इलाहाबाद। तीर्थराज प्रयाग में गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती के मिलन स्थल पर कल्पवास की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है। इसका आरंभ 2 जनवरी को पौष पूर्णिमा के साथ हो चुका है। कुछ लोग मकर संक्रांति से भी कल्पवास आरंभ करते हैं। ऐसा माना जाता है कि, प्रयाग में सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ शुरू होने वाले एक मास के कल्पवास से एक कल्प (ब्रह्मा का एक दिन) का पुण्य मिलता है।
कल्पवास का ये भी है महत्व
आदिकाल से चली आ रही इस परंपरा के महत्व की चर्चा वेदों से लेकर महाभारत और रामचरितमानस में अलग-अलग नामों से मिलती है। आज भी कल्पवास नई और पुरानी पीढ़ी के लिए आध्यात्म की राह का एक पड़ाव है, जिसके जरिए स्वनियंत्रण और आत्मशुद्धि का प्रयास किया जाता है। बदलते समय के अनुरूप कल्पवास करने वालों के तौर-तरीके में कुछ बदलाव जरूर आए हैं लेकिन कल्पवास करने वालों की संख्या में कमी नहीं आई।
तुलसी व शालिग्राम की स्थापना
कल्पवास की शुरुआत के पहले दिन तुलसी और शालिग्राम की स्थापना और पूजन होती है। कल्पवासी अपने टेंट के बाहर जौ का बीज रोपित करता है। कल्पवास की समाप्ति पर इस पौधे को कल्पवासी अपने साथ ले जाता है जबकि तुलसी को गंगा में प्रवाहित कर दिया जाता है।
कल्पवास का बदलता स्वरूप
पौष पूर्णिमा से कल्पवास आरंभ होता है और माघी पूर्णिमा के साथ संपन्न होता है। एक माह तक चलने वाले कल्पवास के दौरान कल्पवासी को जमीन पर शयन (सोना) करना होता है। इस दौरान फलाहार, एक समय का आहार या निराहार रहने का प्रावधान है। कल्पवास करने वाले व्यक्ति को नियमपूर्वक तीन समय गंगा स्नान और यथासंभव भजन-कीर्तन, प्रभु चर्चा और प्रभु लीला का दर्शन करना चाहिए। कल्पवास की शुरुआत करने के बाद इसे 12 वर्षों तक जारी रखने की परंपरा है। हालांकि इसे अधिक समय तक भी जारी रखा जा सकता है।
समय के साथ कल्पवास के तौर-तरीकों में कुछ बदलाव जरूर आए हैं। बुजुर्गों के साथ कल्पवास में मदद करते-करते कई युवा खुद भी कल्पवास करने लगे हैं। कल्पवासियों के शिविर तक मोबाइल की पहुंच हो गई है। हालांकि टीवी से कल्पवासी अब भी परहेज करते हैं। कई विदेशी भी अपने भारतीय गुरुओं के सानिध्य में कल्पवास करने यहां आते हैं।
इस साल माघ मेले की खास बातें
गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के पावन तट पर त्याग, तपस्या और वैराग्य के प्रतीक माघ मेला की तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी हैं। 1797 बीघे में बस रहे माघ मेले का पहला स्नान पौष पूर्णिमा (2 जनवरी) से आरंभ हो गया है। इसी दिन से देश-विदेश के लाखों श्रद्धालु मोक्ष की कामना लेकर कल्पवास शुरू कर चुके हैं। इस बार माघ मेले की एक खास बात यह है कि, महाशिवरात्रि को छोड़कर सभी प्रमुख स्नान पर्व जनवरी में ही पड़ेंगे। साथ ही मकर संक्रांति और मौनी अमावस्या के स्नानपर्व 15 और 16 जनवरी को एक साथ पड़ रहे हैं।
ऐसे करते हैं कल्पवास
पौष कल्पवास के लिए वैसे तो उम्र की कोई बाध्यता नहीं है, लेकिन माना जाता है कि संसारी मोह-माया से मुक्त और जिम्मेदारियों को पूरा कर चुके व्यक्ति को ही कल्पवास करना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि जिम्मेदारियों से बंधे व्यक्ति के लिए आत्मनियंत्रण कठिन माना जाता है।
मिथिलावासियों का कल्पवास मकर से
मिथिलावासी मकर संक्रांति को काफी महत्व देते हैं, इसलिए वह मकर संक्रांति से ही माघ मेले में पहुंच जाते हैं और मकर संक्रांति से माघी पूर्णिमा तक कल्पवास करते हैं। हालांकि ऐसे लोगों की संख्या काफी कम होती है।
इन तिथियों पर भारी संख्या में पहुंचेंगे श्रद्धालु
2 जनवरी मंगलवार : पौष पूर्णिमा : 30 लाख (श्रद्धालु)
14/15 जनवरी, रविवार/सोमवार : मकर संक्रांति: 75 लाख (श्रद्धालु)
16 जनवरी, मंगलवार : मौनी अमावस्या/1.5-2.0करोड़
22 जनवरी, सोमवार : वसंत पंचमी/50 लाख (श्रद्धालु)
31 जनवरी, बुधवार : माघी पूर्णिमा/40 लाख (श्रद्धालु)
13 फरवरी, मंगलवार : महाशिवरात्रि/10 लाख (श्रद्धालु)
ये हैं सुरक्षा इंतजाम
एसएसपी आकाश कुलहरि ने बताया कि मेले में सुरक्षा के रहेंगे पुख्ता इंतजाम रहेंगे। मेले में एसटीएस, बीडीएस, एएसटी, स्निफर डॉग, पीएसी और एनडीआरएफ के साथ एसडीआरएफ की टीम भी तैनात रहेंगी।
-एजेंसी
The post तीर्थराज प्रयाग में कल्पवास शुरू appeared first on Legend News: Hindi News, News in Hindi , Hindi News Website,हिन्दी समाचार , Politics News - Bollywood News, Cover Story hindi headlines,entertainment news.
No comments:
Post a Comment