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Monday, 17 September 2018

चिलचिलाती धूप में जब 10-12 किमो. साइकिल चलाने में छूटे वरुण-अनुष्का के पसीने

लखनऊ। कॉमनमैन होना सच में बड़ा कठिन है। कॉमनमैन की भीड़ में ही आप खो जाते हैं और आपकी अलग पहचान तब बनती है जब आप कुछ अलग करते हैं। ये कहना है बॉलीवुड स्टार अनुष्का शर्मा और वरुण धवन का। फिल्म सुई-धागा के प्रमोशन के लिए सोमवार को विश्वकर्मा पूजा पर लखनऊ पहुंचे दोनों स्टार ने इंडस्ट्रीयल एरिया में पहले भगवान विश्वकर्मा की पूजा अर्चना की। फिर एक होटल में अमर उजाला से बातचीत में फिल्म से जुड़े अपने अनुभव साझा किए।

फिल्म की शूटिंग के दौरान किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा?
अनुष्का कहती हैं कि मेहनत तो हमारा काम है। मुश्किल हालातों में काम करने के बाद दर्शकों से जब प्यार मिलता है तो शूटिंग के दौरान आई सारी दिक्कतें छोटी लगती हैं। वहीं, वरुण ने कहा कि चंदेरी जैसे इलाके में काम करना थोड़ा टफ था लेकिन काम का जो सकारात्मक माहौल और प्यार वहां मिला वो जिंदगी भर याद रहेगा।

शूटिंग के दौरान धूप में साइकिल चलाना और फिर साइकिल से गिरना, ये सब कितना तकलीफदेह था?
वरुण ने कहा कि धूप में मैं 10-12 किमी. साईकिल चलाता था, जबकि अनुष्का उस पर बैठती थी। चिलचिलाती धूप में ये सीन शूट होने में पसीने छूट जाते थे। अनुष्का कहती है कि हम गिरे भी थे। हालांकि, चोट सिर्फ वरुण को ही लगी। वरुण ने बताया कि एक बार 2000 मीटर तक दौड़ते-दौड़ते मुझे तो उलिटयां होने लगी थीं, फिर भी मैं बहुत कूल था।

फिल्म में ऐसा क्या था, जिसे करने के लिए आप दोनों राजी हो गए?
इस सवाल का जवाब देते हुए वरुण धवन ने कहा कि जब मैंने फिल्म की स्क्रिप्ट पढ़ी तो मैं खूब हंसा था। लेकिन, जब मैंने दोबारा इसे पढ़ा तो मुझे लगा कि इसे जरूर करना चाहिए क्योंकि ये फिल्म सबके लिए है। इसे कोई भी देख सकता है। ये फिल्म पारिवारिक है तो इसमें लव स्टोरी भी है। कॉमेडी है तो इमोशन भी है और सबसे खास बात कि ये फिल्म मेड इन इंडिया को प्रमोट करती है। वहीं, अनुष्का ने कहा कि ये फिल्म जमीन से जुड़ी है। ये मेहनत और जज्बे की भी कहानी है। ये दिखाती है कि किस तरह इंसान मेहनत के बलबूते अपने पुश्तैनी काम को मार्केट में अच्छी पहचान दिलाता है।

आप दोनों गांव को किस नजरिए से देखते हैं?
वरुण ने कहा कि गांव में बहुत स्कोप है। हमारे देश के सारे पुश्तैनी काम तो गांव से ही शुरू हुए हैं। हर गांव और हर शहर की अपनी विशेषता है। पुराने कारीगरों के हाथ में जो जादू है, वो आजकल की कपड़े की फैक्ट्री में कहां देखने को मिलता है। चाहे आप चंदेरी का काम देख लीजिए या फिर लखनऊ की चिकनकारी का, पुश्तैनी कारीगरों का ही काम बोलता है।

वरुण को सिलाई मशीन चलाने में किस तरह की दिक्कत हुई?
मैंने कभी ये काम नहीं किया था, इसलिए मुझे बहुत ही ज्यादा मेहनत करनी पड़ी। पैर से सिलाई मशीन चलाने में काफी दिक्कत हुई। लेकिन सबसे ज्यादा दिक्कत मशीन में धागा डालने में होती है।

अनुष्का क्या आपने कभी सिलाई-कढ़ाई की थी? किस तरह की दिक्कतें हुईं?
मैंने खुद कभी सिलाई-कढ़ाई नहीं की। हां, मेरी मम्मी जरूर कढ़ाई करती थीं, मैंने उनको देखा था इसलिए थोड़ा बहुत सुई-धागा पकड़ना आता था। फिल्म में हमें एक आंटी ने ये दोनों गुर सिखाए।

आपके सीन को लेकर मीम बनने लगे हैं, इस पर क्या कहेंगी?
मूवी आने से पहले ही उसका मीम बन जाना, ये तो हमारे लिए बहुत ही अच्छी बात है। आमतौर पर मूवी रिलीज होने के बाद ही ऐसा होता है लेकिन हमारा मीम पहले बनने ये हमारे लिए फायदेमंद है। कम से कम लोग हमारा कैरकक्टर तो देख रहे हैं। मूवी देखने तो जाएंगे ही।

सुल्तान और सुई-धागा, इन दोनों फिल्मों में से ज्यादा मेहनत किसमें करनी पड़ी?
इस सवाल पर अनुष्का कहती हैं कि अरफा थोड़ी-थोड़ी मेरे जैसी थी लेकिन ममता (सुई-धागा में अनुष्का का नाम) मुझसे बिल्कुल अलग है। सुल्तान में मुझे फिजिकली बहुत मेहनत करनी पड़ी थी लेकिन यहां अपने कैरेक्टर को लेकर काफी मेहनत करनी पड़ी है, ताकि मैं कॉमन मैन की तरह दिख सकूं। अनुष्का और वरुण ने कहा कि ये सच है कि कॉमनमैन बनना बहुत कठिन है। इस फिल्म में यही दिखाया गया है कि किस तरह से बड़ी कठिनाइयों का सामना करते हुए कॉमनमैन अपनी अलग पहचान बनाते हैं।

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