प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ (गुलाबी चूड़ियाँ/नागार्जुन कविता संग्रह) प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ, सात साल की बच्ची का पिता तो है! सामने गियर से उपर हुक से लटका रक्खी हैं काँच की चार चूड़ियाँ गुलाबी बस की रफ़्तार के मुताबिक हिलती रहती हैं… झुककर मैंने पूछ लिया खा गया मानो झटका अधेड़ उम्र का मुच्छड़ रोबीला चेहरा आहिस्ते से बोला: हाँ सा’ब लाख कहता हूँ नहीं मानती मुनिया टाँगे हुए है कई दिनों से अपनी अमानत यहाँ अब्बा की नज़रों के सामने मैं भी सोचता हूँ क्या बिगाड़ती हैं चूड़ियाँ किस ज़ुर्म पे हटा दूँ इनको यहाँ से? और ड्राइवर ने एक नज़र मुझे देखा और मैंने एक नज़र उसे देखा छलक रहा था दूधिया वात्सल्य बड़ी-बड़ी आँखों में तरलता हावी थी सीधे-साधे प्रश्न पर और अब वे निगाहें फिर से हो गईं सड़क की ओर और मैंने झुककर कहा – हाँ भाई, मैं भी पिता हूँ वो तो बस यूँ ही पूछ लिया आपसे वरना किसे नहीं भाँएगी? नन्हीं कलाइयों की गुलाबी चूड़ियाँ! कवी नागार्जुन
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Friday 17 May 2019
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Private Bus Ka Driver Hai To Kya Hua,Nagaarjun Kavita Sangrah,Hindi Kavita
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