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Friday 17 May 2019

गोरखपुर: योगी के गढ़ में चुनावी बयार

 

योगी टीम की राजनीतिक सीख को नहीं भांप पा रहें अभिनेता रवि किशन

क्षेत्रीय लोगों को अखर रहा बाहरी प्रतिनिधित्व

रवि गुप्ता

लखनऊ। 19 तारीख को ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गढ़ यानी गोरखपुर में भी मतदान होना है। संभवत: यह पहली बार देखने को मिल रहा है जब गोरक्षनाथ मंदिर व नाथ सम्प्रदाय से बाहर के किसी व्यक्ति को गोरखपुर में अपनी राजनीतिक रहनुमाई करने के लिए बीजेपी ने उतारा है। बता दें कि 1951 से लेकर अब तक छह दशक के बीच हुए चुनावों में रिकॉर्ड 32 साल तक गोरक्षनाथ पीठ के महंत ही गोरखपुर से संसद में प्रतिनिधित्व करते रहें। लेकिन इस बार बदलते राजनीतिक परिदृश्य में मठ से जुडे इस पुराने इतिहास को बदलना ही पड़ा।
गोरखपुर के चुनावी दंगल में इस बार भोजपुरिया स्टॉर रवि किशन कमल खिलाने के लिए बेताब हैं, तो गठबंधन से दबंग नेता की छवि रखने वाले रामभुआल निषाद साइकिल पर चढ़कर लोस चुनाव का रेस जीतने में लगे हैं। वहीं मधुसूदन तिवारी कांग्रेसी पंजे के दम पर अपना राजनीतिक दमखम दिखाने में लगे हैं।
भोजपुरी से लेकर बॉलीवुड, टीवी से लेकर साउथ इंडियन सिनेमा में अपनी धाक व पहचान स्थापित करने वाले स्टॉर अभिनेता रवि किशन ‘पॉलीटिकल दुनियां’ में कितना सफल हो पायेंगे, यह तो 23 मई को ही पता चल पायेगा। वैसे बता दें कि इस बार केवल मोदी-योगी के गुणगान के सहारे अपनी राजनीतिक नैया पार लगाने के लिये प्रयासरत भोजपुरिया अभिनेता रवि किशन बीते लोकसभा चुनाव में कांग्रेसी पंजा थामकर अपने गृह जनपद यानि जौनपुर से लोकसभा का चुनाव लड़ चुके हैं जिसमें उन्हें हार मिली। फिर जब मोदी लहर के चलते केंद्र में बीजेपी की सरकार तो बनी तो रवि किशन की राजनीतिक महत्वाकांक्षा फिर से उमड़ने लगी और तमाम प्रकार से भगवा झंडा थामने में लग गए। बहरहाल, लोस चुनाव होने से कुछ दिन पहले ही रवि किशन की बीजेपी में इंट्री हुई और आनन-फानन में उन्हें गोरखपुर से प्रत्याशी घोषित कर दिया गया। पार्टी सूत्रों की मानें तो वो खुद नही चाहते थे कि उन्हें गोरखपुर से लड़ाया जाये, मगर उन्हें कहीं न कहीं समझौता करना पड़ा।
रवि किशन के गोरखपुर से चुनाव लड़ने के मुद्दे पर कुछ राजनीतिक जानकारों का यही मानना है कि यह जल्दीबाजी में लिया गया निर्णय है। उनकी मानें तो उनके चुनाव के अभी महज कुछ दिन रह गए हैं और अभी तक बीजेपी का यह भोजपुरिया स्टॉर गोरखपुर क्षेत्र के आमजनों से पूरी तरह कनेक्ट नहीं हो पाया है। गोरखपुर क्षेत्र में ही दबे जुबान यह चर्चा जोरों पर है कि अगर रवि किशन की जगह किसी स्थानीय नेता या मठ के पदाधिकारी या प्रतिनिधि को चुनाव लड़ाया जाता तो परिणाम सकारात्मक आ सकते हैं। रवि किशन की वहां पर चल रही चुनावी सभाओं का आलम यह है कि ज्यादातर मौकों पर वो केवल और केवल मोदी-योगी नाम की ही रट लगाते रहते हैं, उनके पास गोरखपुर के आशातीत विकास को लेकर लगता है खुद का कोई एजेंडा ही नहीं है। ऐसे में वहां का आमजन भले ही अभी भी एक्टर रवि किशन के भोजपुरी फिल्मों व गानों को देखकर और सुनकर थिरकते रहे हों, लेकिन जब बात संसद में गोरखपुर के प्रतिनिधित्व की आती है तो वो कुछ समय के लिए सोचने को मजबूर हो जाते हैं। शहर के धर्मशाला इलाके में काफी समय से मिठाई की दुकान चला रहे एक क्षेत्रीय दुकानदार ने ऐसे विषय पर यही कहा कि…अच्छा होता योगी जी यहीं के किसी आदमी को हमारे बीच लाते तो हम भी खुलकर पूरे तन-मन से चुनाव में लग जाते।
वहीं बीजेपी के ही कुछ विश्वस्त सूत्रों की मानें तो चूंकि योगी पर पूरे प्रदेश का भार है और वो चुनाव में स्टॉर प्रचारक भी हैं, ऐसे में गोरखपुर के क्षेत्रीय संगठन पर उनका उतना ध्यान नहीं जा पा रहा है। जिसका पूरा फायदा विरोधी खेमे के लोग उठा रहे हैं। हालांकि चर्चा यह भी रही कि योगी टीम ने रवि किशन को गोरखपुर जाने से पहले एक खास डायरी दी थी और उसका पूरा अध्ययन करने की ताकीद दी थी ताकि वहां के क्षेत्रीय राजनीतिक नब्ज की समझ उन्हें बेहतर ढंग से हो सके।

मगर हमेशा फिल्मी आकर्षण के बीच रहने के आदी और भारी-भरकम डॉयलाग बोलकर लोगों को रिझाते आ रहे एक्टर रवि किशन संभवत: योगी टीम की इस राजनीतिक सीख को नहीं भांप पाये और अपने आसपास घिरे चंद लोगों को साथ लेकर गोरखपुर के चुनावी रण में उतर पड़े। क्षेत्र में कहीं न कहीं चर्चा तो यह भी है कि सीएम योगी के सबसे विश्वस्त और जमीनी पकड़ रखने वाले हिन्दू युवा वाहिनी संगठन से भी रवि किशन उतना मेल नहीं रख पाये हैं, ऐसे में चाहकर भी युवा वाहिनी के पदाधिकारी उनसे राजनीतिक विचार-विमर्श करने से कतराते हैं।

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