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Wednesday 26 June 2019

आपका RO ही तो नहीं आपकी बीमार की वजह, हो जाएं सावधान और ध्यान दे ये बाते..

रिवर्स ऑस्मोसिस यानी (RO) तकनीक पानी की अशुद्दियों को साफ करने में सबसे अच्छी है – यही मानकर हर घर में आरओ तो लग गए. लेकिन इतने सालों में में आरओ सिस्टम खुद की अशुद्दियों से पार नहीं पा सका. आरओ तकनीक पर हमेशा ये संशय बना रहा है कि ये पानी से जरूरी मिनरल जैसे कैल्शियम और मैग्निशियम को भी खत्म कर डालता है. साथ ही पानी की सफाई के प्रोसेस में होने वाली बर्बादी के लिए भी ये तकनीक सवालों के घेरे में रही है. आर ओ पानी साफ करने के चक्कर में 80 फीसदी तक पानी को बेकार बहा देता है.

वैसे दिल्ली जल बोर्ड ने फैसले के फौरन बाद सफाई दी कि हम जो पानी सप्लाई कर रहे हैं उसमें कोई खराबी नहीं है तो हमने कुछ घऱों में जाकर ये समझने की कोशिश की कि वो कैसे ये तय करते हैं कि जो पानी वो पी रहे हैं वो 100 फीसदी शुद्द है. क्या उन्हें ये भरोसा आरओ से मिलता है यानी पानी के टेस्ट से –

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मतलब साफ है पानी स्वादरहित, गंधरहित और रंगरहित है तो वो सही साफ और शुदृद पानी है. आरओ से बर्बाद हो रहे पानी को कुछ लोग पौधों के लिए इस्तेमाल कर लेते हैं, कुछ साफ सफाई के लिए और बहुत लोग इस पानी को यूं ही बहने देते हैं. जल संकट को झेल रही दुनिया में ऐसी तकनीक पर सवाल उठने लाज़मी हैं जो रोजाना पानी बर्बाद कर रही हो. वैसे अब एनजीटी के ताज़ा आदेश में इस तथ्य पर मुहर लग गई है कि हर पानी को साफ करने के लिए आर ओ ज़रुरी नहीं है.

एनजीओ फ्रेंड्स ने एक याचिका में एनजीटी से कहा था कि दिल्ली में फिरोजशाह कोटला स्टेडियम की साफ सफाई में आरओ से ट्रीट हुए पानी को यूज़ किया जा रहा है. इसके बाद मामले ने तूल पकड़ा और एनजीटी ने आरओ की ज़रुरत पर ही सवाल उठा दिए. आरओ की ज़रुरत का मामला 2018 में भी इसी अदालत में उठा था. नेशनल ग्रीन ट्राइब्य़ूनल यानी एनजीटी ने पर्यावरण मंत्रालय को निर्देश दिए कि जहां पानी में टीडीएस की मात्रा 500 एमजी प्रति लीटर से कम हैं, वहां आरओ के इस्तेमाल पर बैन लगाए और लोगों को डीमिनरल्जाइज़ड पानी के नुकसान के प्रति जागरुक भी करे. एनजीटी ने नोटिफिकेशन जारी करने के लिए मंत्रालय को एक महीने का वक्त दिया है.

ये भी कहा गया है कि आरओ से बर्बाद होने वाले 60 से 75 फीसदी पानी को रिकवर किया जाए और उसे धुलाई सफाई जैसे कामों में इस्तेमाल किया जाए. आरओ से मिलने वाली पानी की क्वालिटी पर रिसर्च करने के लिए भी मंत्रालय को निर्देश देने को कहा गया. जल बोर्ड को निर्देश दिए गए कि जनता को समय समय पर पानी की गुनवत्ता की जानकारी दें. आरओ निर्माताओं से कहा गया है कि वो प्रॉडक्ट पर ये लिखें कि आरओ का इस्तेमाल तभी करें जब पानी में टीडीएस की मात्रा 500 से ऊपर हो.

आरओ बनाने वाली कंपनियों के प्रतिनिधि के तौर पर पेश हुए वाटर क्वालिटी इंडियन एसोसिएशन के सदस्यों ने दलील दी कि देश के 13 राज्यों के 98 ज़िले ऐसे हैं जहां पानी को आरओ तकनीक से ही पीने योग्य बनाया जा सकता है. लेकिन ये उन्होंने भी माना कि पानी को शुद्ध करने के प्रोसेस में 80 प्रतिशत पानी बर्बाद चला जाता है और 20 फीसदी ही पीने के लिए बचता है.

अब आपको बताते हैं कि आरओ वाटर यानी डी-मिनरलाइज़ड वाटर क्या होता है–डिस्टीलेशन, डी-आयोनाइजेशन और मेम्ब्रेन फिल्टरेशन जैसी प्रक्रियाओं से गुज़रने के बाद पानी मिनरल से मुक्त हो जाता है. नैनो फिल्टरेशन और इलेक्ट्रोडायलिसिस जैसी अलग अलग तकनीकों से लैस आरओ यानी रिवर्स ऑस्मोसिस तकनीक से गुजर कर निकले पानी में बहुत से मिनरल नहीं होते.

1970 में 10 साल तक एक स्टडी करने के बाद 1980 में विश्व स्वास्थय संगठन ने भी पूरी तरह मिनरल मुक्त पानी को नुकसानदेह ही माना था. यहां डब्लूएचओ ने 300 एमजी प्रति लीटर से कम टीडीएस वाले पानी को पीने के लिहाज से उत्तम क्वालिटी माना है.

आयुर्वेद के हिसाब से पानी ऐसा होना
पीने लायक पानी को वेदों में भी परिभाषित किया गया है. रिग्वेद के हिसाब से पानी शीतलम यानी ठंडा, सुशीनी यानी साफ और सिवम यानी उसमें ज़रुरी खनिज लवण होने चाहिए और पानी इश्टम यानी पारदर्शी होना चाहिए. पानी विमलम लहु शद्गुनम यानी सीमित मात्रा के एसिड बेस के साथ होना चाहिए. यानी जरूरी नहीं कि हर घर में नल से सप्लाई हो रहे पानी को आरओ ही शुद्द कर सकता है.

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