाना जाता है।

एक्सपेंस रेशियो किसी फंड की शुद्ध परिसंपत्ति से काटा गया शुल्क है, जो कि आपके रिटर्न को प्रभावित करता है। ऊंचा एक्सपेंस रेशियो रिटर्न को कम कर देता है। म्यूचुअल फंड का मूल्यांकन करते वक्त निवेशक शायद ही कभी इस व्यय अनुपात को अपने मानदंडों में शामिल करते हों। यदि बाकी सभी चीजें समान हैं, तो निवेशकों को आदर्श रूप से उन म्यूचुअल फंडों को खरीदना चाहिए जिनका व्यय अनुपात कम है।

कंपाउंडिंग के प्रभाव के चलते लंबी अवधि के निवेश में व्यय अनुपात का असर अधिक होता है। आपके रिटर्न पर म्यूचुअल फंड व्यय अनुपात के असर के बारे में अधिक जानकारी के लिए हमारा पिछला क्यूईडी आर्टिकल पढ़ें।

हमारा ख्याल है कि आपको म्यूचुअल फंड खरीदने से पहले होमवर्क जरूर करना चाहिए। आप एक वित्तीय सलाहकार की सहायता लें, जो रणनीति बनाने, उत्पादों को समझने और पहले किए जा चुके निवेशों पर नजर रखने के मामले में आपको सही राह दिखा सकता है।

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